प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (फरवरी 27, 2021) को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से ‘भारत खिलौना मेला 2021’ का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि आप सभी से बात करके ये पता चलता है कि हमारे देश के खिलौना उद्योग में कितनी बड़ी ताकत छिपी हुई है, इस ताकत को बढ़ाना, इसकी पहचान बढ़ाना, आत्मनिर्भर भारत अभियान का बहुत बड़ा हिस्सा है। उन्होंने कहा कि ये पहला ‘Toy Fare’ केवल एक व्यापारिक या आर्थिक कार्यक्रम भर नहीं है।
बकौल पीएम मोदी, ये कार्यक्रम देश की सदियों पुरानी खेल और उल्लास की संस्कृति को मजबूत करने की एक कड़ी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता, मोहनजोदारो और हड़प्पा के दौर के खिलौनों पर पूरी दुनिया ने रिसर्च की है। प्राचीन काल में दुनिया के यात्री जब भारत आते थे, तो भारत में खेलों को सीखते भी थे, और अपने साथ लेकर भी जाते थे। आधुनिक लूडो तब ‘पच्चीसी’ के रुप में खेला जाता था।
प्रधानमंत्री ने याद किया कि आज जो शतरंज दुनिया में इतना लोकप्रिय है, वो पहले ‘चतुरंग या चादुरंगा’ के रूप में भारत में खेला जाता था और हमारे धर्मग्रन्थों में भी बाल राम के लिए अलग-अलग कितने ही खिलौनों का वर्णन मिलता है। ‘Reuse और Recycling’ की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह ये भारतीय जीवनशैली का हिस्सा रहे हैं, वही हमारे खिलौनों में भी दिखता है। उन्होंने बताया कि ज़्यादातर भारतीय खिलौने प्राकृतिक और इको-फ्रेंडली चीजों से बनते हैं, उनमें इस्तेमाल होने वाले रंग भी प्राकृतिक और सुरक्षित होते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहाँ खिलौने ऐसे बनाए जाते थे जो बच्चों के चहुँमुखी विकास में योगदान दें। आज भी भारतीय खिलौने आधुनिका फैंसी खिलौनों की तुलना में कहीं सरल और सस्ते होते हैं, सामाजिक-भौगोलिक परिवेश से जुड़े भी होते हैं। उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने की एक कविता का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है- ‘एक खिलौना बच्चों को खुशियों की अनंत दुनिया में ले जाता है। खिलौना का एक-एक रंग बच्चे के जीवन में कितने ही रंग बिखेरता है।’ उन्होंने आगे कहा:
“हमारी परंपराओं, खानपान, और परिधानों में ये विविधताएँ एक ताकत के रूप में नजर आती है। इसी तरह भारतीय खिलौना उद्योग भी इस खास भारतीय नजरिए को, भारतीय विचारबोध को प्रोत्साहित कर सकती हैं। खिलौनों का जो वैज्ञानिक पक्ष है, बच्चों के विकास में खिलौनों की जो भूमिका है, उसे अभिभावकों को समझना चाहिए और अध्यापकों को स्कूलों में भी उसे प्रयोग करना चाहिए। इस दिशा में देश भी प्रभावी कदम उठा रहा है, व्यवस्था में जरूरी कदम उठा रहा है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्ले-आधारित और गतिविधि-आधारित शिक्षा को बड़े पैमाने पर शामिल किया गया है। ये ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जिसमें बच्चों में पहेलियों और खेलों के माध्यम से तार्किक और रचनात्मक सोच बढ़े, इस पर विशेष ध्यान दिया गया है।”
खिलौनों का जो वैज्ञानिक पक्ष है, बच्चों के विकास में खिलौनों की जो भूमिका है, उसे अभिभावकों को समझना चाहिए और अध्यापकों को स्कूलों में भी उसे प्रयोग करना चाहिए।
— BJP (@BJP4India) February 27, 2021
इस दिशा में देश भी प्रभावी कदम उठा रहा है, व्यवस्था में जरूरी कदम उठा रहा है।
– पीएम @narendramodi#Vocal4LocalToys pic.twitter.com/2O3ZgQGer1
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश ने खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख क्षेत्रों में दर्जा दिया है और ‘National Toy Action Plan’ भी तैयार किया गया है, जिसमें 15 मंत्रालयों और विभागों को शामिल किया गया है ताकि ये उद्योग प्रतियोगिता से भरा बने, देश खिलौनों में आत्मनिर्भर बनें और भारत के खिलौने दुनिया में जाएँ। उन्होंने कहा कि इस पूरे अभियान में राज्यों को बराबर का भागीदार बनाकर ‘Toy Cluster’ विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही देश खिलौना पर्यटन की संभावनाओं को भी मजबूत कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज खिलौना मेला के इस अवसर पर हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इस ऊर्जा को आधुनिक अवतार दें, इन संभावनाओं को साकार करें। उन्होंने कहा कि अगर आज ‘मेड इन इंडिया’ की डिमांड है तो आज ‘हैंड-मेड इन इंडिया’ की डिमांड भी उतनी ही बढ़ रही है। पीएम ने भारत में बने खिलौनों पर जोर दिया।
अगस्त 2020 में ‘मन की बात’ में भी खिलौनों पर पीएम मोदी ने विस्तृत बातचीत करते हुए कहा था कि भारत के कुछ क्षेत्र Toy Clusters यानी खिलौनों के केन्द्र के रूप में भी विकसित हो रहे हैं। जैसे, कर्नाटक के रामनगरम में चन्नापटना, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी – कई ऐसे स्थान हैं, कई नाम गिना सकते हैं। उन्होंने बड़ी बात बताई थी कि वैश्विक खिलौना इंडस्ट्री, 7 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक की है।