किसान हरिराम की हत्या के मामले में अदालत ने 8 मुस्लिम दंगाइयों को उम्र कैद की सजा सुनाई है। उनकी हत्या साल 2000 में राजस्थान के टोंक जिले के मालपुरा में दंगों के दौरान की गई थी। इस दंगे में कुल 6 लोगों की मौत हुई थी। इनमें कैलाश माली भी शामिल थे। उनकी हत्या के मामले में अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए 5 आरोपितों को बरी कर दिया गया है। जयपुर की विशेष अदालत ने दोनों मामलों में 2 दिसंबर 2024 को फैसला सुनाया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हरिराम हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाए दंगाइयों के नाम इस्लाम, मोहम्मद इशाक, अब्दुल रज्जाक, इरशाद, मोहम्मद जफर, साजिद अली, बिलाल अहमद और मोहम्मद हबीब हैं। बचाव व अभियोजन पक्ष की तमाम दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि धारदार हथियारों से निर्मम हत्या करने वालों के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरती जा सकती है। हालाँकि कैलाश माली केस में कोई चश्मदीद गवाह न होने की बुनियाद पर अदालत ने 5 आरोपितों को बरी कर दिया है।
हरिराम की हत्या के मामले में उनकी विधवा धन्नी देवी ने 10 जुलाई 2000 को मालपुरा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसमें कहा गया कि था कि वह अपने पति के साथ खेत पर जा रही थी। इस दौरान दंगाइयों ने धारदार हथियार से उसके पति पर हमला कर दिया। उनके शरीर पर कई जगह वार किए। इसके चलते उनकी मौत हो गई।
कैलाश माली की हत्या केस में उनके बेटे ने FIR दर्ज करवाई थी। उस FIR में शिकायतकर्ता ने बताया था कि गाँव के कुछ लोगों ने उन्हें उनके पिता पर हमले के बारे में बताया था। इस सूचना पर जब वो घटनास्थल पर गए तो उनके पिता की मौत हो चुकी थी। इस मामले में कुल 5 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। बचाव पक्ष ने इस केस में कोई चश्मदीद गवाह न होने की दलील दी। अदालत ने इस दलील को माना और आरोपितों को बरी कर दिया।
क्यों हुआ था दंगा
10 जुलाई 2020 को टोंक जिले के मालपुरा में भारतीय जनता पार्टी के नेता कैलाश माली की हत्या कर दी गई थी। कैलाश माली को चलती बाइक से धक्का दिया गया था और चाकुओं से वार किए गए थे। जयपुर ले जाते समय रास्ते में उनकी मौत हो गई थी। कैलाश माली की हत्या की खबर टोंक के शहरी और ग्रामीण इलाकों में फ़ैल गई। भारी तनाव के बीच मुस्लिम भीड़ ने कई जगहों पर हिन्दुओं को निशाना बनाया।
इस दौरान दोनों पक्षों से लोगों की मौतें हुईं थी। इस हिंसा में अभी 17 अन्य लोगों पर कोर्ट में केस विचाराधीन है। कैलाश माली को पुलिस ने बाबरी ध्वंस के बाद टोंक जिले में हुए साल 1992 के दंगों का मुख्य आरोपित बनाया था। इसी वजह से वो कट्टरपंथियों के निशाने पर थे। हालाँकि उनकी पत्नी का कहना है कि उनके पति को झूठा फँसाया गया था।