महिलाओं की स्थिति और अधिकार को लेकर काफी समय से बातें चल रही हैं और साथ ही दावा भी किया जा रहा है कि अब महिलाएँ पुरूषों के बराबर हैं। मगर क्या वाकई में ऐसा है? क्या सच में महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार मिल रहा है? क्या वाकई में महिलाएँ पुरूषों की तरह स्वतंत्र है? इसका जवाब है- शायद नहीं।
महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के पूर्ण अधिकार की बात तो हमारा समाज काफी समय से करता आ रहा है। मगर सच्चाई तो यही है कि महिलाओं को आज भी पूर्ण अधिकार नहीं मिले हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि दुनिया में सिर्फ छह ऐसे देश हैं, जहाँ महिलाओं को पूर्ण अधिकार मिला है। ऐसा विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘वूमेन, बिजनेस एंड द लॉ 2019’ (Women, Business and the Law 2019) में कहा गया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, लताविया, लक्समबर्ग और स्वीडन ऐसे देश हैं, जहाँ महिलाओं को पूर्ण अधिकार प्राप्त है। इस रिपोर्ट को देखकर ऐसा लगता है कि विश्व में लैंगिक समानता तो बढ़ रही है, मगर उसकी रफ्तार काफी धीमी है। ये अध्ययन इसलिए किया जाता है ताकि ये दिखाया जा सके कि कैसे कानूनी अड़चनें महिला रोजगार और महिला उद्यमिता की राह में रोड़ा बनी हुई हैं। इस वजह से उन्हें अपने करियर में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद उन्हें समान अवसर नहीं मिल पाते हैं।
लैंगिक समानता को लेकर किए गए अध्ययन में पूरी दुनिया का औसत 74.71 है। इसका मतलब यह है कि विश्वभर में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले मात्र 75 प्रतिशत अधिकार ही प्राप्त हैं। इसके विपरीत मिडिल ईस्ट और अफ्रीकी देशों को विश्व बैंक के अध्ययन में औसत 47.37 अंक ही हासिल हुए हैं। मतलब इस क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले आधे से भी कम अधिकार प्राप्त हैं।
इस्लामिक देशों में हालात और बदतर
मीडिया में आई आम रिपोर्टों के अलावा विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘वूमेन, बिजनेस एंड द लॉ 2019’ के डेटा को जब और खंगाला गया तो आश्चर्यजनक आँकड़े मिले। 36 पेजों के पीडीएफ में पेज नंबर 24 से पेज 30 तक हर एक देश का वहाँ की महिलाओं से संबंधित 8 आँकड़े दिए गए हैं। सबसे आखिरी कॉलम में महिलाओं की स्थिति का औसत दिया गया है। जिन देशों का औसत इस मामले में 50 से कम है, हमने उसे एक जगह किया है। आपको आश्चर्य होगा यह जानकर कि 21 देशों में महिला अधिकारों का औसत 50 से कम है। आपका आश्चर्य तब और बढ़ जाएगा जब इन 21 देशों में आप 19 ऐसे देशों को देखेंगे जो मुस्लिम देश हैं।
ये विश्लेषण महिलाओं के कहीं जाने, महिलाओं के नौकरी शुरू करने, वेतन मिलने, शादी करने, बच्चे पैदा करने, व्यवसाय चलाने, संपत्ति प्रबंधन और पेंशन प्राप्त करने के आधार पर किया गया है। हैरानी की बात तो ये भी है कि अध्ययन के दौरान ज्यादातर महिलाओं ने कुछ सवालों पर चुप्पी साध ली, जैसे- क्या उन्हें पुरुषों की तरह घर से बाहर आने-जाने अथवा यात्रा करने की आजादी है? और क्या उनके यहाँ का कानून वास्तव में घरेलू हिंसा से उनकी रक्षा करता है? महिलाओं की ये चुप्पी साफ दर्शाती है कि उन्हें इस तरह की आजादी बिल्कुल भी प्राप्त नहीं है।
आमतौर जब हम महिला अधिकारों के बारे में बात करते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि विकसित देशों में महिलाओं को पुरूष के बराबर कानूनी अधिकार प्राप्त हैं, मगर ये सच नहीं है। बता दें कि अमेरिका को इस रिपोर्ट में 83.75 अंक दिया गया है। वहीं यूनाइटेड किंगडम को 97.5, जर्मनी को 91.88 और ऑस्ट्रेलिया को 96.88 अंक प्राप्त हुए हैं। अमेरिका तो लैंगिक समानता वाले टॉप 50 देशों में भी शामिल नहीं है।
आपको बता दें कि विश्व बैंक द्वारा लैंगिक समानता का ये अध्ययन भारत समेत 187 देशों में किया गया। जिसमें कई देश समान अंक पाने की वजह से एक ही पायदान पर हैं। अब बात अगर भारतीय उपमहाद्वीप की बात की जाए तो यहां पर पाकिस्तान की स्थिति सबसे खराब और दयनीय है। पाकिस्तान को महज 46.25 अंक मिला है। इस महाद्वीप में मालदीव 73.75 अंकों के साथ सबसे ऊपर (वैश्विक स्तर पर 33वें पायदान पर) है तो वहीं भारत 71.25 अंकों के साथ दूसरे नंबर (वैश्विक स्तर पर 37वें स्थान) पर है।