कॉलेज में 'आज़ादी' से जुड़े कई पोस्टर चस्पा मिल जाएँगे। जम्मू कश्मीर की 'आज़ादी' को लेकर भी कई पोस्टर लगाए गए हैं। कॉलेज के कार्यक्रमों का इस्तेमाल सीएए को लेकर भ्रम फैलाने के लिए किया जा रहा है। जम्मू कश्मीर पर 'कब्जा' और तालाबंदी होने की बात कही गई है।
शबीब मोमिन वैन की पीछे वाली सीट पर आकर बैठ जाता था। बड़े बच्चों को दूसरी तरफ देखने के लिए कहता था और 5 साल की बच्ची का प्राइवेट पार्ट छूता था। वो बच्ची को धमकी भी देता था कि अगर उसने ये बात किसी को बताई तो वो उसकी माँ और दादी माँ को मार डालेगा।
उसे जब पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया गया तो वह रोने लगी। अपनी तीन बेटियों का हवाला देकर ख़ुद के निर्दोष बताने लगी। पुलिस ने उसे छोड़ दिया और वह सीधे सलेम के पास गई। जब पुलिस को अपनी भूल का एहसास हुआ तब तक...
संघ की छात्र ईकाई की तरफ से इसकी जानकारी शिवसेना के प्रभुत्व वाली बीएमसी को कई दिन पहले दी गई थी। बावजूद इसके न तो बीएमसी ने पूरी तरह सहयोग किया और न ही साफ-सफाई के लिए आवश्यक साजोसामान पूरी तरह मुहैया कराए।
प्लेटफॉर्म पर मौजूद पब्लिक ने लुटेरों में से एक 26 वर्षीय मो. इब्राहिम शेख को मौके से धर दबोचा, जिसे बाद में पुलिस के हवाले कर दिया गया। जबकि उसका साथी मौके से भागने में कामयाब हो गया।
नूरुल्ला और उसके रिश्तेदारों ने हज पर जाने की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने आरोपितों से संपर्क किया। बकौल नूरुल्ला, जनवरी से अगस्त के बीच उनलोगों ने कई किश्तों में कुल 1.1 करोड़ रुपए दिए, लेकिन उन्हें हज के लिए आरोपितों ने नहीं भेजा।
बकौल रोहित उसके कैब में बैठने के बाद से यह यात्री फोन पर भड़काऊ बातें कर रहा था। शाहीन बाग़ के बारे में बातें कर रहा था। कह रहा था- "इस देश में आग लगने वाली है।"
देश में एक ऐसा प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान है, जहाँ वामपंथियों ने JNU से भी ज़्यादा तबाही मचा रखी है। निर्भया का बलात्कारियों के समर्थन से लेकर सेना को बलात्कारी और हिंसक बता तक, वहाँ के वामपंथी छात्र और प्रोफेसर घृणा की नई इबारत लिख रहे हैं। TISS में वामपंथियों की साज़िश का भंडाफोड़।
इस रैली में न सिर्फ़ शरजील इमाम के समर्थन में नारे लगाए गए बल्कि जम्मू कश्मीर की 'आज़ादी' की भी बात कही गई। 'राजीव तेरे सपनों को, रावण तेरे सपनों को, पायल तेरे सपनों को- हम मंज़िल तक पहुँचाएँगे' जैसे भड़काऊ नारे लगाए गए।
"1919 में दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने बाद अंग्रेज यह समझ गए थे कि हिंदुस्तान में उनके खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है। ऐसे में उन्होंने रॉलेट एक्ट जैसे कानून को भारत में लागू किया। वर्ष 1919 के इस रॉलेट एक्ट और 2019 के नागरिकता संशोधन कानून को अब इतिहास के काले कानून के रूप में जाना जाएगा।"