लेखिका मोनिका अरोड़ा ने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय को इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल की करतूतों को लेकर पत्र लिखा है। स्कॉटिश इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल बिजनेस वीजा लेकर भारत में ही डेरा डाले रहते हैं और दिल्ली में छुट्टियाँ मनाते हैं। मोनिका अरोड़ा ने आरोप लगाया है कि भारत में वीजा लेकर रहने वाले लोगों के लिए कुछ नियम-क़ानून हैं लेकिन विलयम डेलरिम्पल लगातार जानबूझ कर यहाँ के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया है कि विलियम सार्वजनिक रूप से ऐसे नैरेटिव बनाने में लगे रहते हैं और इंटरव्यूज देते हैं, जिनका भारत के लोकतांत्रिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं से सम्बन्ध है। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे सीएए के खिलाफ चल रहे उपद्रव में हिस्सा लेने वाले कुछ विदेशी नागरिकों को वापस भेजा गया था। आईआईटी मद्रास में पढ़ाई कर रहा जर्मन नागरिक जैकोब लिंथेंडल, कोच्चि में रह रही नॉर्वे की जेनी-मेटी-जोहानसन और कोलकाता में रह रही बांग्लादेश की अफसर मीम को देश छोड़ने कहा गया था।
मोनिका अरोड़ा ने आरोप लगाया है कि विलियम डेलरिम्पल अपने ट्विटर हैंडल से लगातार सीएए विरोधी बयान देते रहते हैं, अर्द्धसत्य वाली सूचनाएँ डालते हैं, भारत सरकार के खिलाफ टिप्पणी करते हैं, भारतीय नागरिकों के खिलाफ टिप्पणी करते रहते हैं। इसी तरह के एक ट्वीट में उन्होंने कैलिफोर्निया में रह रहे एक व्यक्ति से कहा था कि वो भारत आकर देखे कि सीएए से भारत में कैसी स्तिथि उत्पन्न हो गई है।
मोनिका अरोड़ा हिन्दू-विरोधी दंगों पर “Delhi Riots 2020: The Untold Story” नामक पुस्तक लिखी थी, जिसका प्रकाशन रुकवाने के लिए लिबरल गैंग ने पूरा जोर लगाया था। ब्लूम्सबरी पब्लिकेशन पर दबाव बना कर इस किताब के प्रकाशन को रोक दिया गया था, जिसके बाद ‘गरुड़ प्रकाशन’ ने ये जिम्मेदारी संभाली। किताब को ऑनलाइन रिलीज किया गया था। अरोड़ा का कहना है कि विलियम ने माना है कि प्रकाशन रुकवाने में उनकी प्रमुख भूमिका थी।
इस मामले में सितम्बर 3, 2020 को दिल्ली में आपराधिक मामला दर्ज कराया जा चुका है, जिसकी जाँच चल रही है। मोनिका अरोड़ा ने पत्र में पूछा है कि एक विदेशी होने के बावजूद विलियम डेलरिम्पल के पास क्या अधिकार है कि वो भारत के संविधान द्वारा उन्हें दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हनन करें? अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने डेलरिम्पल के ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट्स भी शेयर किए, जिसमें वो पुस्तक का प्रकाशन रुकवाने की बात कर रहे हैं।
साथ ही उन्होंने आरोप लगया कि विलियम डेलरिम्पल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी पूर्व में कई लेख लिखे हैं, जिनमें उन्होने गुजरात दंगों में उनका रोल होने की बात की है। जबकि, कोर्ट इस मामले में उन्हें क्लीन चिट दे चुका है। मई 2014 में लिखे अपने एक लेख में उन्होंने लिखा था कि नरेंद्र मोदी ‘2002 नरसंहार में फँसे’ हुए हैं और उन्हें अब भारत का पीएम चुना गया है। इस लेख में उन्होंने पूछा था कि मोदी खतरनाक फासिस्ट हैं या फिर सुधारक?
इस लेख में विलियम डेलरिम्पल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को भारत-पाक विभाजन के दौरान नरसंहार का दोषी करार दिया है। मोनिका अरोड़ा ने आरोप लगाया है कि इस लेख में कई ऐसी बातें हैं, जिनके माध्यम से लेखक ने एक खास विचारधारा को प्रमोट किया है, जो भारतीय संवैधानिक प्रक्रिया और यहाँ संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों पर भरोसा नहीं करता। उन्होंने इसकी तुलना रूस में पुतिन के चुनाव से करते हुए लिखा था कि भारत के लोगों ने एक गैंबल किया है।
हाल ही में विलियम डेलरिम्पल ने एक कार्टून के जरिए एक आम कश्मीरी को रस्सियों से बँधा हुआ दिखाया था और कहा था कि उसकी आवाज़ भारत में कोई नहीं सुन रहा। ऐसा उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के निर्णय के खिलाफ किया था। मोनिका अरोड़ा ने ध्यान दिलाया है कि फॉरेनर्स एक्ट की धारा-14 के तहत कोई भी विदेशी अगर भारतीय वीजा के तय नियमों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है तो उसे 5 वर्षों से अधिक की जेल हो सकती है।
विलियम डेलरिम्पल ‘जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल’ के डायरेक्टर भी हैं और उन्होंने इस बार फेस्ट में पाकिस्तानी अतिथियों की अनुपस्थिति के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा था कि चूँकि फेस्ट कॉन्ग्रेस के शासन वाले राजस्थान में हो रहा है, इसीलिए इस मामले में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। मोनिका अरोड़ा ने ‘मीरा सिंह फार्महाउस’ के मालिक की भी जाँच करने को कहा है, जहाँ वो हमेशा रुकते हैं।
मोनिका अरोड़ा ने माँग की है कि इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार को न सिर्फ विलियम डेलरिम्पल का वीजा रद्द कर के उन्हें देश से निकाल बाहर करना चाहिए, बल्कि भविष्य में भी वो भारत न आ पाएँ, इसीलिए उन्हें ब्लैकलिस्ट भी किया जाना चाहिए। उन्होंने पत्र की एक कॉपी गृह मंत्रालय के इमीग्रेशन कमिश्नर को भी भेजी है। साथ ही सबूत के रूप में वीडियो, लेख व ट्वीट्स के लिंक्स भी एम्बेड किए हैं।
आतिश तासीर ने मोनिका अरोड़ा की दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक को सत्ता का प्रोपेगेंडा करार देते हुए कहा था कि विलियम डेलरिम्पल ने इसके प्रकाशन पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाई है, जिसके लिए वो उनके आभारी हैं। उन्होंने तो यहाँ तक कहा था कि स्कॉटिश लेखक के बिना ये संभव नहीं हो पाता। मोनिका अरोड़ा की इस पुस्तक में जाँच और इंटरव्यूज के हवाले से दिल्ली दंगों का विश्लेषण किया गया है।