Friday, November 22, 2024
Homeदेश-समाजगुजरात में 'लैंड जिहाद' ऐसे: हिंदू को पाटर्नर बनाओ, अशांत क्षेत्र में डील करो,...

गुजरात में ‘लैंड जिहाद’ ऐसे: हिंदू को पाटर्नर बनाओ, अशांत क्षेत्र में डील करो, फिर पाटर्नर को बाहर करो

असित गाँधी ने ऑपइंडिया को बताया कि इस तरह की संपत्तियों का लेनदेन बड़े पैमाने पर पूरे गुजरात में होते हैं और लोग कानूनी खामियों का जमकर फायदा उठाते हैं।

गुजरात के सूरत से एक हैरान करने वाला मामला प्रकाश में आया है। यहाँ अशांत क्षेत्र अधिनियम को दरकिनार कर धोखेबाजी से भवन निर्माण के लिए अनुमति ली गई। सूरत के अदजान इलाके में, एक मंदिर के बगल में, रेहान हाइट्स प्रोजेक्ट निर्माण के लिए एक मुस्लिम स्वामित्व वाली एंटरप्राइजेज ने हिंदू साथी को सामने पेश कर निर्माण की अनुमति ली, जो कि कानून को धोखा देने जैसा लगता है।

सूरत के रेहान हाइट्स का मामला

इस मामले के बारे में जानकारी देते हुए सूरत के रहने वाले कार्यकर्ता असित गाँधी ने कहा, “14 मार्च 2020 को सूरत के रांदेर को अशांत क्षेत्र अधिनियम में शामिल किया गया था। इस विशेष मामले में जिस जगह की जमीनों को बेचा गया वहाँ पर तीन आवासीय सोसायटी है। यहाँ की अधिकतर आबादी हिंदू है। पास में ही एक हिंदू मंदिर है। इस क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित किए जाने के ठीक चार दिन बाद 16 मार्च 2020 एवरग्रीन कॉरपोरेशन के मकसूद गोदिल (50%) और मोहम्मद इरफान चमड़िया (50%) ने एक नई भागीदारी शुरू की। इसमें शबनम जुनैद मोतीवाला (10%), अहमद जुनैद मोतीवाला (10%) और प्रकाश धोलारिया (10%) को भागीदार बनाया। इसके लिए उन्होंने अपनी हिस्सेदारियों में 35% तक की कमी की।”

गाँधी के मुताबिक, कंपनी की हिस्सेदारी बाँटने के बाद कंपनी ने धनसुख बेजानवाला, महेश बेजानवाला, अरविंद बेजानवाला और हसमुख बेजानवाला से जमीन खरीदने के लिए अप्लाई किया। उक्त आवेदन में बाकी हिस्सेदारों की धार्मिक पहचान को छिपाते हुए यह बताया गया कि जमीन के खरीददार प्रकाश ढोलरिया और अन्य हैं। 24 मार्च 2020 को जब कोरोना वायरस के कारण देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया गया तो सारी प्रक्रिया स्थगित हो गई। इस कारण अशांत क्षेत्र अधिनियम के तहत आने वाले ऐसे मामलों में उचित प्रक्रिया नहीं की गई।

सूरत के अदाजान स्थित रेहान हाइट्स

एक्टिविस्ट ने इस बात की जानकारी दी कि अशांत क्षेत्र अधिनियम की इस मामले में गलत व्याख्या की गई है। जहाँ खरीदार और विक्रेता के बीच कम से कम एक पक्ष हिंदू या मुस्लिम होता यह अधिनियम लागू होता है। ऐसे क्षेत्रों में इस तरह के किसी भी लेन-देन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करना होता है। यह उन क्षेत्रों के धार्मिक और सामुदायिक मूल्यों और उनकी पहचान को बचाने के लिए है, जो जनसंख्या की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हैं। इस तरह के किसी भी आवेदन के बाद कलेक्टर को औपचारिक जाँच करनी होती है। पुलिस और जिला मजिस्ट्रेट को जाँच करनी होती है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में अधिकारियों को उस जगह खुद जाकर सार्वजनिक तौर पर जानकारियाँ इकट्ठी करनी होती है। इसके अलावा प्रभावित लोगों से लिखित में भी स्वीकृति भी लेनी होती है। इस अधिनियम के तहत वे लोग भी शामिल हैं जो उस संपत्ति के आस-पास रहते हैं। सभी प्रक्रियाओं का पालन होने और उससे संतुष्ट होने के बाद ही कलेक्टर संपत्ति के हस्तांतरण की मँजूरी दे सकते हैं।

