यह कहानी है कर्नाटक के बेलगावी जिला स्थित सुदूरवर्ती गाँव शेगुनासी की, जहाँ इस वर्ष भयंकर बाढ़ आई। लेकिन, उनके लिए मदद सरकार से नहीं बल्कि ऐसी जगह से पहुँची कि 10 साल पुराना इतिहास फिर से जिन्दा हो गया।
उत्तरकाशी में शनिवार की रात को अराकोट, माकुड़ी और टिकोची में बादल फटा था। इसके चलते आसपास के गाँवों में भारी बारिश से तबाही मच गई थी। तभी से NDRF की टीमों के अलावा सेना के हेलीकॉप्टर उत्तरकाशी में राहत और बचाव अभियान में मुस्तैदी के साथ जुटे हुए हैं।
हम बिहार में रहते हैं जहाँ की आबादी 13 करोड़ के लगभग है। हमें कश्मीर दिखता है जहाँ की आबादी यहाँ का मुश्किल से दसवाँ हिस्सा होगी। मुझे ये दिखता है कि वहाँ कितना ध्यान दिया जा रहा है और यहाँ कितन कम ध्यान दिया जाता है।
बाढ़ से बिहार में अब तक करीब सौ लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य के 12 जिलों के करीब 26 लाख लोग इससे प्रभावित हैं। राज्य सरकार ने प्रभावित परिवारों के खाते में भेजने के लिए 6000 करोड़ रुपए मुहैया कराए हैं।
बिहार सरकार के आँकड़ों की ही मान लें तो अब तक बाढ़ से 67 लोगों की मौत हो चुकी है। ज्यादातर शव स्थानीय लोगों ने अपनी जान जोखिम में डाल तलाशे हैं। सरकारी अमला जिन गोताखोरों और बचाव दल की तैनाती का दावा कर रहा है वे नजर नहीं आ रहे।
सोशल मीडिया पर एक यूजर ने प्रियंका की यूएस के बीच पर खींची गई तस्वीरों को आधार बनाकर तंज कसा। यूजर ने प्रियंका से पूछा, "सच में...!! आप जिंदा हैं..? हमें लगा आप यूएस के बीच पर अपनी छुट्टियों का आनंद ले रही हैं।"
फिर से यह सारा दोष नेपाल के मत्थे मढ़ा जाएगा। लेकिन, बता दूॅं कि नेपाल किसी बराज से पानी नहीं छोड़ता। नेपाल से राज्य में आने वाली केवल दो नदियों गंडक और कोसी पर बराज है। दोनों की डोर बिहार के जल संसाधन विभाग के हाथों में ही है और पटना से आदेश के बाद ही बराज के फाटक खुलते हैं। इस विभाग के मुखिया वही संजय झा हैं जो बाढ़ आने से पहले दावा कर रहे थे कि सरकार अबकी बार पूरी तरह तैयार है।
आपदा के 72 घंटे बाद राज्य सरकार ने पीड़ितों के लिए 196 राहत केंद्र और 644 सामुदायिक रसोई खोलने का दावा किया है। इनमें 148 केंद्र सीतामढ़ी जिले में खोले गए हैं और मधुबनी में केवल तीन। जबकि, मधुबनी और सीतामढ़ी दोनों जिलों के 15-15 प्रखंड बाढ़ प्रभावित हैं। सरकार की तरफ से बताया गया है कि एनडीआरएफ-एसडीआरएफ की 26 टुकड़ियां लोगों को बचाने में जुटी है।
बाढ़ सरकारी महकमे के अफसरों और नेताओं के लिए उत्सव है। ये वो समय है जब राहत पैकेज के रूप में भ्रष्टाचार का पैकेज आता है। आखिर लगभग पंद्रह साल से सत्ता में रही पार्टी इस समस्या का कोई हल ढूँढने में विफल क्यों रही है? अगर कोसी द्वारा अपने पुराने बहाव क्षेत्र में वापस आने वाले साल को छोड़ दिया जाए, तो बाकी के हर साल एक ही समस्या कैसे आ जाती है?