पिछले विधानसभा चुनाव में 'बिहार में बहार' वाला नारा प्रशांत किशोर के दिमाग की उपज थी। उस दौरान नीतीश राजद-जदयू-कॉन्ग्रेस महागठबंधन का चेहरा थे और प्रशांत किशोर उनके प्रमुख रणनीतिकार थे।
बीजेपी नेता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए नीतीश ने कहा- "अरुण जेटली जी असाधरण और प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेदारी बखूबी सँभाली। वह कानून के जानकार भी थे।"
बिहार के छोटे ऋण लेने वाले कर्ज अदा कर देते हैं, लेकिन जो बड़ी रकम लेते हैं वो आना-कानी करते हैं। बैंकर्स की शिकायत को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने गंभीरता से सुना और आश्वासन दिया कि उनकी सरकार बैंको को लोन वापसी में मदद करेगी।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, अधिकारियों ने भी पुलिस की समस्या जानने की कोशिश की कि फॉयरिंग क्यों नहीं हो पा रही है, लेकिन जब कोई उपाय नहीं नज़र आया तो बिना सलामी के ही अंत्येष्टि प्रक्रिया सम्पन्न की गई।
अनंत सिंह केवल अपने आपराधिक इतिहास के लिए ही चर्चित नहीं रहे हैं। उनके शौक भी अजीबोगरीब हैं। अजगर पालने की सनक को लेकर वे विवादों में रह चुके हैं। एक बार उन्होंने पटना के अपने घर में एक पत्रकार को भी बंधक बना लिया था।
इस फ़ोटो पर जेडीयू विधायक ने तर्क दिया कि अचानक उनके गाल पर एक कीड़ा बैठ गया था, जिसे वो हटा रहे थे। ठीक इसी बीच किसी ने यह फ़ोटो खींच ली और सोशल मीडिया पर वायरल कर दी। विधायक शर्फुद्दीन के इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि सलामी दाएँ हाथ से दी जाती है।
बाढ़ से बिहार में अब तक करीब सौ लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य के 12 जिलों के करीब 26 लाख लोग इससे प्रभावित हैं। राज्य सरकार ने प्रभावित परिवारों के खाते में भेजने के लिए 6000 करोड़ रुपए मुहैया कराए हैं।
विधानसभा के पास प्रदर्शन कर रहे संविदा शिक्षकों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने न सिर्फ़ आँसू गैस के गोले छोड़े, बल्कि वाटर कैनन का भी इस्तेमाल किया। इसके बाद शिक्षकों पर लाठियाँ भाजी गईं। उनकी जम कर पिटाई की गई।
बिहार सरकार के आँकड़ों की ही मान लें तो अब तक बाढ़ से 67 लोगों की मौत हो चुकी है। ज्यादातर शव स्थानीय लोगों ने अपनी जान जोखिम में डाल तलाशे हैं। सरकारी अमला जिन गोताखोरों और बचाव दल की तैनाती का दावा कर रहा है वे नजर नहीं आ रहे।
पटना विशेष शाखा के एसपी ने बीते साल मई में सभी डीएसपी को पत्र भेज कर एक सप्ताह के भीतर संघ और उससे जुड़े संगठनों के पदाधिकारियों का ब्यौरा उपलब्ध कराने को कहा था। हालॉंकि सरकार के इस फैसले की वजह क्या थी यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।