मध्य प्रदेश के बीना में एक किसान ने फसल के नुकसान पर मुआवजा न मिलने के चलते आत्महत्या कर ली, स्थानीय लोगों के प्रदर्शन के बाद जिला प्रशासन ने परिवार की मदद करने का आश्वासन दिया है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में कॉन्ग्रेस की कर्जमाफी योजना फ्लॉप हो गई है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं और विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। इन सबके बावजूद मीडिया इन ख़बरों को तवज्जो नहीं दे रहा। जबकि, यूपी में छोटी-मोटी गड़बड़ियों को भी हाइलाइट किया गया।
5 बार सांसद और 2 बार विधायक रह चुके लक्ष्मण सिंह ने कहा- अब समय है कि आगे वादे करने की बजाय, उचित समय बताया जाए कि किसानों का पूरा कर्ज कब माफ कर दिया जाएगा।
एक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार जिन 13,988 खातों से पैसे गायब हुए हैं, वह उन किसानों के हैं जो इस योजना के लिए तो अयोग्य थे लेकिन उनके खाते में धनराशि फिर भी स्थानांतरित हो गई। बैंकों को ऐसे खातों में जमा किए गए ₹60 करोड़ (लगभग) वसूलने के निर्देश दिए गए हैं।
भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष पूनम चंद्राकर ने कर्ज़माफ़ी की सच्चाई जानने के लिए समिति का गठन किया है। इस जाँच समिति में मोर्चा के प्रदेश महामंत्री भारत सिंह सिसोदिया, चंदन साहू, गौरीशंकर श्रीवास और दिलीप पाणिग्रही शामिल हैं।
मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस सरकार किसानों की कर्जमाफ़ी के बड़े वादे के साथ सत्ता में आई थी। इस दौरान कॉन्ग्रेस पार्टी ने प्रदेश के 34 लाख किसानों के 2 लाख रुपए तक का कर्ज माफ़ करने का वादा किया था।
बलिदान हुए 40 जवानों में से 23 सीआरपीएफ कर्मियों ने बैंक से कर्ज लिया हुआ था और इसी दिशा में बैंक ने तत्काल प्रभाव से बकाया कर्ज माफ़ करने का निर्णय किया है।
कॉन्ग्रेस ने किसानों की क़र्ज़माफ़ी के अपने चुनावी जुमले को जनता के बीच जमकर भुनाया था, अब इस प्रकार के प्रकरणों से किसान ऋणमाफ़ी मात्र एक कॉन्ग्रेस का चुनावी पैंतरा बनकर रह गया है।
कर्ज़ माफ़ी के नाम पर यह घोटाला कितने बड़े स्तर का है, इसका पैमाना है अकेले डूंगरपुर जिले से लाभार्थियों की सूची। यहां के 1700 से अधिक किसानों के नाम उस सूची में हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि किसी ने भी लोन नहीं लिया था।
किसानों के ऋण भुगतान ना करने से बैंकों के वित्तीय प्रबंधन पर बुरा असर पड़ता है और वो नये कर्ज देना बंद कर देती है या धीमी कर देती है। ताजा आंकड़े भी इस दावे की पुष्टि करते दिखाई पड़ रहे हैं। बैंकों द्वारा किसानों को कर्ज देने की प्रक्रिया धीमी करने से अंततः किसानों को ही मार पड़ती है।