मद्रास हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) अधिनियम के तहत मंदिरों द्वारा स्थापित और संचालित कॉलेजों में केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों को ही नियुक्त किया जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसा करना संवैधानिक रूप से अनुचित नहीं है क्योंकि यह संस्थान मंदिरों के धन से संचालित होते हैं और यह धार्मिक संस्थानों की श्रेणी में आते हैं।
क्या है पूरा मामला?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह मामला चेन्नई के अरुलमिगु कपालेश्वर आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज की नियुक्तियों से जुड़ा है। 37 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति ए. सुहैल ने इस कॉलेज में ऑफिस असिस्टेंट पद के लिए आवेदन करने की कोशिश की, लेकिन नियुक्ति के लिए केवल हिंदू उम्मीदवारों को पात्र मानने वाले नोटिफिकेशन के कारण उन्हें इंटरव्यू में शामिल होने का मौका नहीं मिला। सुहैल ने अपनी याचिका में कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 16(1) और 16(2) का उल्लंघन है, जो धर्म के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को रोकता है। सुहैल ने यह भी तर्क दिया कि यह कॉलेज एक शैक्षणिक संस्थान है, धार्मिक नहीं, इसलिए नियुक्ति प्रक्रिया में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।
हाई कोर्ट का बैड़ा फैसला
जस्टिस विवेक कुमार सिंह ने सुहैल की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह कॉलेज पूरी तरह से मंदिर के फंड से चलाया जाता है और इसलिए इसे हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम की धारा 10 के तहत धार्मिक संस्थान माना जाएगा। उन्होंने कहा, “धारा 10 के अनुसार, ऐसे संस्थानों में केवल हिंदू धर्म का पालन करने वाले लोगों की नियुक्ति की जा सकती है।”
मद्रास हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 16(5) के तहत आता है, जो धार्मिक संस्थानों को उनके धर्म के आधार पर नियुक्ति करने की छूट देता है। जस्टिस ने यह भी कहा कि चूँकि यह कॉलेज स्वयं वित्तपोषित है और सरकारी सहायता नहीं लेता, इसलिए इसे ‘स्टेट’ की परिभाषा में नहीं रखा जा सकता।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के बयान का रखा था तर्क
सुहैल ने अपनी याचिका में यह भी तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘हिंदू’ कोई धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। उन्होंने कहा कि इस आधार पर किसी को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि कौन ‘हिंदू’ है और कौन नहीं। सुहैल ने यह भी दावा किया कि HR&CE अधिनियम केवल मंदिरों और मठों जैसे धार्मिक संस्थानों पर लागू होता है, न कि किसी शैक्षणिक संस्थान पर। हालाँकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया।
तमिलनाडु सरकार ने भी रखा था अपना पक्ष
इससे पहले, तमिलनाडु सरकार ने अक्टूबर 2021 में हाई कोर्ट को बताया था कि मंदिर फंड से संचालित किसी भी कॉलेज या संस्थान में केवल हिंदू कर्मचारियों की नियुक्ति की जा सकती है। राज्य के महाधिवक्ता ने कोर्ट को यह जानकारी दी थी कि HR&CE अधिनियम गैर-हिंदुओं की नियुक्ति की अनुमति नहीं देता।
इस मामले में जस्टिस विवेक कुमार सिंह ने कहा कि मंदिर फंड से संचालित कॉलेज को एक धार्मिक संस्थान माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16(1) और 16(2) समान अवसर और गैर-भेदभाव की बात करते हैं, लेकिन अनुच्छेद 16(5) धार्मिक संस्थानों को धर्म के आधार पर नियुक्ति की छूट देता है।
मद्रास हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल HR&CE अधिनियम के तहत मंदिरों की स्वायत्तता को बरकरार रखता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि धार्मिक संस्थानों के संचालन में उनके धार्मिक सिद्धांतों का पालन हो। इस फैसले ने संवैधानिक प्रावधानों और धार्मिक अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।