पढ़िए 1984 सिख दंगों को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह के विचार, उन्हीं के शब्दों में। सुलखान सिंह लिखते हैं कि दंगा वो होता है, जहाँ दोनों तरफ से मारकाट की गई हो लेकिन 1984 में राजीव गाँधी के इशारे पर एकतरफा नरसंहार किया गया था, कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा।
नरसिम्हा राव ने शांति भूषण के आग्रह पर किसी उच्चपदस्थ मंत्री से बात की थी लेकिन उधर से दंगों को रोकने के लिए सेना की तैनाती के संबंध में कोई उत्तर नहीं मिला जिसके बाद राव चुप हो गए थे तब शांति भूषण वहाँ से चले गए थे।
एक पिता के तौर पर तो बच्चों को हमेशा परिवार के साथ खड़े रहना चाहिए, लेकिन वो पिता प्रधानमंत्री भी था, और दुर्भाग्य से चोर और हत्यारा भी। देश उनके पिता से बड़ा है और अगर ये दोनों देशभक्त हैं तो राहुल या प्रियंका को मोदी की बात सुन कर चुपचाप रोने के बाद, आँसू के घूँट पीकर, रैली में किसी और विषय पर भाषण देते रहना चाहिए था।
सीबीआई ने सज्जन कुमार के राजनीतिक रसूख का जिक्र करते हुए अदालत से कहा कि वो बाहर निकलते ही गवाहों को आतंकित कर सकता है। 34 वर्ष बाद आए फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सज्जन कुमार को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। वो 3 महीने से जेल में है।
दिल्ली उच्च न्यायलय ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 1984 सिख दंगों के मामले में दोषी करार दिया है। उन पर लगे दंगे भड़काने की साजिश रचने और भीड़ को उकसाने के आरोप को अदालत ने सही पाया।
थरूर ने कमल नाथ की तुलना प्रधानमंत्री से करते हुए कहा कि जैसे नरेन्द्र मोदी को 2002 दंगों में उनकी भूमिका को लेकर "संदेह का लाभ" मिला है वैसे ही कमल नाथ को भी 1984 दंगों को लेकर मिलना चाहिए।