केंद्र द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ ‘किसान आंदोलन’ का नेतृत्व करने वाले प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने हिंदी न्यूज़ चैनल आज तक पर दिए एक इंटरव्यू में अपने ग्लोबल लिंक होने की बात स्वीकार की है।
आजतक के शो ‘सीधी बात’ पर पत्रकार प्रभु चावला से बात करते हुए टिकैत ने पुष्टि की कि वह जिस संगठन से जुड़े हैं, उसकी शाखाएँ 73 देशों में हैं और उनका भारतीय शाखा के साथ भी गठबंधन है। बीकेयू के प्रवक्ता ने आगे कहा कि उनके संगठन का प्रदर्शन ब्राजील देश में भी हो रहा है, जहाँ ब्राज़ीलियाई मजदूरों को किसानों में परिवर्तित करने का प्रयास किया जा रहा है। राकेश टिकैत ने कहा, “ब्राजील में हम मजदूर से किसान बना रहे हैं।”
Watch Rakesh Tikait Confirming that he is part of organisation of 73 Countries. They are even working on what is happening in Brazil.
— Janab Aashish (@kashmiriRefuge) February 11, 2021
Indian Protests now is part of what Govts are planning for next 50 Years. They are against Multinational companies pic.twitter.com/kQDDG4jBaW
हालाँकि, इंटरव्यू के दौरान टिकैत अंतरराष्ट्रीय सितारों, जैसे रिहाना, मिया खलीफा और पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग को नहीं जानने का दिखावा भी करते है, जिन्होंने भारत के किसान विरोध का समर्थन किया था। वहीं बातचीत के दौरान उन्होंने अनजाने में ही सही लेकिन विदेशों से अपने कनेक्शन के बारे में खुलासा कर दिया।
दुनियाभर में फैले संगठन की सभी 73 शाखाओं से मिल रहे समर्थन को लेकर प्रभु चावला द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कि बीकेयू नेता ने पुष्टि की कि वे सभी सदस्य जिनकी विचारधारा उनके जैसे हैं, वह उनका समर्थन कर रहे हैं।
गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर रैली प्रदर्शन के दौरान राष्ट्र की राजधानी में प्रदर्शनकारियों द्वारा हुए उपद्रव और हिंसा के लिए संदेह के घेरे में आए टिकैत ने साक्षात्कार के दौरान स्वीकार किया कि वह जिस संगठन से जुड़े हुए है वह आने वाले 50 सालों की नीतियों को लेकर पॉलिसी बना रहा है, जोकि आंदोलन के पीछे अंतरराष्ट्रीय स्तर चल रही बड़ी साजिश का खुलासा करता है।
गौरतलब है कि इस पूरे इंटरव्यू के दौरान राकेश टिकैत काफी भ्रमित दिखाई दिए, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था कि वह वास्तव में सरकार से क्या चाहते हैं या पिछले 75 दिनों से वे वास्तव में किस लिए विरोध कर रहे हैं। इस समय उन्हें बस इतना पता था कि वह बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ मैदान में उतरे हुए हैं।
यहीं नहीं जब पत्रकार ने टिकैत को बताया कि इस साल एमएसपी में सरकार की धान खरीद का रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया है तो उनके चेहरे पर एक अजीब ही झुंझलाहट देखने को मिली। और वहीं जब कई बार सरकार द्वारा इस साल एमएसपी में अधिक धान खरीद के दावे को लेकर पत्रकार ने सवाल किया, तो टिकैत उनकी बातों से भागते नजर आए।
इसके अलावा भ्रमित बीकेयू नेता को यह कहते हुए सुना गया कि उनकी एकमात्र माँग यह है कि सरकार को यह आश्वासन देना चाहिए कि व्यापारी भी किसान की उपज एमएसपी या एमएसपी से अधिक कीमत पर खरीदेंगे।
बीकेयू नेता आगे दावा करते हैं कि प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच सभी 11 दौर की वार्ता के दौरान, मंत्रियों में से किसी ने भी उनसे बात नहीं की। टिकैत ने कहा, “हम तो सरकार को ढूँढ रहे हैं। सरकार है कहाँ? उन्होंने आगे माँग की कि भारत के प्रधानमंत्री को बातचीत के लिए व्यक्तिगत रूप से समय प्रदान करनी चाहिए।
टिकैत के पूरे इंटरव्यू को यहाँ देखें।
उल्लेखनीय है कि राकेश टिकैत मौजूदा किसान आंदोलन का चेहरा रहे हैं। वह अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने के लिए इस विरोध का तरह अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे है। दिल्ली में 26 जनवरी को हुई हिंसक ट्रैक्टर रैली के पीछे एक बड़ी साजिश और आपराधिक घटना के मास्टरमाइंड का पता लगाने के लिए दिल्ली पुलिस ने भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत के खिलाफ लोगों को भड़काने और उकसाने के आरोप में मामला दर्ज किया था।
गणतंत्र दिवस पर हुए हिंसा से पहले टिकैत का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह प्रदर्शनकारियों से ट्रैक्टर रैली में लाठी, झंडे लेकर चलने के लिए कह रहे थे। जिसके बाद गणतंत्र दिवस पर हुए ट्रैक्टर रैली के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजधानी में काफी उत्पात मचाया और पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ते हुए हिंसा को अंजाम दिया।
हजारों प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर भी धावा बोल दिया, और इसकी प्राचीर पर खालिस्तानी झंडे को फहराकर भारत की संप्रभुता के प्रतीक को अपमानित किया। रैली के मद्देनजर जो हिंसा हुई उसमें 300 से अधिक पुलिस कर्मियों को गंभीर चोटें आईं। प्रदर्शनकारियों द्वारा बसों, निजी कारों और सरकारी संपत्तियों की भी तोड़फोड़ की गई थी।
हालाँकि, बाद में टिकैत ने हिंसा की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया, और केंद्र और दिल्ली पुलिस को गणतंत्र दिवस के व्यवधान के लिए दोषी ठहराया था।