सुधी पाठको,
सीताराम
2024 के शुरुआती क्षणों में आपसे संवाद स्थापित करने के लिए मुझे इससे उपयुक्त कोई और शब्द नहीं मिल रहा। यद्यपि मैं इस सत्य से अवगत हूँ कि साल/वर्ष/कैलेंडर का बदल जाना कोई दुर्लभ घटना नहीं है। 2023 बीत गया, 2024 आ गया। वह क्षण भी आएगा जब 2024 की यात्रा पूरी हो जाएगी और 2025 आ जाएगा।
लेकिन कुछ वर्ष ऐसे होते हैं जो मानव सभ्यता के इतिहास में अमिट होते हैं। जो किसी राष्ट्र के भविष्य के सैकड़ों सालों का निर्धारण कर चले जाते हैं। जो किसी समाज की सहिष्णुता, धर्मपरायणता और जिजीविषा का परिचायक होते हैं। जो सैकड़ों साल बाद भी किसी राष्ट्र/किसी समाज के लिए मुश्किल क्षणों में प्रेरणा बन जाते हैं। उनको संघर्ष का ताप प्रदान कर जाते हैं। 2024 एक ऐसा ही वर्ष है।
सनातन के इतिहास में 2024 जैसे वर्ष आते रहे हैं। यही कारण है कि दुनिया भर की सभ्यताएँ खंडहर हो गईं, पर हम जीवित हैं। तमाम षड्यंत्रों और बर्बरता को झेलकर भी हम फल-फूल रहे हैं। हम मानव इतिहास का वो अध्याय बन चुके हैं जो अमिट है। ऐसा नहीं है कि 2024 में षड्यंत्रकारी शक्तियों का निर्मूल नाश हो जाएगा, लेकिन 2024 यह निश्चित करके जाएगा कि जब भी षड्यंत्र के बादल घने हो हमारे ज्ञान का प्रकाश उसको चीरकर जगत को अपने प्रकाश से आलोकित करे।
अयोध्या… एक अध्याय
2024 की 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। हिंदुओं के करीब 500 साल के संघर्ष और सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने इस क्षण का आना सुनिश्चित कर दिया था। लेकिन 2024 में ही इस क्षण का आना इसे इतिहास का एक अमिट वर्ष बना जाता है।
रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा केवल मंत्रोच्चार की प्रक्रिया नहीं है। न ही इसका महत्व धार्मिक कर्मकांड तक सीमित है। यह भारत के स्वाभिमान का प्रतीक है। यह भारत के वैभव का द्वार है। यह वो रास्ता है जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को उस रामराज की ओर ले जाता है, जो संसार की सबसे आदर्श व्यवस्था है। वह व्यवस्था जिससे भारत विश्वगुरु कहलाया। वह व्यवस्था जो वसुधैव कुटुम्बकम को गढ़ती है। जो सत्यमेव जयते को ज्योति प्रदान करती है।
अयोध्या जी में श्रीराम का विराजमान होना, वह संदेश देती है जो पूरब को पश्चिम से और उत्तर को दक्षिण से जोड़ती है। जिसमें अगड़े-पिछड़े का, रंग का, वर्ण का भेद नहीं है। श्रीराम वह नाम है, जिसका उद्घोष होते ही षड्यंत्रकारी व्याकुल हो उठते हैं। आश्चर्य नहीं है कि प्राण-प्रतिष्ठा से पहले ही इन षड्यंत्रकारी शक्तियों का नकाब उतरने लगा है। वे इस भय से अक्रांत हैं कि 2024 में भारत उनको वही गति प्रदान करेगा जो ताड़का से लेकर रावण तक के हिस्से आया।
2024 आम चुनावों का वर्ष
भारत लोकतंत्र की जिस व्यवस्था में जीता है, उसमें हरेक 5 साल पर आम चुनाव होना ही है। बेमेल राजनीतिक प्रयोगों के कारण कभी-कभी समय पूर्व चुनाव भी हुए हैं। भले आम जनता अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल कर सरकारें 5 साल के लिए चुनती हैं, लेकिन कुछेक चुनाव ऐसे होते हैं जिनका जनादेश अगले कई दशक की दिशा का निर्धारण कर जाते हैं।
2024 का आम चुनाव भी ऐसा ही है। अर्थव्यवस्था हो या खेल, शिक्षा हो या चिकित्सा, समृद्धि हो या खेत-खलिहान, विज्ञान हो या पुराण… पिछले 10 सालों के श्रम से भारत ने अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं, उन तक पहुँचने की उसकी गति कैसे होगी, यह 2024 का जनादेश ही निश्चित करेगा। इसलिए 2024 भारत के मतदाताओं के लिए दायित्व बोध का भी वर्ष है।
साध्य और साधन… सब कुछ ऑपइंडिया के पाठक ही
भारत और सनातन विरोधी शक्तियों से वैचारिक संघर्ष के लिए ही ऑपइंडिया आया। अपनी स्थापना के समय से ही इन शक्तियों के निशाने पर हम हैं। इस संघर्ष में आप पाठक ही हमारे साध्य और साधन दोनों बने। यह आपका ही बल है कि ये षड्यंत्रकारी शक्तियाँ हमारा बाल बाँका न कर सकीं। हमने भी 2024 जैसे किसी वर्ष के आगमन के स्वप्न के ही साथ यह यात्रा शुरू की थी। इस वर्ष हम अपने विस्तार के चरण में होंगे। सूचनाओं के कई प्रकल्पों पर कार्य शुरू करेंगे। यह सब कुछ करने का साहस हमें आप पाठकों ने दिया है। इसके लिए संसाधन भी आप पाठक ही देंगे, यह हमारा दृढ़ विश्वास है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है;
अलक्ष की बात अलक्ष जानें,
समक्ष को ही हम क्यों न मानें?
रहे वहीं प्लावित प्रीति-धारा,
आदर्श ही ईश्वर है हमारा।
हमारे राम जगत को आदर्श पथ पर ले जाएँगे, इन्हीं कामनाओं को साथ आप सबको नूतन वर्ष का अभिनंदन!