विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सोमवार (9 मई, 2022) को शारदा विश्वविद्यालय से एक परीक्षा में हिंदुत्व और फासीवाद के बीच समानता पर पूछे गए “आपत्तिजनक” प्रश्न के बारे में एक रिपोर्ट माँगी है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उच्च शिक्षा नियामक (The higher education regulator) ने ग्रेटर नोएडा स्थित निजी विश्वविद्यालय को विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट में यह बताने के लिए कहा है कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों, यह सुनिश्चित करने के लिए उसने क्या कदम उठाए हैं?
यूजीसी ने शारदा विश्वविद्यालय को लिखे पत्र में कहा, “यह देखा गया है कि छात्रों ने सवाल पर आपत्ति जताई और विश्वविद्यालय में शिकायत दर्ज कराई। कहने की जरूरत नहीं है कि छात्रों से इस तरह का सवाल पूछना हमारे देश की भावना और लोकाचार के खिलाफ है, जो समावेशिता और एकरूपता के लिए जाना जाता है और इसलिए इस तरह के सवाल नहीं पूछा जाए।”
बीए प्रथम वर्ष के पेपर राजनीति विज्ञान (ऑनर्स) के प्रश्न पत्र में छात्रों से “हिंदुत्व-फासीवाद” के बारे में पूछा गया था। सात अंकों के प्रश्न में पूछा गया, “क्या आप फासीवाद/नाज़ीवाद और हिंदू दक्षिणपंथी (हिंदुत्व) के बीच कोई समानता पाते हैं? तर्कों के साथ विस्तृत करें।”
बता दें कि यह विवादित प्रश्न पत्र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल होने के बाद बवाल मच गया था। उसके बाद विश्वविद्यालय ने प्रश्नों में पूर्वाग्रह की संभावना को देखने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया।
शनिवार (7 मई, 2022) को जारी एक बयान में विश्वविद्यालय ने कहा कि समिति ने प्रश्न को आपत्तिजनक पाया है। उसके बाद वकास फारूक कुट्टे नामक असिस्टेंट प्रोफेसर को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसने ये सवाल बनाया था। कमिटी ने अपनी शुरुआती जाँच में ये भी पाया है कि उक्त सवाल आपत्तिजनक था। वहीं ये भी फैसला लिया गया कि कॉपी की जाँच और मार्किंग के समय इस सवाल को नज़रअंदाज़ किया जाएगा और इससे मार्क्स पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
— Sharda University (@sharda_uni) May 7, 2022
गौरतलब है कि यह पूरा विवाद तब उठा था, जब भाजपा नेता विकास प्रीतम सिन्हा ने इसकी फोटो कॉपी ट्वीट करते हुए उसमें पूछे गए एक सवाल को आपत्तिजनक बताया। यह प्रश्न पत्र BA के राजनीति विज्ञान के साल 2021-2022 सत्र का था। विकास प्रीतम के मुताबिक पेपर को कथित रूप से एक मुस्लिम शिक्षक ने बनाया है।