सेना के मुताबिक 83% स्थानीय आतंकियों का पत्थरबाजी का ही इतिहास होता है। इसलिए, अगर वो आज वो अपने बच्चों को नहीं नहीं रोकते तो साल भीतर उन्हें मरना पड़ेगा।
सुरक्षाबलों ने आतंकियों को कुत्ते की मौत दे दी। अब, जबकि वो मार गिराए गए हैं और भारत सरकार की नई जीरो टॉलरेंस नीति के हिसाब से साल के दो सौ आतंकी निपटाए जा रहे हैं, तो इससे कई सकारात्मक बातें सामने आती हैं........
लाहौरी 30 मार्च को बनिहाल में सेना के काफिले को निशाना बना कर किए गए कार धमाके और पुलवामा के अरिहाल में 17 जून को सेना के वाहन पर किए धमाके में शामिल था, जिसमें दो सैनिकों की जान चली गई थी और नौ अन्य घायल हुए थे।
उमर अब्दुल्ला हों या फिर शेहला रशीद, सोशल मीडिया पर अफवाहों और मनगढ़ंत मुद्दों पर अपने प्रलापों की वजह से अक्सर चर्चा में बने रहने वाले इन सभी का कारगिल विजय की वर्षगाँठ पर सन्नाटे में चले जाना तो यही दर्शाता है कि इनकी खुशियाँ और प्राथमिकताएँ अन्य नागरिकों से भिन्न हैं।
ब्रिज मोहन सिंह ने गंभीर रूप से घायल होकर वीरगति को प्राप्त होने के पहले पाँच पाकिस्तानियों को मौत की नींद सुला दिया, जिसमें से दो को तो उन्होंने केवल अपने खंजर (कमाण्डो नाइफ़) से मारा। अपनी जान और सुरक्षा की परवाह किए बिना दिलेरी और शौर्य की मिसाल खड़ी करने वाले ब्रिज मोहन सिंह को वीर चक्र से नवाज़ा गया।
सौरभ कालिया और अन्य भारतीय सैनिकों पर किए गए बर्बर अत्याचार को पाकिस्तान के सैनिकों ने कई बार स्वीकार किया है। हालाँकि, धूर्त पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से कभी यह स्वीकार नहीं किया कि कारगिल युद्ध में उसके सैनिक शामिल थे।
20 जून 1999 की सुबह 3:30 बजे विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने प्वाइंट 5410 पर फिर से तिरंगा लहरा दिया। इस जीत के बाद विक्रम बत्रा ने कहा था, “यह दिल माँगे मोर।” विक्रम के जज़्बे को देखते हुए यूनिट ने उनको नया नाम दिया ‘शेरशाह’ यानी ‘शेरशाह ऑफ़ कारगिल’।
रविंद्र की नियुक्ति साल 2017 में 5 कुमाऊँ रेजीमेंट में हुई थी। उसकी पोस्टिंग 2018 में अमृतसर में हुई। इस दौरान वह विदेशी महिला के संपर्क में आया। नारनौल पुलिस के प्रवक्ता ने बताया कि यादव महिला से फेसबुक पर चैट करने लगा और कुछ दिन बाद उसने महिला को बताया कि वह सेना में काम करता है। इसके बाद दोनों के बीच वीडियो कॉल पर बात होने लगी।
यात्रा के दौरान जब श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए आगे बढ़े तो उसी दौरान पहाड़ियों में भूस्खलन हो गया और पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े मार्ग की तरफ तेजी से आने लगे। इस पर ITBP के जवान पत्थर के भारी-भरकम टुकड़ों के सामने चट्टान की तरह खड़े हो गए और बिना अपनी जान की परवाह किए पत्थरों को यात्रियों तक पहुँचने से रोकते रहे।
मेजर जनरल शरण ने कहा कि गीता में वो सारी शिक्षाएँ हैं, जिसे एक युद्ध के मैदान में दी गई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गीता किसी ख़ास रिलिजन की पुस्तक नहीं है, युवाओं को इसे ज़रूर पढ़ना चाहिए क्योंकि ये हमें जीवन में आने वाली हालातों के लिए पहले से ही तैयार रखता है।