एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने 11 जून को मनोज कुमार को आईपीसी की धारा 186 और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 131 के तहत दोषी ठहराया था। अदालत ने पुलिसवालों की गवाहियों को विश्वसनीय मानते हुए ये फैसला सुनाया था और बहस के लिए 25 जून की तारीख मुकर्रर की गई थी।
एसओजी का दावा है कि दम्पति ने राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और नई दिल्ली के भोले-भाले लोगों को चोटी के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला, बैंक, रेलवे जैसे 'मलाईदार' विभागों में नौकरी जैसे प्रलोभन देकर लगभग ₹2 करोड़ ऐंठे हैं। पुलिस ने यह भी दावा किया कि आरोपित दिल्ली के वरिष्ठ नेताओं और नौकरशाहों के सम्पर्क में भी हैं, और लोगों को ठगने के लिए अपने फर्जी प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं।
पुलिस को शक है कि कहीं खुशबू ने ही तो अपने किसी परिचित को नहीं बुलाया था? पुलिस की थ्योरी के अनुसार, हो सकता है कि दोनों में विवाद हुआ हो और हत्यारे ने खुशबू की हत्या करने के बाद ख़ुद के बचने के लिए बुजुर्ग दम्पति की भी हत्या कर दी हो!
इस शख्स ने SMS में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लपेटते हुए कहा कि अगर जरूरत हुई, तो उन्हें भी 'रास्ते से हटा दिया जाएगा'। इससे पहले भाजपा के ही पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा को भी दो दिन पहले ही किसी ने जान से मार देने की धमकी दी थी।
गंभीर ने ट्वीट किया, “ऊपर वाला अब और करीब से देखेगा। मेरी माताओं, बहनों की सुरक्षा और अपराध नियंत्रण के लिए मैंने आज से अपने संसदीय क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरा लगवाने का काम शुरू कर दिया है। वैसे मफलरवाले (केजरीवाल) सर जी मेरा एक कैमरा आपके झूठे वादों पर भी फोकस्ड है।”
प्रवेश का कहना है कि उन्होंने 17 जून को वेस्ट दिल्ली में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्ज़ा कर वहाँ मस्जिदें और कब्रिस्तान बनाने का मुद्दा उठाते हुए दिल्ली के उप राज्यपाल को चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने माँग की थी कि इस पूरे मामले की जाँच कराई जाए और अवैध निर्माणों को हटाया जाए।
"पश्चिमी दिल्ली के संसदीय क्षेत्र में सरकारी जमीन, सड़कों, पार्कों और दूसरे अनुचित स्थानों पर मस्जिदों का निर्माण किया जा रहा है। सार्वजनिक जमीनों पर बनी मस्जिदों के कारण न सिर्फ ट्रैफिक की समस्या होती है, बल्कि आस-पास रहने वाले लोगों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।"
DMRC ने केजरीवाल सरकार के सामने दो प्रस्ताव रखे हैं। पहले प्रस्ताव में योजना को लंबे समय के लिए लागू करने के लिए तकरीबन 12 महीने से अधिक समय लगने की बात कही है। वहीं, दूसरे प्रस्ताव में अस्थायी रूप से लागू करने के लिए गुलाबी टोकन व्यवस्था के जरिए 8 महीने का समय माँगा है।
अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील को ठुकरा दिया कि महज पुलिसवालों की गवाहियों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। एसीएमएम विशाल ने कहा कि कानून में ऐसी कोई प्रीपोजिशन नहीं है कि निष्पक्ष गवाहों से मेल खाने के बावजूद पुलिसवालों की गवाहियों को मंजूर न किया जाए।