इस बीच जब कोरोना महामारी के कारण लगाया गया लॉकडाउन खत्म हो गया और चरणबद्ध तरीके से अनलॉक किया जा रहा था तो कथित तौर पर डिप्टी कलेक्टर ने 20 जून 2021 को बिना किसी औपचारिक जाँच के ही अचल संपत्ति को बेचने की मँजूरी दे दी। खास बात यह है कि 20 जून 2020 को जमीन का ट्रांसफर होने से पहले ही 11 जून, 2020 को उस भूमि पर निर्माण की अनुमति के लिए आवेदन कर दिया गया था।

गाँधी ने आगे बताया कि सूरत नगर निगम ने कलेक्टर की अनुमति के बिना संपत्ति पर होने वाली निर्माण गतिविधि को मँजूरी दे दी। खास बात यह है कि ऐसी संपत्तियों के ट्रांसफर की शर्तों में से एक यह होती है कि अगर इस बात का खुलासा होता है कि लेनदेन के दौरान तथ्यों को छिपाया गया है तो तत्काल उन सौदे को रद्द किया जा सकता है। गलत जानकारी देने के मामले में यह सौदा रद्द करने का मामला बन जाता है।

उल्लेखनीय है कि इस जमीन पर निर्माण की इजाजत मिलने के बाद कंपनी के हिंदू हिस्सेदार प्रकाश ढोलरिया को फर्म से बाहर निकाल दिया गया। 29 अगस्त 2020 को नोटरी पर हुए एक समझौते के अनुसार ‘एवरग्रीन कॉर्पोरेशन’ कंपनी ने ढोलारिया को बाहर निकाल दिया। प्रकाश के इस कंपनी से बाहर निकाले जाने के बाद अब उसमें केवल मकसूद गोदिल (35%), मोहम्मद इरफ़ान चमड़िया (35%), शबनम मोतीवाला (15%) और अहमद जुनैद मोतीवाला (15%) बचे हैं।

सूरत के डिप्टी कलेक्टर ने जमीन सौदे को किया कैंसिल

रेहान हाइट्स ने उस जगह 260 फ्लैटों के साथ 5 ऊँची बिल्डिंग का निर्माण शुरू कर दिया। इस मामले में यह तथ्य सामने आने के बाद सूरत के सिटी डिप्टी कलेक्टर ने अब एवरग्रीन कॉर्पोरेशन और बेजनवाला परिवार के बीच जमीन की बिक्री के मूल सौदे को रद्द कर दिया है।

फिलहाल, डिप्टी कलेक्टर के आदेश के बाद अब सभी तरह के निर्माण गतिविधियों को रोक दिया गया है। नियम के मुताबिक, एक बार संपत्ति के ट्रांसफर के आदेश को रद्द करने के बाद जमीन विक्रेता को भुगतान के रूप में प्राप्त राशि को 3 महीने के भीतर वापस करनी होगी और खरीदार को संपत्ति वापस करनी होगी। ऐसा नहीं होने की स्थिति में जिलाधिकारी 5 साल के कठोर कारावास एवं जंत्री मूल्य के 10% आर्थिक जुर्माना लगाने का आदेश दे सकते हैं।

रेहान हाइट्स कोई अकेली घटना नहीं

हालाँकि, दुर्भाग्य की बात यह है कि यह अपनी तरह की कोई अकेली घटना नहीं है। असित गाँधी ने ऑपइंडिया को बताया कि इस तरह की संपत्तियों का लेनदेन बड़े पैमाने पर पूरे गुजरात में होते हैं और लोग कानूनी खामियों का जमकर फायदा उठाते हैं। इस मामले में वे सूरत पश्चिम के विधायक पूर्णेश मोदी जैसे राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले लोगों के समर्थन के कारण सौदा रद्द करने और कार्रवाई करने में सक्षम थे।

धोखेबाजी भरे लेनदेन कैसे हो रहे हैं इस बात की जानकारी देते हुए गाँधी ने बताया कि इस तरह के लेनदेन तीन तरीकों से होते हैं। उन्होंने कहा, “एक वो लोग नियमित तरीकों से नहीं जाते हैं, बल्कि केवल नोटरीकृत दस्तावेजों के साथ आगे बढ़ते हैं जो संपत्ति के हस्तांतरण से पहले इसकी पूरी प्रक्रियाओं को बाधित करते हैं। कभी-कभी तो इस तरह के लोग संपत्ति के हस्तांतरण के लिए तक इंतजार नहीं करते हैं और निर्माण शुरू कर देते हैं। फ्लैटों का निर्माण करने के बाद उन्हें बेच दिया जाता है, जिससे खरीददार धोखेबाजी में फँस जाते हैं, क्योंकि असल में भूमि का स्वामित्व हस्तांतरित नहीं किया गया होता है। इस धोखाधड़ी का तीसरा तरीका एक बिचौलिए को जोड़कर उसके नाम पर अनुमति लेना और फिर उसे अलग कर देना है।”

