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हम साथी हैं… हमें साथ चलना है… फिर स्त्रीवाद के इस दौर में पुरुष हीन क्यों?
क्या वाक़ई पुरुष इतना भावना-हीन है कि उसे किसी भी तकलीफ पर दर्द नहीं होता। वह रो नहीं सकता। या वह इतना संबल है कि हर परेशानी को सँभाल सकता है। नहीं, यह भी सदियों से चली आ रही है परिपाटी की तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित एक धारणा है।
मिल गया प्रमोशन, तो पति हो गया टेंशन?
लैंगिक संबंधों के मशहूर जानकार रॉलो तोमासी कहते हैं कि महिलाएँ अपना यौन और सामाजिक जोड़ीदार हमेशा अपने से ‘ऊँचे’ दर्जे का ही चाहतीं हैं- और यह उनकी प्राकृतिक-जेनेटिक प्रवृत्ति है। यह अनुवांशिक विकास से विकसित हुई विशेषता है।