तर्क हों तो आप लेख की शुरुआत विदेशी लेखक का नाम लेकर करें या फिर 'लगा दिही न चोलिया के हूक राजा जी' से, मुद्दे पर फ़र्क़ नहीं पड़ता। कुतर्क हों तो आप अपने पोजिशन का इस्तेमाल दंगे करवाने के लिए भी कर सकते हैं, कुछ लोग वही चाह रहे हैं।
मतलब, संकट मोचन मंदिर से लेकर लोकतंत्र के मंदिर संसद तक हमले में मरने वाले अधिकतर लोग हिन्दू ही होते हैं (क्योंकि जनसंख्या ज्यादा है और टार्गेट पर भी वही होते हैं) और मारने वाले हर बार कट्टरपंथी होते हैं, फिर भी असली हिंसा तो गौरक्षकों द्वारा गौतस्करों को सरेराह पीट देना है।
सरकार डरा रही है, तो आप मत डरिए। आप अपनी स्टोरी कीजिए और आगे बढ़िए। सबूत होंगे तो देश का सुप्रीम कोर्ट चार बजे सुबह में भी खुलता है, आतंकियों के लिए। आप तो फिर भी पत्रकार हैं!