असल आश्चर्य इस किताब को पढ़ने के बाद हुआ। पूरी किताब में कहीं भी ऐसी बात नजर नहीं आई, जिस पर दंगा हो सके, दर्जनों लोगों की जानें जाएँ और लेखक पर दर्जनों बार जानलेवा हमले हों...।
प्रेमचंद की 'रंगभूमि', 'कर्मभूमि' उपन्यास हो या भारतेंदु हरिश्चंद्र का 'भारत-दर्शन' नाटक या जयशंकर प्रसाद का 'चंद्रगुप्त'- सभी देशप्रेम की भावना से भरी पड़ी है।