Saturday, November 23, 2024
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सेक्स नहीं करने देती है पत्नी, तलाक चाहिए: पति की याचिका पर बोला हाईकोर्ट- यह मानसिक क्रूरता, संबंध विच्छेद करने का माना वैध आधार

पत्नी का लंबे समय तक बिना किसी उचित कारण के यौन संबंध बनाने से इनकार करना मानसिक क्रूरता के समान है। हाईकोर्ट ने पति के इस दावे को स्वीकार करते हुए पारिवारिक अदालत के फैसले को रद्द कर दिया कि इस तरह का व्यवहार हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का आधार बनता है।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पत्नी का पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता है। कोर्ट ने कहा कि पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध एक महत्वपूर्ण पक्ष है और पत्नी का लगातार पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के लिए मानसिक या भावनात्मक पीड़ा का कारण बन सकता है। इस तरह का व्यवहार पति को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक माँगने का वैध आधार प्रदान करता है।

सुदीप्तो साहा बनाम मौमिता साहा केस की सुनवाई करते हुए जबलपुर में न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने भोपाल की एक पारिवारिक अदालत के फैसले को पलट दिया। पारिवारिक अदालत ने नवंबर 2014 के अपने फैसले में एक व्यक्ति के तलाक के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।

व्यक्ति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी का लंबे समय तक बिना किसी उचित कारण के यौन संबंध बनाने से इनकार कर देना मानसिक क्रूरता के समान है। हाईकोर्ट ने पति के इस दावे को स्वीकार करते हुए पारिवारिक अदालत के फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि इस तरह का व्यवहार हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का आधार बनता है।

हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी ने 12 जुलाई 2006 को शादी के दिन से लेकर 28 जुलाई 2006 को पति के भारत से बाहर चले जाने तक लगातार संबंध बनाने से इनकार कर शादी को संपन्न नहीं होने दिया था। पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बिना कोई वैध कारण बताए लंबे समय तक संभोग से दूर रहने के पत्नी के एकतरफा निर्णय की वजह से शादी कभी भी संपन्न नहीं हुई थी।

हाईकोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि पत्नी ने पति के दावे का विरोध नहीं किया। नतीजतन, अदालत ने कहा कि पति की दलीलों को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। इसके आधार पर हाईकोर्ट ने पुरुष की दलील को तलाक माँगने योग्य माना। इस मामले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुखेंदु दास वर्सेज रीता मुखर्जी केस पर दिए गए फैसले का भी जिक्र किया।

कोर्ट ने बताया कि फैमिली कोर्ट ने यह कहकर फैसले में गलती की है कि पत्नी के शादी से इनकार करने को वैवाहिक बंधन को खत्म करने के लिए वैध आधार नहीं माना जा सकता है। इस दृष्टिकोण के विपरीत, उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में माना और पुष्टि की कि पत्नी द्वारा वैवाहिक कार्य में शामिल होने से इनकार करना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह को खत्म करने की माँग करने के लिए एक वैध और स्वीकार्य कारण है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी को इस बात की पूरी जानकारी थी कि पति शादी के तुरंत बाद भारत छोड़ देगा। इस जानकारी के बावजूद पत्नी ने उसके जाने से पहले सीमित समय के दौरान विवाह को पूरा करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा, “इस अवधि के दौरान पति को शादी संपन्न होने की उम्मीद थी, लेकिन पत्नी ने इससे इनकार कर दिया और निश्चित रूप से यह कृत्य (पत्नी का) मानसिक क्रूरता के बराबर है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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