Friday, November 22, 2024
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120 संगठन, विपक्ष, आंदोलनजीवी और पालतू पत्रकार… चुनावी नतीजों से पहले देश को जलाने की प्लानिंग, मोदी जीते तो कोर्ट से चुनाव रद्द करवाने की हो रही साजिश

अब आगे क्या साजिश है? 120 संगठनों, जो खुद को नागरिक संगठन बताते हैं, उन्होंने चुनाव आयोग और चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हुए भविष्यवाणी कर दी है कि मतगणना वाले दिन गड़बड़ी होगी।

YouTuber अजीत अंजुम के चैनल पर खुद को पत्रकार बताने वाली नीलू थॉमस व्यास ने कुछ ऐसे दावे किए हैं, जो डराने वाले हैं। खुद को ‘मॉब लिंचिंग’ का विरोधी बता कर मॉब को गाली देने वाला गिरोह अब लोकतंत्र की बजाय भीड़तंत्र पर भरोसा दिखा रहा है, अराजकता के लिए समाज को सुलगा रहा है। ये कोई नई बात नहीं है, शाहीन बाग़ और किसान आंदोलन को देखें या राहुल गाँधी द्वारा विदेश में दिए गए बयानों को भी देखें तो स्पष्ट पता चलता है कि इसके पीछे एक पैटर्न है।

जैसा कि हमें पता है, मंगलवार (4 जून, 2024) को लोकसभा चुनाव की मतगणना होनी है और इसकी पूरी संभावना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में लौट कर आएँगे। विपक्ष ने INDI गठबंधन तो बनाया, लेकिन नीतीश कुमार की JDU, जयंत चौधरी की RLD और ओमप्रकाश राजभर की SBSP गठबंधन से बाहर निकल आई। विपक्षी नेताओं में तेजस्वी यादव को छोड़ कर शायद ही किसी को जमीन की ख़ाक छानते हुए देखा गया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 200 से अधिक रैली-रोडशो किए और 80 से अधिक मीडिया संस्थानों को इंटरव्यू दिया।

नीलू व्यास थॉमस इस वीडियो में कह रही हैं कि विपक्ष के जितने भी मतगणना एजेंट्स होंगे उन सबको प्रशिक्षण दिया जा रहा है, एग्जिट पोल्स से कैसे निपटा जाए इसकी भी तैयारी की जा रही है। उनका कहना है कि इसके अलावा एक बड़े जन-आंदोलन की तैयारी की जा रही है, अगर वोटों की चोरी पकड़ी जाती है तो इसे लेकर कोर्ट भी जाया जा सकता है और चुनाव भी रद्द कराया जा सकता है। यानी, इसका सीधा मतलब है कि विपक्ष लोकतंत्र के इस महापर्व को ख़ारिज कर देगा।

पोलिंग एजेंट को क्या प्रशिक्षण दिया जा रहा है? हो सकता है कि जिस तरह बिहार के छपरा में मतदान के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की बेटी और वहाँ से RJD प्रत्याशी रोहिणी आचार्य ने पहुँच कर हिंसा भड़का दी और 2 लोग मारे गए, ठीक उसी तरह का माहौल काउंटिंग सेंटरों पर भी बना दिया जाए। अगर ऐसा है तो सुरक्षा बलों को बहुत सतर्क रहने की ज़रूरत है। पोलिंग एजेंट्स को हिंसा भड़काने की ट्रेनिंग दी जा रही हो सकती है, उन्हें ये सिखाया जा रहा होगा कि तनाव कैसे पैदा किया जाए।

इसके लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करना है, इसमें विपक्ष पारंगत है। सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो डाले जाएँगे, कहीं कुछ तकनीकी गड़बड़ी भी हुई तो उसे कुछ ऐसा बड़ा बना कर दिखाया जाएगा जैसे देश भर में EVM हैककर लिए गए हों और मतगणना करने वाले कर्मचारियों को परेशान किया जाएगा। मतगणना वाले दिन सोशल मीडिया पर ऐसे प्रपंच को रोकने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। पोलिंग एजेंट्स कौन हैं, इसकी पहले से ही जाँच हो जानी चाहिए।

दूसरी बड़ी बात नीलू व्यास थॉमस कहती हैं कि Exit Polls से कैसे निपटा जाए, इसकी भी तैयारी चल रही है। बता दें कि शनिवार (1 जून, 2024) की शाम को अंतिम व 7वें चरण का मतदान समाप्त होने के साथ ही सभी टीवी चैनल और सर्वे करने वाले संस्थान अपना-अपना एग्जिट पोल जारी करेंगे और बताएँगे कि किस पार्टी को संभावित कितनी सीटें आ सकती हैं। स्पष्ट है, विपक्ष को नज़र आ रहा है कि इसमें भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त करते हुए दिखाया जाएगा क्योंकि जमीनी हालात भी यही है।

देखिए, विपक्ष को इसका पूरा अंदाज़ा है कि उसकी हार हो रही है। TV चैनलों पर उनके प्रवक्ता एग्जिट पोल्स के दौरान ‘थेथरई’ करेंगे, मुद्दों को घुमाएँगे और भड़काऊ बातें करेंगे। सवाल कुछ और होगा, बौखलाहट में जवाब कुछ और दिया जाएगा। मीडिया संस्थानों के आँकड़ों को देख कर उन्हें ‘गोदी मीडिया’ बताया जाएगा। जिस तरह से प्रतिष्ठित पत्रकारों के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ‘चमचा’ और ‘चमची’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, महिलाओं तक को नीचा दिखा रहे हैं, उससे साफ़ है कि उनके प्रवक्ता एग्जिट पोल्स वाले दिन क्या करेंगे।

