सुप्रीम कोर्ट ने शारदा चिट-फंड घोटाले की सीबीआई जाँच की निगरानी करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने मामले पर सुनावाई करते हुए यह फै़सला दिया। अपनी रकम गवाँ चुके कुछ निजी निवेशकों ने यह याचिका दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट से जाँच के निगरानी की माँग की थी।
पीठ ने कहा, “हम चिटफंड घोटाले की जाँच पर नज़र रखने के लिए निगरानी समिति गठित करने के इच्छुक नहीं हैं।” इससे पहले न्यायालय ने घोटाले की जाँच वर्ष 2013 में सीबीआई को हस्तांतरित कर दी थी। कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि घोटाले में निगरानी करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
क्या जाँच में ख़लल डालने की हुई कोशिश
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार इस घोटाले की जाँच को लेकर अब तक बेचैन नज़र आई है। बीते दिनों शारदा चिट-फंड घोटाले की जाँच के लिए सीबीआई की टीम पश्चिम बंगाल के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने गई थी, लेकिन तब ममता बनर्जी पुलिस कमिश्नर की सुरक्षा के लिए धरने पर बैठ गई थीं।
बता दें कि ममता जिनके लिए धरने पर बैठी थीं, उन पर शारदा चिट-फंड घोटाले के अपराधियों के ख़िलाफ़ अहम सबूत मिटाने का आरोप है। उनके धरने के दौरान विपक्ष के कई सारे नेता भी ममता के समर्थन में आ गए थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पुलिस कमिश्नर को शिलांग में सीबीआई दफ़्तर में पूछताछ के लिए हाज़िर होने का आदेश दिया था।
क्या है शारदा चिट फंड घोटाला?
शारदा चिटफंड घोटाला एक बड़ा आर्थिक घोटाला है। NDTV के अनुसार यह घोटाला ₹4000 करोड़, फ़र्स्ट पोस्ट के अनुसार ₹10,000 करोड़ और अमर उजाला के अनुसार ₹40,000 करोड़ का है। मतबल कोई निश्चित आँकड़ा नहीं। निश्चित आँकड़ा इसलिए नहीं क्योंकि इस घोटाले के तार न सिर्फ़ पश्चिम बंगाल बल्कि निकटवर्ती राज्य ओडिशा, असम, झारखंड और त्रिपुरा तक से जुड़े हैं।
इस घोटाले में TMC सहित कई बड़े नेताओं, उनकी बीवियों और ऑफिसरों के नाम भी जुड़े हैं। तृणमूल सांसद कुणाल घोष और श्रीजॉय बोस, पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस महानिदेशक रजत मजूमदार, पूर्व खेल और परिवहन मंत्री मदन मित्रा और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी – ये कुछ हाई प्रोफ़ाइल नाम हैं। और यह कोरी-कल्पना नहीं है। शारदा समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुदीप्त सेन ने 23 अप्रैल, 2013 को अपनी गिरफ़्तारी के बाद इन लोगों की संलिप्तता क़बूल की थी।