Sunday, December 22, 2024
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इराक में 9 साल की बच्चियों का होगा निकाह! संसद में बिल पेश: महिलाओं ने जताई चिंता, समर्थकों ने कहा- लड़कियों को अनैतिक संबंधों से बचाना उद्देश्य

प्रस्तावित परिवर्तन 1959 के कानून में एक बदलाव का प्रतिनिधित्व करेगा। इसके तहत इराकी राजशाही के पतन के बाद पारिवारिक कानून को धार्मिक हस्तियों से राज्य की न्यायपालिका को स्थानांतरित कर दिया गया था। नया विधेयक इराक की विविध आबादी में अन्य धार्मिक या सांप्रदायिक समुदायों का उल्लेख किए बिना इस्लाम से धार्मिक नियमों को लागू करने का विकल्प पेश करेगा।

मध्य-पूर्व के इस्लामी मुल्क इराक में शरिया कानून के तहत लड़कियों की शादी की उम्र 9 साल करने के लिए संसद में एक बिल पेश किया गया है। इस समय वहाँ लड़कियों की शादी करने के लिए न्यूनतम उम्र 18 साल है। इस बिल की दुनिया भर में आलोचना हो रही है। इतनी कम उम्र में बच्चियों की शादी उनके स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद खतरनाक माना जाता है।

इराक के न्याय मंत्रालय द्वारा पेश किए गए इस विवादास्पद कानून का उद्देश्य देश के पर्सनल लॉ में संशोधन करना है, जो वर्तमान में विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित करता है। इस विधेयक में नागरिकों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने पारिवारिक मामलों को धार्मिक प्राधिकारियों या नागरिक न्यायपालिका में से अपनी इच्छा के अनुसार निपटा सकते हैं।

हालाँकि, आलोचकों को डर है कि इस कानून से उत्तराधिकार, तलाक और बच्चों की देखभाल से जुड़े अधिकारों में कटौती की जा सकती है। अगर यह बिल पास हो जाता है तो 9 साल की उम्र की लड़कियों और 15 साल के उम्र के लड़कों को शादी की अनुमति मिल जाएगी। आलोचकों का तर्क है कि इससे बाल विवाह को बढ़ावा और बाल शोषण में बढ़ोतरी होगी।

मानवाधिकार संगठनों, महिला समूहों और सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं ने इस बिल का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने युवा लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण को लेकर गंभीर परिणामों की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि बाल विवाह के कारण स्कूल छोड़ने की दर बढ़ जाती है, समय से पहले गर्भधारण हो जाता है और घरेलू हिंसा का जोखिम बढ़ जाता है।

यूनीसेफ के अनुसार, इराक में 28 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है। ह्यूमन राइट्स वॉच की शोधकर्ता सारा सनाबर का कहना है कि इस कानून को पारित करने से लगेगा कि देश प्रगति करने के बजाय पीछे जा रहा है। इराक महिला नेटवर्क की अमल कबाशी ने कहा कि यह संशोधन पहले से ही रूढ़िवादी समाज में ‘पारिवारिक मामलों पर पुरुषों को और अधिक नियंत्रण देगा।”

बता दें कि इस साल जुलाई के अंत में इस बिल को पेश किया गया था, लेकिन कई सांसदों द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद संसद ने प्रस्तावित बदलावों को वापस ले लिया था। हालाँकि, 4 अगस्त के सत्र में इस विधेयक को फिर से पेश किया गया। अब इस पर विचार हो रहा है। इस विधेयक को सदन में प्रभावशाली शिया गुटों का भी समर्थन हासिल है।

प्रस्तावित परिवर्तन 1959 के कानून में एक बदलाव का प्रतिनिधित्व करेगा। इसके तहत इराकी राजशाही के पतन के बाद पारिवारिक कानून को धार्मिक हस्तियों से राज्य की न्यायपालिका को स्थानांतरित कर दिया गया था। नया विधेयक इराक की विविध आबादी में अन्य धार्मिक या सांप्रदायिक समुदायों का उल्लेख किए बिना इस्लाम से धार्मिक नियमों को लागू करने का विकल्प पेश करेगा।

इस विधेयक के समर्थकों का कहना है कि इसका उद्देश्य इस्लामी कानून को मानकीकृत करना और युवा लड़कियों को ‘अनैतिक संबंधों’ से बचाना है। हालाँकि, विरोधियों का तर्क है कि यह तर्क गलत है और यह बाल विवाह की कठोर वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है। सनाबर ने कहा कि धार्मिक हस्तियों को विवाह का अधिकार देने से इराकी कानून के तहत मिले समानता का सिद्धांत कमजोर होगा।

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्चर सनाबर का कहना है कि 9 साल की लड़कियों को स्कूल और खेल के मैदान होना चाहिए, शादी के जोड़े में नहीं। अब देखना है कि इराक में कानून में बदलाव का यह प्रयास सफल होता है या नहीं, क्योंकि पिछला प्रयास विफल रहा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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