तीसरी बड़ी बात जो नीलू व्यास थॉमस ने कही है, वो ये है कि इस चुनाव को न्यायपालिका के दरवाजे तक भी ले जाया जा सकता है। ये भी कोई नई बात नहीं है। आप देखिए, अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने से लेकर राफेल लड़ाकू विमान सौदा तक, हर मामले को विपक्ष सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गया। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ फ्रांस के साथ हुए राफेल सौदे पर मोदी सरकार को क्लीन-चिट दी, बल्कि अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने वाले फैसले को भी बरकरार रखा।

AAP के अरविंद केजरीवाल और JMM के हेमंत सोरेन जैसे नेताओं को जेल हुई, इन सबको अदालत के आदेश के बाद ही न्यायिक हिरासत में भेजा गया। इसके बाद अब न्यायपालिका पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए गए हैं। ध्यान दीजिए, ये आज से नहीं हो रहा। राम मंदिर का फैसला जब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने नवंबर 2019 में सुनाया था, तभी से सुप्रीम कोर्ट का बॉयकॉट किया जा रहा है। ‘बाबरी ज़िंदा है’ वाले ट्रेंड इसी मुहिम का हिस्सा हैं।

चौथी और सबसे अधिक खतरनाक बात जो नीलू थॉमस ने कही है, वो है ‘जन-आंदोलन’ की। विपक्ष के लिए जन-आंदोलन क्या होता है? 3 महीने तक शाहीन बाग़ की खातूनों द्वारा दिल्ली को बंधक बना कर रखा। 1 साल तक ‘किसान आंदोलन’ के नाम पर दिल्ली की सीमाओं पर कब्ज़ा कर के रखना। शाहीन बाग़ से कारोबारियों को 200 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, जबकि ‘किसान आंदोलन’ से उत्तर भारत के राज्यों को प्रतिदिन 500 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ

शाहीन बाग़ उपद्रव के जरिए मुस्लिमों को भड़काया गया देश भर में CAA के खिलाफ झूठ फैला-फैला कर, ‘किसान आंदोलन’ का इस्तेमाल जाटों और सिखों को भड़काने के लिए किया गया। तभी ‘किसान आंदोलन’ को खालिस्तानियों ने हाईजैक कर लिया। गणतंत्र दिवस के दिन लाल किला पर चढ़ कर खालिस्तानी झंडा फहरा दिया गया, राष्ट्रध्वज तिरंगे का अपमान हुआ। वहीं शाहीन बाग़ के बाद दिल्ली में दंगे हुए, जिसने 50 से अधिक लोगों की जान ले ली। मंदिरों-स्कूलों को निशाना बनाया गया।

किसी भी देश के महाशक्ति बनने की पहली शर्त है – वहाँ के समाज का संपन्न होना। लोगों के पास पैसा ही नहीं होगा, तो देश महाशक्ति कैसे बनेगा। यही कारण है कि आन्दोलनों के नाम पर बार-बार राष्ट्रीय राजधानी को बंधक बनाया जाता है क्योंकि इससे एक तीर से 2 निशान साधते हैं – पहला, मीडिया की फुटेज खूब मिलती है, और दूसरा, कारोबारियों को अधिक घाटा होता है। कारोबार जितना घटेगा, सरकार को उतनी परेशानी होगी और विपक्ष को उतनी ही ख़ुशी मिलेगी।

और ‘जन-आंदोलन’ का अर्थ क्या है राहुल गाँधी के लिए? याद कीजिए, मई 2022 में लंदन में एक कन्क्लेव को संबोधित करते हुए राहुल गाँधी ने कहा था कि भाजपा ने पूरे भारत में केरोसिन तेल छिड़क रखा है और एक चिंगारी से पूरे देश में आग लग जाएगी। उन्होंने भारत में ध्रुवीकरण और मीडिया पर भाजपा के प्रभाव का दावा करते हुए कहा था कि भारत फ़िलहाल सही स्थान पर नहीं है। सोचिए, विदेश जाकर अपने देश के संबंध में इस तरह की बातें करने के पीछे और क्या मकसद रहा होगा?

अब आगे क्या साजिश है? 120 संगठनों, जो खुद को नागरिक संगठन बताते हैं, उन्होंने चुनाव आयोग और चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हुए भविष्यवाणी कर दी है कि मतगणना वाले दिन गड़बड़ी होगी। चुनाव आयोग को बदनाम करने के लिए इनलोगों ने 6 घंटे बैठक की, आगे और भी बैठकों की योजना है। ‘सिविल सोसाइटी’ के नाम पर अब दंगों की साजिश है। मतदान के सारे आँकड़े जारी किए जा रहे हैं, फिर भी झूठ बोला जा रहा है कि चुनाव आयोग डेटा नहीं दे रहा।

इन संगठनों में विपक्ष के नेता शामिल हैं, पूर्व अधिकारियों को इसमें रखा गया है। ये वही वर्ग है जो खुद को ‘बुद्धिजीवी’ बता कर कुछ भी बक देता था और लोग इनका यकीन कर लेते थे। अब इन्हें कोई नहीं सुन रहा। ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबरों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बार-बार ‘तानाशाह’ बताया जाना इसी क्रम का हिस्सा है। जन-कल्याणकारी योजनाओं, इंफ़्रास्ट्रक्चर के कार्यों और विदेश में भारत की चमकती छवि को दबाने के लिए कुछ तो नकारात्मकता फैलानी होगी, विपक्ष यही करने में लगा हुआ है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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