Sunday, November 17, 2024
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‘बखिया उधेड़ देंगे आपकी’ : पतंजलि मामले में जस्टिस अमानुल्लाह की टिप्पणी पर बवाल, पूर्व न्यायधीशों ने याद दिलाई शब्दों की गरिमा

जस्टिस अमानुल्लाह की टिप्पणी से अब पूर्व जज नाराज हैं। उनका कहना है कि जो भाषा जस्टिस ने सुनवाई के समय प्रयोग की वो सड़क पर मिलने वाली धमकियों जैसी है।

भ्रामक प्रचार करने के आरोप में पतंजलि और बाबा रामदेव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई चर्चा में है। कारण है जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की सख्त टिप्पणी। 10 अप्रैल को बाबा राम देव और पतंजलि के एमडी बाल कृष्ण द्वारा जब बिन शर्त के लिए माफी माँगने के लिए हलफनामा दायर किया गया तो कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। सुनवाई के दौरान जस्टिस अमानुल्लाह ने उत्तराखंड के राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के प्रति गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था- “हम आपकी बखिया उधेड़ देंगे।”

जस्टिस अनानुल्लाह की टिप्पणी से अब पूर्व जज नाराज हैं। उनका कहना है कि अदालती कार्यवाही ने संयम के मानदंड स्थापित किए हैं, लेकिन जो भाषा जस्टिस ने सुनवाई के समय प्रयोग की वो सड़क पर मिलने वाली धमकी जैसी है। पूर्व जजों और पूर्व मुख्याधीशों ने सलाह दी है कि जस्टिस अमानुल्लाह को खुद को आवश्यक न्यायिक आचरण से परिचित कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णयों को देखना अच्छा होगा। ये कृष्णा स्वामी बनाम भारत संघ (1992) और सी रविचंद्रन अय्यर बनाम जस्टिस ए एम भट्टाचार्जी (1995) ) केस हैं।

कृष्णा स्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संवैधानिक अदालत के जजों का आचरण समाज में सामान्य लोगों से कहीं बेहतर होना चाहिए। न्यायिक व्यवहार के मानक, बेंच के अंदर और बाहर दोनों जगह, सामान्य रूप से ऊँचे होते हैं… ऐसा आचरण जो चरित्र, अखंडता में जनता के विश्वास को कमजोर करता है या जज की निष्पक्षता को कम बनाता है, उसे त्याग दिया जाना चाहिए। जज से यह अपेक्षा की जाती है कि वह स्वेच्छा से उच्च जिम्मेदारियों के लिए उपयुक्तता की पुष्टि करते हुए आचरण के संपूर्ण मानक स्थापित करेगा।

दूसरा मामला, रविचंद्रन केस का है जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “न्यायिक कार्यालय मूलतः एक सार्वजनिक ट्रस्ट है। इसलिए, समाज यह उम्मीद करने का हकदार है कि एक न्यायाधीश उच्च निष्ठावान, ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए और उसके पास नैतिक शक्ति, नैतिक दृढ़ता और भ्रष्ट या द्वेषपूर्ण प्रभावों के प्रति अभेद्य होना आवश्यक है। उससे न्यायिक आचरण में औचित्य के सबसे सटीक मानक रखने की अपेक्षा की जाती है। कोई भी आचरण जो अदालत की अखंडता और निष्पक्षता में जनता के विश्वास को कमजोर करता है, न्यायिक प्रक्रिया की प्रभावकारिता के लिए हानिकारक होगा…”

बता दें कि जस्टिस अमानुल्लाह की तरह 2005 में जस्टिस बीएन अग्रवाल की पीठ ने भी ऐसी टिप्पणी की थी। उस समय बिहार के तत्कालीन राज्यपाल, वरिष्ठ राजनेता बूटा सिंह, बार-बार बेदखली के आदेशों की अनदेखी करते हुए, दिल्ली में एक सरकारी बंगले पर अनधिकृत रूप से कब्जा कर रहे थे। तब जज ने कहा था, “बिहार के राज्यपाल दिल्ली में बंगला लेकर क्या कर रहे हैं? उन्हें यहां बंगला आवंटित नहीं किया जा सकता। उन्हें बाहर फेंक दीजिए।” इसके अलावा नुपूर शर्मा वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सूर्यकांत और पारदीवाला ने कहा था कि नूपुर शर्मा की ‘फिसली जुबान’ ने पूरे देश में आग लगा दी है और उन्हें पूरे देश से माफी माँगनी चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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