हालात ऐसे हो गए हैं कि हाल के दिनों में सूरत के कई इलाकों में धार्मिक पहचान में बदलाव आया है। गाँधी ने इस पर अफसोस जताते हुए कहा, “सूरत के गोपीपुरा क्षेत्र में जैनों की सबसे ज्यादा आबादी थी और यहाँ पर 44 जैन मंदिर भी थे। लेकिन अब यहाँ कुछ ही जैन परिवार रहते हैं और क्षेत्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र बन गया है। इसी तरह नानावट क्षेत्र में प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर स्थित है। जनसंख्या में परिवर्तन होने के बाद अब यहाँ केवल मंदिर का ढाँचा बचा हुआ है। हालाँकि, यहाँ की मूर्तियों को पिपलोद क्षेत्र के दूसरे मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया है। अब मंदिर में देवताओं की मूर्तियाँ नहीं बची हैं।”

उन्होंने कहा, “ऐसा सिर्फ सूरत में नहीं है, बल्कि अहमदाबाद, वडोदरा, कलोल और गुजरात के अन्य स्थानों में भी इसी तरह की कार्यप्रणाली का इस्तेमाल किया जा रहा है।”

गुजरात का अशांत क्षेत्र अधिनियम

उल्लेखनीय है कि सूरत का अदाजान, गुजरात अशांत क्षेत्र अधिनियम के तहत आता है, जहाँ की अचल संपत्ति का हस्तांतरण केवल तभी हो सकता है जब कलेक्टर कलेक्टर संपत्ति के खरीदार और विक्रेता द्वारा किए गए आवेदन पर अपनी साइन कर देते हैं। इसके साथ ही विक्रेता को आवेदन में इस बात का यह उल्लेख करना होता है कि वह अपनी मर्जी से संपत्ति बेच रहा है।

कलेक्टर को जिले का शांतिदूत माना जाता है और सामुदायिक सद्भाव को बनाए रखने की भी जिम्मेदारी उसी की होती है। कोई भी चीज आगे न बढ़े और साम्प्रदायिक दंगे न हों और शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होती है। इस अधिनियम के जरिए सरकार राज्य के संवेदनशील हिस्सों में समुदायों के ध्रुवीकरण पर रोक लगाने की कोशिश कर रही है।

पालड़ी में अहमदाबाद के वर्षा फ्लैट का मामला

इसी तरह की घटना अहमदाबाद के पालड़ी इलाके में भी हुई थी और वहाँ भी अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू है। साल 2019 में जून में अहमदाबाद के पालड़ी में जनकल्याण सहकारी हाउसिंग सोसाइटी में वर्षा फ्लैट बिक्री की अनिवार्य स्वीकृति को वापस लेने के मामले में विवादों में घिर गया था। इसके बाद जब इस सोसायटी का फिर से पुनर्विकास किया जा रहा था तो कई मुस्लिम परिवारों ने संपत्ति की खरीदी की थी। हालाँकि यह क्षेत्र अशांत क्षेत्र अधिनियम के अंतर्गत आता है तो इस सौदे को संपन्न करने के लिए कलेक्टर की अनुमति सहित उचित प्रक्रिया की आवश्यकता होगी।

इसके बाद मामले में कार्रवाई करते हुए अशांत क्षेत्र अधिनियम का उल्लंघन करने के मामले में कलेक्टर ने वर्षा फ्लैट्स में रहने वाले 13 निवासियों को अपार्टमेंट खाली करने का आदेश दे दिया है। इसके साथ ही वर्षा फ्लैट के बिल्डरों और मालिकों के खिलाफ अशांत क्षेत्र अधिनियम के उल्लंघन के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। मामले में वहाँ के लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। वहाँ से उन्हें उन्हें जिला कलेक्टर द्वारा बिक्री की मँजूरी से इनकार करने के खिलाफ विशेष सचिव राजस्व (अपील और रिवीजन) से संपर्क करने के लिए कहा गया।

पवित्र हिंदू तीर्थ स्थल द्वारका और सोमनाथ

मुंबई निवासी आनंद जनसांख्यिकी में हुए इस परिवर्तन को लेकर बात करते हुए गुजरात के सोमनाथ और द्वारका की अपनी हालिया यात्रा का वर्णन करते हैं। उन्होंने कहा कि गुजरात के तीर्थ स्थानों में से एक ‘बेट द्वारका’ है, जहाँ गुजरात पर शासन करने के दौरान भगवान कृष्ण का निवास स्थान था। यह द्वारका के तट पर एक छोटा सा द्वीप है और ओखा से यहाँ से पहुँचने के लिए 30 मिनट की नाव की सवारी करनी पड़ती है।

