साल 1998 में कोयंबटूर में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इन धमाकों में 58 लोगों की जान चली गई थी, तो 231 लोग घायल हो गए थे। इन धमाकों के पीछे अल-उम्मा नाम के कट्टरपंथी संगठन का नाम आया था, जिसे बैन कर दिया गया। इसी संगठन का मुखिया था एस ए बाशा, जो उन सीरियल ब्लास्ट के मुख्य कर्ता-धर्ताओं में से एक था। उसे उम्रकैद की सजा मिली थी। एसए बाशा दुर्दांत आतंकियों में था, जिसने 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जान से मारने की धमकी थी। एसए बाशा की सोमनार (16 दिसंबर 2024) को अस्पताल में मौत हो गई थी, और अगले दिन (17 दिसंबर 2024) उसे दफनाया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एस ए बाशा नाम के आतंकी को अंतिम विदाई देने के लिए हजारों लोग पहुँचे। उसे किसी ‘हीरो’ की तरह विदाई दी गई, जबकि उसने तमिलनाडु को कई बार आतंकी हमलों का दर्द दिया। उसकी आखिरी विदाई के लिए पूरे कोयंबटूर में 2000 पुलिसवालों और 200 आरएएफ जवानों की तैनाती की गई। इतनी भारी सुरक्षा में उसका विदाई जुलूस निकाला गया और किसी ‘शहीद’ जैसी विदाई दी गई।
आतंकी एसए बाशा की अंतिम यात्रा पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल शिवशंकर ने ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, “कोयंबटूर, तमिलनाडु में इस्लामी आतंकी एस.ए. बाशा की शवयात्रा निकाली जा रही है। ये वही आतंकी है जो 1998 कोयंबटूर धमाकों का मास्टरमाइंड था, जिसमें 58 भारतीयों की जान गई थी। ये पाकिस्तान या बांग्लादेश में नहीं, बल्कि भारत में हो रहा है। न कोई ‘शांतिप्रिय’ इसे लेकर आवाज उठा रहा है, न ‘धर्मनिरपेक्षता’ का झंडा लहराने वाले कुछ कह रहे हैं। ‘संवैधानिकता’ के ठेकेदार तो संविधान के नाम पर अपनी राजनीति में व्यस्त हैं!”
This is a funeral procession glorifying Islamist terrorist SA Basha, key member of Al-Umma responsible for 1998 Coimbatore blasts that led to the murder of 58 Indians. This isn't happening in an Islamic nation like Pakistan or Bangladesh. This is happening in Coimbatore, TN,… pic.twitter.com/aAuftHetWT
— Rahul Shivshankar (@RShivshankar) December 18, 2024
हैरानी की बात नहीं है कि इस्लामिक कट्टरपंथी धड़ों, राजनीतिक पार्टियों के नेता उसकी अंतिम यात्रा में पहुँचे। यही नहीं, खुद को तमिलियन नेशनल कहने वाली पार्टी के सबसे बड़े नेता सीमान ने तो यहाँ तक कह दिया कि डीएमके सरकार को एसए बाशा को पहले ही रिहा कर देना था, जोकि डीएमके सरकार के हाथ में था। ऐसा न करने के लिए डीएमके सरकार की आलोचना भी की गई।
हालाँकि बाशा को पैरोल देकर अस्पताल में रखने वाले इन्हीं मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पिता करुणानिधि जब मुख्यमंत्री थे, तब बाशा के साथी आतंकवादी को जेल में मालिक तक की सुविधा दी जाती थी। आईए, अब बताते हैं कि कौन से बड़े नेता इस आतंकवादी की आखिरी यात्रा में पहुँचे, जो उसके दक्षिण उक्कड़म स्थित रोज गार्डन वाले घर से शुरू होकर फ्लावर मार्केट स्थित हैदर अली टीपू सुल्तान सुन्नथ जमात मस्जिद तक गई।
1- एनटीके नेता सीमान- सीमान तमिल एक्टर हैं और नाम तमिलार काची नाम की राजनीतिक पार्टी चलाते हैं। वो तमिल पहचान, भाषा, स्वायत्तता की बात करते हैं। तमिल ईलम जैसे बैन आउटफिट के समर्थक भी हैं। उन्होंने डीएमके सरकार को ये कहते हुए बयान दिया है कि आतंकवादी एसए बाशा को पहले ही डीएमके सरकार जेल से निकाल सकती थी।
2- कोंगु इलैगनार पेरावई पार्टी के अध्यक्ष यू थानियारसु। इनकी पार्टी तमिलनाडु के अंदर भी क्षेत्रीय पार्टी है और AIADMK-DMK के बीच झूलती रहती है। थानियारसु AIADMK के टिकट पर 2 बार विधायक भी रहे हैं।
3- वीसीके के उप महासचिव वन्नी अरासु: VCK यानी विदुथलाई चिरुथैगल काची, इस पार्टी को दलित पैंथर्स पार्टी या दलित पैंथर्स इयक्कम यानी आंदोलन भी कहा जाता है। कहने को ये पार्टी दलित और तमिल राष्ट्रवाद की बात कहती है, लेकिन पार्टी के उप महासचिव वन्नी अरासु आतंकवादी को अंतिम विदाई देने पहुँचे।
4- मणिथानेया मक्कल काची के महासचिव और मन्नापरई विधायक पी अब्दुल समद: स्थानीय विधायक पी अब्दुल समद, एसए बाशा का करीबी रहा है। अल-उम्मा के बैन होने के बाद इसके जुड़े सदस्यों ने कट्टरपंथी संगठन की जगह एमकेके पहले टीएनएमएमके और फिर नाम से इस्लामी पार्टी बनाई। ये पार्टी AIADMK के बाद DMK के साथ गठबंधन में है और इस पार्टी के 2 विधायक हैं।
इस पार्टी का अध्यक्ष एम एच जवाहिरुद्दीन है। जवाहरुद्दीन सिमी का सदस्य भी रहा है और एसए बाशा का बेहद करीबी भी। वो राज्य में 25 से ज्यादा इस्लामिक ट्रस्ट, सोसायटी चलाता है और मजहबी दान के नाम पर एंबुलेस सेवा भी देता है।
इन नेताओं के अलावा कई छोटे-बड़े छुटभैय्ये नेता भी एसए बाशा जैसे दोषी पाए गए और उम्रकैद की सजा काट रहे आतंकवादी को आखिरी विदाई देने पहुँचे। खास बात ये है कि तमिलनाडु में इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ाने वालों में से एक रहे बाशा की आखिरी यात्रा निकालने की योजना का बीजेपी ने विरोध किया था, लेकिन डीएमके सरकार ने आतंकवादी की न सिर्फ शान से विदाई यात्रा निकाली, बल्कि ‘हीरो’ की तरह विदाई देने जनाजे में उमड़ी भीड़ को मैनेज करने के लिए 2000-2200 जवानों की सेवाएँ भी उपलब्ध कराई।