उदयपुर के पूर्व राजघराने के लिए महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ का सोमवार (25 नवम्बर, 2024) को राजतिलक किया गया। इसे ‘दस्तूर’ कहा जाता है। इसके बाद विश्वराज सिंह ने उदयपुर के शाही महल ‘सिटी पैलेस’ में घुसने की कोशिश की। यहाँ वह एकलिंगजी मंदिर और धूणी पर जाकर दर्शन करना चाहते थे।
महल के दरवाजे उनके ही चाचा अरविन्द सिंह मेवाड़ ने बंद करवा दिए। उन्होंने अखबार में इश्तिहार देकर कहा कि यहाँ कोई नहीं घुस सकता है और इसके कानूनी कागज भी पेश कर दिए। जब विश्वराज सिंह और उनके समर्थकों ने महल में घुसने की कोशिश की तो पथराव हो गया।
पुलिस ने विश्वराज सिंह के समर्थकों को रोक दिया। इसके बाद प्रदर्शन भी हुआ। सोमवार शाम से लेकर मंगलवार रात तक स्थिति शाही झगड़े के कारण तनावपूर्ण रही। इस बीच विवादित जगहों को प्रशासन ने कानून व्यवस्था की दृष्टि से कुर्क भी कर ली है।
खून से राजतिलक, दस्तूर
सोमवार को विधायक और उदयपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक और गद्दी पर बिठाने की परंपरा निभाई गई। यह राजतिलक उनके पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ (10 नवम्बर, 2024) को हुई मृत्यु के बाद किया गया है।
यह परंपरा चित्तौडगढ़ किले के फतह प्रकाश महल में पूरी की गई। यहाँ विश्वराज सिंह मेवाड़ को गद्दी पर बिठाया गया। उनके आसपास राजपरिवार के लोग और सेवक मौजूद रहे। इसके साथ ही कई और राजघरानों के लोग भी इस राजतिलक में शामिल होने के लिए आए।
इसके बाद सलूंबर के रावत देवव्रत ने अपने म्यान से तलवार निकाली और उस पर अंगूठा में चीरा लगाकर खून निकाला। इस खून से विश्वराज सिंह को तिलक लगाया गया। इसी के साथ उनके राजतिलक की परंपरा पूरी हुई। इसके बाद यहाँ आए लोगों ने विश्वराज सिंह मेवाड़ को नजराने पेश किए। उन्होंने गद्दी पर बैठ कर सबसे अभिवादन स्वीकार किए।
खून से तिलक करने की यह परंपरा उदयपुर राजपरिवार में महाराणा प्रताप के समय से चली आ रही है। महाराणा प्रताप का सबसे पहले तिलक खून से किया गया था। तबसे यहाँ राजतिलक ख़ून से ही होता है। यह खून का तिलक सलूंबर के ही रावत लगाते हैं।
परंपरा नहीं हुई पूरी
विश्वराज सिंह मेवाड़ राजतिलक की रस्म के बाद अपने समर्थकों के साथ उदयपुर के शाही महल ‘सिटी पैलेस’ जाने के लिए निकले। परंपरा के अनुसार, राजतिलक के बाद उन्हें यहाँ जाकर एकलिंगजी (भगवान शिव का रूप) के दर्शन करने थे और आशीर्वाद लेना था। इसके साथ ही वह धूणी माता पर भी दर्शन करते।
दरअसल, एकलिंगजी के प्रतिनिधि के रूप में ही मेवाड़ के शासक शासन करते आए हैं। इन शासकों को इसीलिए ‘एकलिंगजी का दीवान’ कहा जाता है। विश्वराज सिंह मेवाड़ और उनके समर्थकों को सिटी पैलेस के दरवाजों पर ही रोक दिया गया। यहाँ पुलिस का भारी बंदोबस्त किया गया था।
उन्हें सिटी पैलेस में घुसने से किसी और ने नहीं बल्कि उनके ही चाचा अरविन्द सिंह मेवाड़ के परिवार ने रोका था। अरविन्द सिंह मेवाड़ उनके पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ के छोटे भाई हैं। उन्हें घुसने से रोका इसलिए गया क्योंकि दोनों भाइयों में सम्पत्ति को लेकर लंबा विवाद है। अरविन्द सिंह मेवाड़ ने इसको लेकर अखबार में तक इश्तिहार दिया था।
इसके बाद विवाद चालू हुआ। विवाद में पथराव भी हुआ है। कई लोग घायल हुए। पुलिस की बैरीकेडिंग तोड़ दी गई। विश्वराज सिंह मेवाड़ के समर्थक यहीं बैठ गए और नारेबाजी भी करने लगे। उन्होंने प्रशासन पर भी नाराजगी जताई। हालाँकि, आखिर में रात 1:30 बजे विश्वराज सिंह मेवाड़ अपने महल लौट गए।
विवाद क्या है?
