कश्मीर में आतकंवाद और अलगाववाद की जननी और पोषक कही जाने वाले प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के चार पूर्व नेताओं ने चुनावी दंगल में उतरते हुए बतौर निर्दलीय अपना-अपना नामांकन जमा कराया।
जेएनयू के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक आनंद रंगनाथन ने कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए 'इजरायल जैसे समाधान' की बात कही थी, जिसके बाद से वो लगातार इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं।
UNSC ने पाकिस्तान के कश्मीर प्रलाप के एक और प्रयास को खारिज कर दिया, और यह स्पष्ट किया कि यह विषय भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रूप से ही हल किया जाना चाहिए है।
स्वास्थ्य सेवाएं भी पूरे ज़ोर-शोर से चल रहीं हैं। 5,10,870 मरीजों का पंजीकरण हुआ है, और 15,157 सर्जरियाँ हुईं हैं। ₹108 करोड़ केवल जम्मू-कश्मीर बैंक से निकाले गए हैं।
कश्मीर के कॉन्ग्रेसी नेता सलमान निज़ामी ने केंद्र/राष्ट्रपति शासन और मुफ़्ती-अब्दुल्ला शासन के समय मारे गए लोगों की संख्या की तुलना की। उन्होंने लिखा, "उमर अब्दुल्ला के समय फैली अशांति में 200 लोग मारे गए, महबूबा मुफ़्ती के समय फैली अशांति में 260 लोग मारे गए, 2019 की अशांति में शून्य मारे गए।"
दो-चार कठमुल्ले पाकिस्तान का झंडा लेकर सड़क बंद करने खड़े तो हो गए, लेकिन उनकी कोई सुन ही नहीं रहा था। यहाँ तक कि सामने से आ रहीं गाड़ियों के न रुकने पर वे खुद कुचले जाने से बचने के लिए इधर-उधर सरकते नज़र आए।
हिंदुस्तान ने पहले ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह हिदायत दे दी थी कि कश्मीर उसका आंतरिक मसला है। अतः चाहे उसे पूर्ण राज्य से केंद्र-शासित प्रदेश में बदलना हो, या अनुच्छेद 370 के ज़रिए उसे मिले विशेष प्रावधानों को खत्म करना, हिंदुस्तान पूरे कश्मीर (POK और अक्साई चिन सहित) में किसी भी बाहरी शक्ति का हस्तक्षेप सहन नहीं करेगा।
सत्य पाल मलिक ने आरोप लगाया कि अपने साथ प्रतिनिधिमंडल लाकर राहुल गाँधी मामले का राजनीतिकरण कर रहे हैं। यही नहीं, उन्होंने इससे घाटी में उपद्रव फैलने और आम लोगों के लिए दिक्कतें खड़ी होने की आशंका भी जताई।