हिन्दुओं के लिए ही नहीं, पूरे भारतीय समाज के लिए पाँच सौ वर्षों से खड़े एक कोढ़ और एक लुटेरे नस्ल के आतंकी विचारधारा की कहानी कहती एक इमारत ‘जय श्री राम’ के नारों से 6 दिसम्बर को भरभरा कर गिर गई। बाबरी एक घटिया इमारत थी, ढह गई। बाद में न्यायालय ने भी कह दिया कि वहाँ राम मंदिर था। बाबर मर गया, बाबरी ढह गई। जहाँ मंदिर था, मंदिर वहीं बनेगा।
बाबरी जिनके लिए जिंदा है वो रंग-पेंट ले कर पोस्टर बनाते रहें, घर में वैसे ही लगा कर रखें जैसे कश्मीरी आतंकियों के घर में ईरान के कासिम सुलेमानी की तस्वीरें लगी होती हैं। अपने घर में जिन्हें बाबर को बाप मानना है, वो मानते रहें। बहुसंख्यकों को गलत इतिहास की भाँग पिला कर एक समय तक ही सुलाया जा सकता है। अब वह समय आ गया है कि जब भी कोई ‘बाबरी जिंदा है‘ कहे, तो हमें कहना चाहिए कि हाँ, तीस हजार जिंदा है, और एक-एक को तोड़ कर, मंदिर वहीं बनाएँगे।
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