मोहम्मद परवेज अहमद, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह से व्यक्तिगत रूप से भी फोन और व्हाट्सएप मैसेज के द्वारा जुड़ा हुए है। इसके साथ ही, परवेज अहमद कुछ कॉन्ग्रेस नेता के साथ भी जुड़ा है, जिनमें से उदित राज भी हैं। परवेज अहमद 'भीम आदमी' जैसे दलों के व्हाट्सएप समूह से भी जुड़ा हुआ है।
दिल्ली के पॉश इलाके सुखदेव विहार स्थित इस मकान को 10 करोड़ रुपए में खरीदा गया था। जिसमें से 4.43 करोड़ वाड्रा की कंपनी ने दिए थे। ईडी ने आरोप लगाया कि इस मकान का बीकानेर जमीन घोटाले वाले अपराध को अंजाम देने में सीधा संबंध है।
हाई कोर्ट में पेश मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि चिदंबरम को प्राइवेट वार्ड में एडमिट करने की आवश्यकता नहीं है। जेल में ही उनके रेगुलर चेकअप और घर का खाना मुहैया कराने के निर्देश अदालत ने दिए हैं।
मुंबई के वर्ली में स्थित सीजे हाउस को लेकर जो डील हुई थी, उसमें हुमायूँ मर्चेंट का भी रोल था। सीजे हाउस को मिलेनियम डेवेलपर्स ने बनाया था और उसमें इक़बाल मिर्ची की बीवी हाजरा और उसके दोनों बेटों को संपत्ति दी गई थी।
ईडी को अब एक फ़ारूक़ पटेल की तलाश है, जिसने इक़बाल मिर्ची और प्रफुल्ल पटेल के बीच डील में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। इक़बाल मिर्ची के साले मुक्तार पटका से पूछताछ के दौरान ईडी को फ़ारूक़ के बारे में पता चला।
ED की चार्जशीट में उल्लेख किया गया है कि रतुल पुरी, जो मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ के भांजे हैं, और उनके सहयोगियों ने लगभग 30 बैंकों और वित्तीय संस्थानों से व्यवसाय के लिए 8000 करोड़ रुपए की धनराशि ली और उनका दुरुपयोग किया।
कोर्ट में कपिल सिब्बल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कस्टोडियल पूछताछ की ज़रूरत है तब इन्होंने तुरंत 5 सितंबर को कस्टडी क्यों नहीं ली। ईडी ने जब भी चिदंबरम को बुलाया है वो आए हैं। आख़िरी बार चिदंबरम ईडी के सामने 8 फ़रवरी 2019 को पेश हुए थे।
मिलेनियम डेवेलपर्स और इक़बाल मिर्ची ने मिल कर जिस 15 मंजिला कमर्शियल इमारत का निर्माण किया था, उसे अब सीजे हाउस के नाम से जाना जाता है। उसके शेयरहोल्डर्स में एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल का नाम भी शामिल है। ईडी ने इस मामले में 2 लोगों को गिरफ़्तार किया है।
ईडी के अनुसार, यह लोन धोखाधड़ी का बहुत बड़ा मामला है। कार्रवाई बॉम्बे हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप की जा रही है। आरोप है कि शुगर फैक्ट्रीज को स्टेट कोऑपरेटिव बैंक द्वारा तय किए गए मूल्य से कम दाम में बेच दिया गया।
ED ने 2003 में खरीदी गई इन सम्पत्तियों को ज़ब्त इसलिए कर लिया था, क्योंकि उसे शक था कि इसके लिए विदेशी मुद्रा का उपयोग बिना RBI की पूर्वानुमति लिए किया गया है। किसी विदेशी द्वारा अचल सम्पत्ति खरीदे जाने के मामले में यह इजाजत ज़रूरी है।