वामपंथियों का अड्डा माने जाने वाले टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस (TISS) ने 100 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। इन कर्मचारियों को फंड की कमी के कारण नौकरी से बाहर किया गया है। बताया जा रहा है कि टाटा समूह के TISS को फंड ना देने के कारण यह नौकरियाँ गई हैं। TISS इससे पहले कई विवादों में घिरा रहा है। TISS में पढ़ने वाले छात्रों पर राजद्रोह के मुकदमे में बंद शरजील इमाम के समर्थन में नारे लगाने के आरोप लग चुके हैं। यहाँ कश्मीर की आजादी को लेकर पोस्टर भी छपे थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, TISS ने 55 शिक्षकों और 60 अन्य स्टाफ को नौकरी से निकाल दिया है। यह एक्शन शुक्रवार (28 जून, 2024) को लिया गया है। TISS ने अपने मुंबई कैम्पस से 20, हैदराबाद कैम्पस से 15, गुवाहाटी कैम्पस से 14 और तुलजापुर कैम्पस से 6 लोगों को निकाला है।
बताया गया है कि इन लोगों को TISS की तरफ से भेजे गए इमेल में इसका कारण टाटा एजुकेशन ट्रस्ट से पैसे का ना मिलना बताया है। TISS प्रशासन ने मीडिया को बताया है कि उसने कई बार टाटा एजुकेशन ट्रस्ट को पैसे भेजने की माँग की, लेकिन इस पर कोई जवाब नहीं मिला।
TISS से निकाले गए यह सभी कर्मचारी संविदा पर थे। इनमें से कुछ 10 साल से अधिक समय से यहाँ काम कर रहे थे। निकाले गए कर्मचारियों ने कहा है कि उनका TISS के साथ काम करने का अनुबंध मई महीने में खत्म हो गया लेकिन वह फिर भी इस उम्मीद में काम करते रहे कि उन्हें आगे भी काम पर रखा जाएगा।
उन्होंने बताया कि उनका अनुबंध नवीनीकृत नहीं किया गया है, जिसके कारण अब वह नौकरी नहीं कर पाएँगे। दूसरी तरफ TISS प्रशासन ने कहा है कि अगर उसे टाटा एजुकेशन ट्रस्ट से पैसा मिल गया तो इन लोगों को नौकरी पर वापस बुला लिया जाएगा, अगर ऐसा नहीं होता तो इनकी नौकरी चली जाएगी। TISS इससे पहले भी कई बार विवादों में रहा है।
TISS के छात्र बने थे आतंकी, NIA का आरोप
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में जाँच करते हुए बताया था कि TISS और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के कुछ छात्रों को आतंकी संगठन CPI (माओवादी) ने भर्ती किया था। यह संगठन इनसे आगे आतंकी गतिविधियाँ करवाना चाहता था। इनके पकड़े जाने पर छात्र होने के आधार पर सहानुभूति बटोरने की भी योजना बनाई गई थी। इन छात्रों को भीमा कोरेगाँव हिंसा के आरोपितों ने भर्ती किया था। यह चाहते थे कि भारत में एक समानांतर सरकार खड़ी की जाए। यह सारी जानकारी NIA ने कोर्ट में दी थी।
गौरतलब है कि CPI (माओवादी) भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित आतंकी संगठन है। यह भारत में नक्सलवाद के सहारे दशकों से आंतरिक सुरक्षा का खतरा बना हुआ है। इस संगठन के कारण हजारों अर्धसैनिक और पुलिस बलों समेत आम नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं।
TISS में लगते हैं शरजील के समर्थन में नारे, सेना को बताते हैं रेपिस्ट
TISS के भीतर वामपंथी जहर ने अपने पैर लम्बे समय से पसारे हुए हैं। ऑपइंडिया ने वर्ष 2020 में TISS के कुछ छात्रों से बातचीत की थी। इन छात्रों ने ऑपइंडिया को बताया था कि पुलवामा हमले में 40 जवानों के मारे जाने के बाद TISS के एक व्हाट्सएप ग्रुप में इन भारतीय सेना के जवानों पर निर्दोषों की हत्या और रेप करने का आरोप लगा कर उनकी वीरगति का मजाक उड़ाया था। TISS का एक छात्र इन जवानों के मारे जाने पर हंस रहा था।
TISS के भीतर लगातार देश विरोधी कृत्य भी होते हैं। यहाँ प्रधानमंत्री मोदी को गाली दिए जाने वाले पोस्टर छात्र अपने कमरों पर लगाते हैं। TISS के छात्रों ने मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया पर CAA और NRC के खिलाफ प्रदर्शन किया था। यह लोग बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में प्रताड़ित होने वाले हिन्दुओं को भारत में नागरिकता दिए जाने पर गुस्सा थे।
TISS के छात्र संगठन ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाए जाने को लेकर भी प्रलाप किया था। TISS के भीतर पूर्वोत्तर को भारत से काटने की बात करने वाले शरजील इमाम के समर्थन में भी नारे लगे थे। यहाँ ABVP की कब्र खुदेगी जैसी बाते हुई थीं।
TISS में छपते रहे हैं कश्मीर की आजादी वाले रिसर्च पेपर-पोस्टर
TISS में भारत को तोड़ने की बाते खुले तौर पर चलती आई हैं। फरवरी, 2020 में एक समीक्षा कार्यक्रम के दौरान TISS में ‘कश्मीर को आजाद करो’, ‘कश्मीर पर से कब्जा हटाओ’ जैसे पोस्टर दिखाई दिए थे। इन्हें कलाकारी के नाम पर लगाया गया था। इनमें CAA-NRC हटाने की बात कही गई थी। इसके अलावा TISS में छपने वाले रिसर्च पेपरों में भी लगातार कश्मीर पर जहर उगला जाता रहा है। प्रगतिशील होने का दावा करने वाले वामपंथी यह जहर फैलाते रहे हैं।
ऐसे ही एक रिसर्च पेपर में अनन्या कुंडू नाम की एक रिसर्चर ने लिखा था, “भारत ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए यहाँ की आवाजों को दबाया और नैरेटिव को नियंत्रित किया। कश्मीर की कहानी कश्मीर नहीं, भारत ने लिखी। आज जिस कश्मीर को हम जानते हैं, वो भारतीय सोच के हिसाब से ही। महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा हुई। पितृसत्तात्मक भारतीय सेना कश्मीरी समाज को तोड़ने के लिए महिलाओं के शरीर को निशाना बनाती है।”