“मुझे खुशी है कि भारत का बँटवारा हुआ क्योंकि अगर भारत का बँटवारा नहीं होता तो हमें कई 'डायरेक्ट एक्शन डेज' देखने पड़ते। ऐसी पहली कार्रवाई हमने जिन्ना के जीवित रहते 16 अगस्त 1946 को देखी थी, उस समय कलकत्ता में हजारों हिंदुओं को मार दिया गया था।"
गाँधी की हत्या की पेंटिंग अपने बजट दस्तावेज पर छापने के कारण केरल सरकार विवादों के केंद्र में है। कॉन्ग्रेस और IUML भी इस मामले में वामपंथी सरकार को आड़े हाथों ले रही है।
धर्मनिरपेक्ष देश के एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की अदालत में गॉंधी की प्रतिमा स्थापित नहीं हो पाई। ऐसा करने वाले ही गाँधी के नाम को भुनाने के फेर में लगे रहते हैं। तो क्या उनके लिए गॉंधी प्रतीक से ज्यादा कुछ भी नहीं?
"अंग्रेज मुस्लिमों के कम दुश्मन थे। 1900 से लेकर 1950 तक अंग्रेजों ने मुस्लिमों के साथ कम पक्षपात किया। लेकिन न्यायपालिका 1950 के बाद से मुस्लिमों की दुश्मन बन गई है। 1950 के बाद मुस्लिमों को एक तरह की ग़ुलामी में डाल दिया गया।"
नेताजी को 1580 वोट, गाँधी के पट्टाभि को 1377 मत... फिर भी बीमार बोस जब स्ट्रेचर पर कॉन्ग्रेस के त्रिपुर सेशन में पहुँचे, तब 2 लाख लोगों के सामने उनके राजनैतिक जीवन को सबसे बड़ा झटका लगा। अध्यक्ष चुने जाने के बाद भी उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा।
फॉंसी से कुछ घंटे पहले वो वर्जिश कर रहे थे। जेल के एक अधिकारी ने पूछा- अब इसकी क्या जरूरत? जवाब मिला- हिन्दू हूॅं। पुनर्जन्म में विश्वास रखता हूॅं। अगले जन्म में भारत मॉं की सेवा के लिए और तंदरुस्त होकर लौटना चाहता हूॅं।
मीडिया गिरोह ऐसे आंदोलनों की तलाश में रहता है, जहाँ अपना कुछ दाँव पर न लगे और मलाई काटने को खूब मिले। बरखा दत्त का ट्वीट इसकी प्रतिध्वनि है। यूॅं ही नहीं कहते- तू चल मैं आता हूँ, चुपड़ी रोटी खाता हूँ, ठण्डा पानी पीता हूँ, हरी डाल पर बैठा हूँ।
ओवैसी ने नागरिकता संशोधन विधेयक को करोड़ों यहूदियों की हत्या का आदेश देने वाले जर्मन तानाशाह हिटलर के कानूनों से भी बदतर बताया। साथ ही कहा कि एक ऐसा कानून लाया जा रहा है जो नागरिकता के लिए आस्था को पैमाना बनाता है।
कक्षा 10 के कमजोर छात्रों के लिए शिक्षा विभाग ने मॉडल पेपर तैयार किया है। इसमें कहा गया है, “कुबुद्धि बेहद अवगुणी और शराबी था और गाँधी जी जैसा जीवन जीता था।” यह पेपर कई महीनों से सरकारी स्कूली में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।
"महात्मा गाँधी की हत्या कॉन्ग्रेस की अनुमति से हुई थी और इसका सबसे ज्यादा फायदा भी कॉन्ग्रेस ने ही उठाया है। कॉन्ग्रेस गाँधी की हत्या का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करती रही है। कॉन्ग्रेस की अपनी कोई नीति ही नहीं है। वो सत्ता सुख के लिए कुछ भी कर सकती है।"