केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मंगलवार (2 जुलाई 2024) ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश स्थित परशुराम कुंड को देश के प्रमुख दर्शनीय तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस विकास केंद्र सरकार और अरुणाचल सरकार मिलकर करेगी। उन्होंने कहा कि इस कार्य की पूर्ति के लिए भगवान ने उन्हें संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय दिया है।
गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि परशुराम कुंड को अयोध्या तथा अन्य देव स्थलों की तर्ज पर विकसित करने का सपना है। केंद्रीय मंत्री ने कहा, “मुझे लगता है कि भगवान ने इसी मनोकामना की पूर्ति के लिए उन्हें संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय का दायित्व दिलवाया हैं। मेरी कोशिश रहेगी कि इस क्षेत्र का हर संभव विकास हो, ताकि धार्मिक पर्यटन के रूप में परशुराम कुंड भी देश में एक प्रमुख स्थल बनकर उभरे।”
परशुराम कुंड अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में स्थित है। इसके विकास के बाद यह स्थान देश के प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो जाएगा। परशुराम कुंड को क्षेत्र के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक बनाने के लिए 37.87 करोड़ रुपये का पर्याप्त अनुदान आवंटित किया गया है। यह आवंटन तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक विरासत संवर्धन अभियान (प्रशाद) योजना के तहत किया गया है।
यहाँ हर साल परशुराम कुंड महोत्सव आयोजित किया जाता है। यहाँ हर बीतते साल के साथ तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि जिस जगह पर ऋषि परशुराम की प्रतिमा स्थापित किया जाना है, वहाँ पर नींव का काम पूरा हो चुका है। प्रतिमा की स्थापना का काम जल्द शुरू होने की संभावना है।
इस परियोजना में परशुराम की 51 फीट ऊँची प्रतिमा की स्थापना शामिल है। इसे साल 2021 में एक संस्था द्वारा दान किया गया था। अरुणाचल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री चौना मीन ने परशुराम कुंड को एक प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने की देखरेख में सक्रिय भूमिका निभाई है। चौना मीन चोंगखाम-वाकरो निर्वाचन क्षेत्र के स्थानीय प्रतिनिधि हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि इस स्थान पर लोहित नदी के तट पर मकर संक्रांति पर्व के दौरान लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान करते हैं। माना जाता है कि परशुराम कुंड का हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व है। राज्य के उपमुख्यमंत्री चाउना मीन खुद परशुराम कुंड में परियोजना की देखरेख कर रहे हैं।
बता दें कि परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि के कहने पर अपनी माँ रेणुका की हत्या कर दी थी। उन्होंने जो कुल्हाड़ी चलाई थी, वह पाप के कारण उनके हाथ में फँस गई थी। कुछ ऋषियों की सलाह पर परशुराम प्रायश्चित करने के लिए पूरे हिमालय में भटकते रहे। इस दौरान लोहित नदी के पानी में हाथ धोते कुल्हाड़ी उनके हाथ से गिर गई थी।
पुराणों में कहा गया है कि लोहित नदी के किनारे जिस जगह पर ऋषि परशुराम ने अपना हाथ धोया था, उस जगह को परशुराम कुंड कहा जाने लगा। कालांतर में यहाँ हर साल मकर संक्रांति के मौके पर लगने लगा। इस मेले को परशुराम कुंड मेला कहा जाता है। अब इसे पूर्वोत्तर भारत के एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।