ईरान में चाबहार के बाद अब म्यांमार में भी भारत के सहयोग से निर्मित सित्वे पोर्ट चालू हो चुका है जिसके बाद दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक एवं व्यापारिक साख़ मज़बूत होनी निश्चित है। इसे चीन के बेल्ट एन्ड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
राज्य सभा में केंद्रीय राज्यमंत्री मनसुख मंडविया ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि म्यांमार में भारत के सहयोग से निर्मित सित्वे पोर्ट अब काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। ध्यातव्य है कि सित्वे पोर्ट का निर्माण कालादान मल्टी मोडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के अंतर्गत हुआ है जिसके बहुआयामी उद्देश्य हैं।
कालादान प्रोजेक्ट भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों और कलकत्ता को म्यांमार के रखाइन और चिन राज्यों से जल तथा भूमि मार्ग से जोड़ने के लिए 2008 में प्रारंभ किया गया था। भारत ने इस पूरे प्रोजेक्ट पर लगभग ₹3170 करोड़ का निवेश किया है जिसमें से सित्वे पोर्ट और पालेत्वा में अंतर्देशीय जलमार्ग पर लगभग ₹517 करोड़ व्यय हुए हैं।
भारत और म्यांमार ने 22 अक्टूबर 2018 को सित्वे पोर्ट और पालेत्वा में जलमार्ग के संचालन हेतु एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। ईरान में चाबहार के साथ म्यांमार में सित्वे पोर्ट का संचालन प्रारंभ होने से यह पहली बार होगा जब भारत अपनी क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर किसी पोर्ट पर कार्य करेगा।
भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के अंतर्गत सित्वे पोर्ट चालू होने से दक्षिण एशिया में व्यापारिक प्रभुत्व तथा शक्ति संतुलन के आयामों में भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखा जाएगा। सैन्य, सुरक्षा एवं रणनीतिक पक्ष देखें जाएँ तो साढ़े चार वर्ष पूर्व प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार चीन म्यांमार को अपना ‘दूसरा तट’ बनाने की योजना बना रहा था।
भारतीय महासागर को घेरने की चीन की तथाकथित ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स’ रणनीति का एक मोती सित्वे पोर्ट भी था। इंस्टिट्यूट फॉर डिफेन्स स्टडीज़ एंड एनालिसिस में प्रकाशित नम्रता गोस्वामी की रिपोर्ट के अनुसार अंडमान सागर में चीन सिगनल इंटेलिजेंस एकत्र करने के उपकरण लगा रहा था जिससे भारत की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके।
चीन ने कालादान परियोजना को बाधित करने के भरसक प्रयास किए थे। यदि चीन म्यांमार स्थित सित्वे पोर्ट पर अपना अधिकार स्थापित कर लेता तो बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना को अपनी प्रभावी क्षमता पुनः प्राप्त करना अत्यंत कठिन होता। चीन ने म्यांमार के आतंकी गुटों से भी सम्पर्क स्थापित किए थे ताकि उन्हें बांग्लादेश और म्यांमार के मार्ग से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में घुसपैठ कराया जा सके।
सित्वे पोर्ट चालू होने से भारत और म्यांमार के मध्य सांस्कृतिक संबंध भी प्रगाढ़ होंगे। एक समय में तत्कालीन बर्मा के राजा मनुस्मृति के अनुसार राजकाज चलाते थे। स्वतंत्रता आंदोलन में भी बर्मा में रह रहे भारतीयों ने सहयोग किया था। दोनों देशों के मध्य नागरिक संबंध और मजबूत करने के लिए भारत सरकार मिज़ोरम-म्यांमार कालादान सड़क भी बना रही है जिसमें ₹1,600 करोड़ निवेश किए गए हैं।
गत वर्ष 2018 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने म्यांमार सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया जिसके बाद मणिपुर और मिज़ोरम से भारतीय नागरिक अपना वैध पासपोर्ट दिखाकर सीमापार जा सकेंगे।