भारतीय जाँच एजेंसियों ने दिल्ली दंगों के नाम पर धन जुटाने के लिए इंडोनेशिया के एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) को चिन्हित किया है। इस NGO का पूर्व में पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा की तथाकथित चैरिटी विंग फलाह-ए-इन्सानियत (FIF) के साथ लिंक था।
यह पैसा 24-25 फरवरी को दिल्ली में हुए दंगों के दौरान पीड़ित मुस्लिमों को भेजा जाना था। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ये पैसे उन मुस्लिमों को भेजे जाने थे, जो या तो इन दंगों में अपने परिवार के सदस्य को खो देते, घायल हो जाते या फिर जिनकी संपत्तियाँ नष्ट हो जाती। बता दें कि इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे, जबकि 500 से अधिक घायल हो गए थे।
जानकारी के मुताबिक यह धन दिल्ली दंगों के नाम पर और इंटरनेट पर उपलब्ध फोटो और मैसेज को प्रोपेगेंडा की तरह इस्तेमाल करके जुटाए गए थे। यह धन हवाला के जरिए दुबई से भारत भेजा जा रहा था।
इसका खुलासा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संसद में दिए बयान के बाद हुआ है। अमित शाह ने संसद में कहा था कि दिल्ली में दंगा भड़काने के लिए विदेशों से पैसे भेजे गए थे। उन्होंने बताया कि दंगे से पहले धन बाँटने के लिए पाँच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसके साथ ही अमित शाह ने कहा कि कुछ सोशल मीडिया अकाउंट ऐसे थे, जो दंगों से पहले शुरू किए गए और हिंसा के बाद बंद कर दिए गए। इनसे दंगा, नफरत और घृणा फैलाने का काम किया गया।
उन्होंने कहा, “दिल्ली में हुए दंगों की जाँच पड़ताल में सोशल मीडिया में 60 ऐसे अकाउंट मिले हैं, जो 22 फरवरी को शुरू हुए और 26 फरवरी को बंद हो गए। अगर ये लोग सोचते हैं कि अकाउंट बंद करके वो बच जाएँगे तो मैं बता दूँ कि वो जहाँ पर भी हैं, पुलिस उनको ढूँढ निकालेगी।”
मिली जानकारी के मुताबिक इंडोनेशिया स्थित यह NGO दिल्ली दंगा पीड़ितों को 25 लाख रुपए भेजने की कोशिश में था। इसके लिए संस्था के ट्रस्टी ने दिल्ली के स्थानीय मुस्लिम संस्थानों से संपर्क भी किया था, ताकि वो उनको सहायता प्रदान कर सकें।
बता दें कि यह NGO अपने ट्विटर हैंडल और अन्य प्लेटफार्मों के माध्यम से दंगा से संबंधित चुनिंदा फोटो एवं मैसेज को अपने प्रोपेगेंडा के हिस्से के रूप में प्रसारित कर रहा है। इसके अलावा यह NGO इंडोनेशिया से एक टीम को भी भेजने की योजना बना रहा है, ताकि ये यहाँ पर आकर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की समीक्षा कर सके और ‘पीड़ितों’ को आर्थिक मदद दे सके।
इस NGO को एक अत्यधिक कट्टरपंथी ग्रुप माना जाता है और संस्था अपनी इस्लामी प्रसार के हिस्से के रूप में विभिन्न देशों में मुस्लिम समुदायों को आर्थिक सहायता प्रदान करता है। इसने म्यांमार की सीमा के पास सांप्रदायिक झड़पों के बाद बांग्लादेश में कॉक्स बाजार में विस्थापित रोहिंग्याओं के लिए एक शिविर भी स्थापित किया था।
इसके अलावा इस NGO ने 2015 में लश्कर के मूल संगठन जमात-उद-दावा (JUD) को इंडोनेशिया के बांदा आचे क्षेत्र में रोहिंग्या शिविरों में बाहरी गतिविधियों को अंजाम देने में भी मदद की थी। NGO के इस तरह की गतिविधियों के फोटोग्राफिक रिकॉर्ड इनके ट्विटर हैंडल पर उपलब्ध हैं। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि लश्कर ए तैयबा रोहिंग्या समुदाय और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच अपना विस्तार बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।