आनंद कहते हैं द्वारका-दर्शन के लिए जब वह गए तो बस-कंडक्टर के साथ गाइड एक ब्राम्हण ने बड़े ही अच्छे तरीके और उत्साह के साथ गुजरात की प्रचीन समृद्ध विरासत और श्रीकृष्ण के द्वारका के बारे में बात की। उन्होंने कहा, “उसने हमें उस द्वीप पर रहने वाले उन परिवारों के बारे में भी जानकारी दी। उसने बताया कि इस समय द्वीप पर करीब 7,000 परिवार रहते हैं, जिनमें से लगभग 6,000 परिवार मुस्लिम हैं। मैं हिंदू बहुल देश में हिंदू तीर्थस्थल की जनसंख्या में इस तरह के बदलाव से अचंभित हूँ।”

हालाँकि, उनके गाइड ने बताया कि पूरे क्षेत्र में पानी खारा है और यहाँ की प्रजनन क्षमता भी बहुत कम है। यहाँ रहने वाले मुस्लिम मछली व्यवसाय से जुड़े कार्य करते हैं। गाइड ने आनंद को बताया, “द्वीप पर ब्राह्मण मंदिर और दूसरे अनुष्ठान से मिलने वाले पैसे पर निर्भर होते हैं। चूँकि द्वीप पर हिंदू आबादी कम हो रही है, इसलिए घरों में अनुष्ठानों की माँग भी कम हो रही है।”

आनंद ने ओखा से ‘बेट द्वारका’ तक की अपनी यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि हिंदू तीर्थयात्रा के पवित्र स्थलों में से एक बेट द्वारका में पहला दृश्य मस्जिद का था। यहाँ रास्ते में मछली पकड़ने वाली सैकड़ों नावें देखेंगे और इनमें से अधिकांश नावों में दो झंडे दिखते हैं। इनमें से एक झंडा भारतीय ध्वज होगा जो कि शायद भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल का है, जबकि दूसरा इस्लामी ध्वज होगा। ऐसे ही नजारे पूरे द्वारका में भी हैं। मस्जिदों और दरगाहों को रणनीतिक रूप से भारत के पश्चिमी तट पर रखा गया है।

सोमनाथ मंदिर

उदाहरण के लिए यहाँ हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ मंदिर का नक्शा है।

सोमनाथ मंदिर के एक किलोमीटर के दायरे में कम से कम तीन दरगाह/मस्जिद स्थित हैं।

बेट द्वारका का नक्शा

बेट द्वारका कभी भगवान कृष्ण का निवास था और सोमनाथ में कई इस्लामी शासकों द्वारा हमलों और लूटपाट और विनाश का इतिहास रहा है। गजनी के महमूद ने सोमनाथ पर 17 बार आक्रमण किया और उसे लूटा था।

हर भारतीय नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार है और संविधान में यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी के भी साथ कोई भेदभाव न हो। यहीं नहीं संविधान प्रत्येक भारतीय को सुरक्षा भी देता है। अगर कश्मीर जैसी जगहों के भारत के इतिहास को देखें तो यहाँ जनसंख्या में परिवर्तन के कारण हिंदुओं को अपनी जान और धार्मिक पहचान बचाने के लिए पलायन करना पड़ा था। इन क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन सूक्ष्म है, जो कि हकीकत है और इसे एक चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए।

(नोट: निरवा मेहता की मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी रिपोर्ट का अनुवाद कुलदीप सिंह ने किया है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Nirwa Mehta
Nirwa Mehtahttps://medium.com/@nirwamehta
Politically incorrect. Author, Flawed But Fabulous.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

दलित लेखराज की बच्ची का नाम सकीना… राजस्थान के मदरसों में 3000+ गैर मुस्लिम बच्चे, RTI में खुलासा: बजरंग दल का आरोप- इस्लामी शिक्षा...

RTI में सामने आया है कि राजस्थान के मदरसों में 3000+ गैर मुस्लिम बच्चे तालीम ले रहे हैं। इन में अधिकांश संख्या हिन्दू बच्चों की बताई गई है।

गोरखपुर में कोका-कोला से लेकर बिसलेरी तक, 45 कंपनियाँ खोल रही अपनी फैक्ट्री-ऑफिस: CM योगी सौंपेंगे आवंटन पत्र

गोरखपुर में कोका-कोला 350 करोड़ रुपये की लागत से 17 एकड़ में बॉटलिंग प्लांट लगाएगा, जिससे 500 से ज्यादा युवाओं को रोजगार मिलेगा।
- विज्ञापन -