जिस वाइस चांसलर तारिक मंसूर ने इस नियुक्ति को मंजूरी दी है उन्हें रविवार को अलीगढ़ में इंटरनेट सेवाओं की बहाली के तुरंत बाद, शिक्षकों, छात्रों और ग़ैर-शिक्षण कर्मचारियों ने निष्कासित कर दिया था। कहा था कि जब तक वे कैंपस छोड़कर नहीं जाते विश्वविद्यालय प्रशासन का बहिष्कार किया जाएगा।
"वाइस चांसलर और रजिस्ट्रार से अनुरोध है कि वे वीसी लॉज और रजिस्ट्रार के लॉज को खाली कर दें। सभी लोग तब तक विश्वविद्यालय प्रशासन का बहिष्कार करेंगे, जब तक यह दोनों अपना इस्तीफ़ा नहीं दे देते और कैंपस छोड़कर चले नहीं जाते।"
लखनऊ में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में गुरुवार को जमकर हिंसा हुई। इसमें उपद्रवियों ने पुलिसकर्मियों पर जमकर पथराव किया, उनपर काँच की बोतलें बरसाईं। दंगाईयों की भीड़ शहर के मुख्य इलाकों में घुस गई और जमकर आगजनी व पथराव किया।
"मोटा भाई सबको हिंदू-मुस्लिम बनना सिखा रहे हैं, लेकिन इंसान नहीं। जब से आरएसएस अस्तित्व में आया है तब से वे संविधान में यकीन नहीं रखते। कैब से मुस्लिम दूसरी श्रेणी का नागरिक होगा और बाद में उसे एनआरसी लागू करके उसका शोषण किया जाएगा।"
नागरिकता संशोधन विधेयक का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विरोध शुरू। खुद को 'छात्र' कहने वाले उन्मादियों के समूह ने कैंपस में सभा की, जिसमें CAB को मुस्लिम विरोधी करार दिया गया। इसके बाद छात्रों ने नागरिकता संशोधन विधेयक की प्रतियाँ जलाईं और ‘हिंदुत्व मुर्दाबाद’ के नारे भी लगाए।
चौधरी के नाती विजय कुमार सिंह ने इसी साल एएमयू के विदेशी भाषा विभाग (स्पेनिश) में दाखिला लिया है। 28 अगस्त को यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के सामने ही कुछ सीनियर छात्रों ने उनसे अभद्रता की थी।
AMUTA के सेक्रेट्री नजमुल इस्लाम ने उनसे बातचीत में बताया कि ऐसा यूनिवर्सिटी के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब यहाँ पर ईद मिलन के सेलीब्रेशन नहीं हो रहे हैं।
नाम बताने से इनकार करने पर सीनियर छात्र गाली-गलौज पर उतर आए। भड़के हुए सीनियर छात्रों ने अपने अन्य साथियों को भी बुला लिया और अभद्रता की। विजय के मुताबिक प्रॉक्टर कार्यालय की टीम उनके ख़िलाफ़ ही बातें कर रही थीं।
"बच्चों को कुरान की शिक्षा देता हूँ। यह (छेड़खानी) 4-5 बार हुआ है।" मौलवी मोहम्मद अहमद ने यह भी कबूला कि उसने बच्ची के साथ 4-5 बार 'गंदी हरकत' की है। वो पीड़ित नाबालिग बच्ची को पढ़ाने जाता था, तो थोड़ी-बहुत छेड़खानी हो गई।
बात चाहे हस्तमैथुन और ऑर्गेज़्म के जरिए महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाली स्वरा भास्कर की हो या फिर उन्हीं के जैसी काम के अभाव में सोशल मीडिया पर एक्टिविस्ट्स बने फिर रहे अन्य मीडिया गिरोह हों, सब जानते हैं कि उन्हें कब कैंडल बाहर निकालनी है और किन घटनाओं का विरोध करना है।