पिछले 10-15 सालों में जनता ने इस बात को बखूबी समझा है कि कॉन्ग्रेस पार्टी में सत्ता-सुख की लालसा रखने वाला केन्द्रीय नेतृत्व यानी गाँधी परिवार पर गाहे-बेगाहे भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। आरोप लगने से लेकर इसकी सच्चाई आने तक जनता एक मतदाता के रूप में अपना काम कर चुकी होती है। क्यों, क्योंकि खून-पसीना एक कर टैक्स भरने वाली जनता और करे तो क्या करे?
राहुल ने बरसों पहले कहा था, "कॉन्ग्रेस एक परिवार है जिसमें तेजी से बदलाव की जरूरत है। सोच-समझकर, प्यार से और सबकी सुनकर बदलाव करना है।" इसलिए राहुल का उत्तराधिकारी चुनने के लिए कॉन्ग्रेसियों ने तेजी से बदलाव करते हुए उनकी मॉं को चुन लिया है।
जगमोहन को कसूरवार बताना कॉन्ग्रेस के लिए जरूरी भी है, क्योंकि इससे नेहरू से लेकर राजीव तक के बेतुके फैसलों पर पर्दा डल जाता है। इस कोशिश में बड़ी सफाई से यह बात छिपाई जाती है कि कुछ परिवारों की गलती से बदतर हुए हालात पर काबू पाने के लिए जगमोहन दूसरी बार श्रीनगर भेजे गए थे।
यूॅं तो गॉंधी परिवार वह 'फेविकोल' बताया जाता है जो पूरे कॉन्ग्रेस को जोड़कर रखती है। पर 4 अगस्त के परिवर्तन कार्यकर्ता सम्मेलन के पोस्टर में हुड्डा के अलावा उनके पुत्र पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा की ही तस्वीर है।
वरुण गाँधी ने जनता से नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए भाजपा को जिताने का संकल्प लेने की बात कही। इसके साथ ही उन्होंने मुस्लिम और एससी-एसटी मतदाताओं से भी भाजपा को वोट देने का आह्वान किया।
चाको और चाको टाइप्स चिरकुट लोग, भूल चुके हैं कि समय बदल गया है और गाँधी चालीसा का पाठ उन्हें सोनिया और राहुल की नज़र में तो 'अले मेला बच्चा' तक तो पहुँचा देगा लेकिन भारत की जनता से नहीं बचाएगा जिसने नेहरू और नकली गाँधियों के कुकर्मों को लगातार झेला है।