साल 2019 के दिसंबर माह में जामिया नगर दंगों के साथ शुरू हुए शाहीन बाग प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल में टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन ही उचित है, जगह घेर कर बैठ जाना गलत है क्योंकि लोगों को इससे परेशानी होती है।”
सोचने वाली बात है कि समय-समय पर कालजयी निर्णय देने वाली यही संस्था दिवाली आने पर वक्त से पहले निर्देश जारी कर देती है और यह भी तय करती है कि दही हाँडी की ऊँचाई कितनी होगी। इसके अलावा कौन सी फिल्म बिना कटे-छँटे रिलीज होगी, इसको भी एक दिन की आपाताकालीन सुनवाई में तय कर लिया जाता है। लेकिन, शाहीन बाग जैसी प्रायोजित नौटंकी पर इनको अपना निर्णय देने में अक्टूबर 2020 तक का समय लग जाता है।
ऐसे में सवाल तो उठता है कि इतने महीनों बाद इस निर्णय के क्या मायने हैं? क्या इससे यह सुनिश्चित होगा कि आगे कोई शाहीन बाग पैदा नहीं होगा और ये कट्टरपंथियों का समूह दोबारा पूरे भारत को हिन्दूविरोधी दंगों की आग में नहीं झोंकेगा?
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