इस विवाद को जानने के लिए सबसे पहले मेवाड़ के वर्तमान शाही परिवार को समझ लेते हैं। उदयपुर राज्य का विलय भारत में आजादी के साथ ही हो गया था। लेकिन उनकी परंपरा चलती आ रही थी। उदयपुर में आजादी के समय महाराणा भूपाल सिंह का शासन था। उनके बाद 1955 में उनके बेटे महाराणा भगवत सिंह को गद्दी पर बिठाया गया।
भगवत सिंह अंतिम महाराणा थे। भगवत सिंह के बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविन्द सिंह मेवाड़ हैं। महेंद्र सिंह मेवाड़ बड़े बेटे थे जबकि अरविन्द सिंह मेवाड़ छोटे बेटे। भगवत सिंह मेवाड़ ने 1963 से 1983 के बीच उदयपुर राजघराने की कई संपत्तियों में हिस्सेदारी बेची। कुछ सम्पत्तियों को लीज पर भी दिया।
उनकी इस बात से महेंद्र सिंह मेवाड़ गुस्सा हो गए। उन्होंने अपने पिता पर ही 1983 में एक मुकदमा दायर कर दिया। महेंद्र सिंह का दावा था कि उनके पिता ने गलत किया है। उन्होंने ज्यादातर सम्पत्ति को अपने नाम किए जाने की माँग की। उनका कहना था कि नियमानुसार राजघराने के बड़े बेटे को सम्पत्ति मिलती है, इसलिए उनका हिस्सा दिया जाए।
भगवत सिंह, महेंद्र सिंह के मुकदमे वाले कदम से काफी गुस्सा हुए। महेंद्र सिंह को भगवत सिंह ने प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया। इसी के साथ उदयपुर राजघराने की सारी सम्पत्ति एक ट्रस्ट के पास ट्रांसफर की गई। इसका मुखिया छोटे बेटे अरविन्द सिह मेवाड़ को बना दिया गया।
जायदाद से बेदखल किए जाने के बाद महेंद्र सिंह मेवाड़ ने सिटी पैलेस छोड़ कर पास के समोर बाग़ में अपना निवास बना लिया। अरविन्द सिंह मेवाड़ और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ अब भी उदयपुर के महल यानी सिटी पैलेस में रहते हैं।
वर्तमान में विवाद तीन बड़ी संपत्तियों पर ही है। इसमें मुख्य सम्पत्ति सिटी पैलेस है, इसका मूल नाम शंभू निवास है। इसके अलावा बड़ी पाल और घास घर नाम की भी दो संपत्तियों पर लड़ाई है। यह मामला जब उदयपुर की अदालत पहुँचा तो उसने फैसला दिया कि सम्पत्तियाँ चारों में बाँटी जाएँ। इसके अलावा शंभू निवास 4-4 साल के लिए सबके कब्जे में रहे।
हाई कोर्ट ने 2022 में इस फैसले पर रोक लगा दी। इन सभी संपत्तियों के व्यावसयिक उपयोग पर भी विवाद है। अब चूंकि एकलिंगजी का मंदिर और धूणी देवी माता इसी सिटी पैलेस के अंदर हैं, इसलिए राजतिलक के बाद इस पर विवाद हो रहा है। इसी में पथराव भी हुआ।
विश्वराज सिंह मेवाड़ ने क्या कहा?
विश्वराज सिंह मेवाड़ ने इस पूरे विवाद के बाद कहा कि वह एकलिंग जी और धूणी माता के दर्शन करना चाहते हैं। उन्होंने रोके जाने को गलत बताया। विश्वराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि दर्शन करना परंपरा है, इसलिए वह जाना चाहते हैं। उन्होंने यहाँ दोबारा जाने की बात कही है। इस बीच प्रशासन ने उन संपत्तियों को कुर्क कर लिया है, जिन पर विवाद है।