हालाँकि, वोटों का ये अंतर 2019 में सबसे ज्यादा है, मगर भारत के चुनावी इतिहास में यह दूसरी सबसे बड़ी जीत है। पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम मुंडे ने अक्टूबर 2014 में उप चुनाव के दौरान महाराष्ट्र की बीड सीट पर 6.96 लाख वोटों से जीत हासिल की थी। पाटिल के जीत का आँकड़ा इससे थोड़ा सा ही कम है।
पूरे बिहार की बात करें, तो नोटा का बटन सर्वाधिक गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र में 51,660 मतदाताओं ने दबाया, जो देश में सबसे ज्यादा है। इस सीट पर जदयू के अजय कुमार सुमन को जीत मिली, जिन्होंने राजद उम्मीदवार सुरेंद्र राम को 2.86 लाख वोटों से शिकस्त दी।
दलाई लामा ने भारत के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि भारत की उदारता और दयाशीलता की वजह से ही वो लोग निर्वासन के बावजूद अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को बचा कर रख पाए।
दिग्विजय सिंह को भोपाल सीट से विजयी बनाने के लिए महामंडलेश्वर स्वामी वैराग्यानंद ने कुल 5 क्विंटल मिर्च डालकर एक विशाल हवन किया था और वहीं प्रतिज्ञा ली थी कि अगर कॉन्ग्रेस ये सीट हारती है, तो वह इसी हवनकुण्ड में समाधि ले लेंगे।
लोकसभा चुनाव में न केवल जातीय गणित फेल हुआ है, बल्कि वंशवादी राजनीति को भी भारी झटका लगा है। राजनीतिक परिवार से आने वाले अधिकांश उम्मीदवारों को इस बार हार का सामना करना पड़ा है।
इस बैठक में भी नरेंद्र मोदी को एनडीए का नेता चुना जाएगा। इसके बाद मंत्रिमंडल गठन और पोर्टफोलियो को लेकर अमित शाह कल और परसो अलग-अलग एनडीए सहयोगियों के साथ भी विचार विमर्श करेंगे।
भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर बिना किसी पुख्ता सबूत या तथ्य के निराधार आरोप लगाए जाने पर औंधे मुँह गिरे राहुल गाँधी को जनता ने मुँहतोड़ जवाब दिया है। वैसे इसकी संभावना भी कम ही है कि इतना कुछ होने के बाद भी वो इससे कुछ सीख ले पाएँगे।
"यूपी कांग्रेस के लिए परिणाम निराशाजनक हैं। अपनी ज़िम्मेदारी को सफ़ल तरीके से नहीं निभा पाने के लिए ख़ुद को दोषी पाता हूँ। नेतृत्व से मिलकर अपनी बात रखूँगा।"
"तुमने जिस ख़ून को मक़्तल में दबाना चाहा, आज वह कूचा-ओ-बाज़ार में आ निकला है। कहीं शोला, कहीं नारा, कहीं पत्थर बनकर" शायर साहिर लुधियानवी ने ये पंक्तियाँ 23 मई 2019 की सुबह को ध्यान में रखकर नहीं लिखी थीं। ये पंक्तियाँ लिखी जा चुकी हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह नरेंद्र मोदी को एक बार फिर देश ने सर आँखों पर बिठा लिया है।