Sunday, April 28, 2024
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रुद्राक्ष, भगवा शॉल, नथुनिया, तुर्की… बुर्के पर कर्नाटक हाई कोर्ट में दुनिया-जहान की दलीलें: स्कूल-कॉलेज खुले, पर फैसला कब

बेंगलुरु की एक शिक्षिका को इस्तीफा देना पड़ा है। उन पर हिजाब को लेकर मुस्लिम छात्रों को अपमानित करने का आरोप लगाया गया था, जिससे वे लगातार इनकार करती रही हैं।

बुर्के पर चल रहे विवाद (Karnataka Hijab Row) के बीच 16 फरवरी 2022 यानी बुधवार से कर्नाटक में 10वीं कक्षा से ऊपर के स्कूल-कॉलेज खुल गए हैं। फिलहाल हाई कोर्ट ने मजहबी पोशाक में शिक्षण संस्थानों में आने पर रोक लगा रखी है। लेकिन न तो समुदाय विशेष के छात्र इसका पालन करने को प्रतिबद्ध दिख रहे और न ही कर्नाटक हाई कोर्ट की फुल बेंच इस संबंध में अंतिम फैसला ले पाई है।

दूसरी ओर बेंगलुरु के विद्यासागर इंग्लिश स्कूल में गणित पढ़ाने वाली शिक्षिका शशिकला को इस्तीफा देना पड़ा है। उन पर हिजाब को लेकर मुस्लिम छात्रों को अपमानित करने का आरोप लगाया गया था, जिससे वे लगातार इनकार करती रही हैं। बावजूद इसके कई मुस्लिम छात्रों के परिजनों ने स्कूल के सामने प्रदर्शन किया था। आखिरकार स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे 14 फरवरी को उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

उल्लेखनीय है कि एक मुस्लिम छात्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कॉलेज की उस कार्रवाई को चुनौती दे रखी है, जिसमें उसे संस्थान में हिजाब पहनकर प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया था। मंगलवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान वकील देवदत्त कामत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश की। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, “हिजाब पहनना इस्लाम के तहत एक आवश्यक मजहबी प्रथा है। इसे स्कूल के दौरान कुछ घंटों के लिए प्रतिबंधित करना, समुदाय के विश्वास को कमजोर करता है और अनुच्छेद 19 और 25 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।”

मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थ, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कामत ने पीठ के सामने रुद्राक्ष का जिक्र करते हुए कहा कि जब वे स्कूल-कॉलेज में थे तो रुद्राक्ष पहनते थे। लेकिन यह धार्मिक पहचाने के लिए नहीं था, बल्कि आस्था का एक अभ्यास था। हिजाब के जवाब में भगवा शॉल के इस्तेमाल को लेकर उन्होंने कहा, “इसका मुकाबला करने के लिए यदि कोई शॉल पहनता है तो यह दिखाना होगा कि यह केवल धार्मिक पहचान का प्रदर्शन है या यह कुछ और है। यदि इसे हिंदू धर्म, हमारे वेदों या उपनिषदों द्वारा अनुमोदित किया गया है तो अदालत इसे बचाने के लिए कर्तव्यबद्ध है।”

इसी तरह कामत ने हिजाब के समर्थन दक्षिण अफ्रीकी कोर्ट के उस फैसले का भी हवाला दिया जो एक भारतीय हिंदू लड़की के नाक की रिंग (नथुनी) पहनने से जुड़ा है। साथ ही दक्षिण अफ्रीका के एक अन्य फैसले, जिसमें स्कूल में लंबे बाल रखने की अनुमति दी गई थी और कनाडा के स्कूल में एक सिख छात्र को कृपाण रखने की अनुमति देने से जुड़े फैसलों का भी जिक्र किया। उन्होंने इस दौरान तुर्की का भी जिक्र किया। कहा, “हमारी धर्मनिरपेक्षता तुर्की की धर्मनिरपेक्षता नहीं है। हमारी धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता है, जहाँ राज्य सभी समुदायों के मौलिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता का प्रयोग करने में सक्षम भूमिका निभाता है। यह सभी धर्मों को सत्य मानता है।”

इससे पहले कामत ने कहा था कि राज्य ये तय नहीं कर सकता कि कोई हिजाब पहनेगा या नहीं। उन्होंने कहा कि किसी कॉलेज के डेवलपमेंट कमिटी की कोई वैधानिक मान्यता नहीं होती है। उन्होंने कहा कि अगर कुरान कहता है कि हिजाब अनिवार्य है तो अदालत को इसे मानना ही पड़ेगा।

नोट: भले ही इस विरोध-प्रदर्शन को ‘हिजाब’ के नाम पर किया जा रहा हो, लेकिन मुस्लिम छात्राओं को बुर्का में शैक्षणिक संस्थानों में घुसते हुए और प्रदर्शन करते हुए देखा जा सकता है। इससे साफ़ है कि ये सिर्फ गले और सिर को ढँकने वाले हिजाब नहीं, बल्कि पूरे शरीर में पहने जाने वाले बुर्का को लेकर है। हिजाब सिर ढँकने के लिए होता है, जबकि बुर्का सर से लेकर पाँव तक। कई इस्लामी मुल्कों में शरिया के हिसाब से बुर्का अनिवार्य है। कर्नाटक में चल रहे प्रदर्शन को मीडिया/एक्टिविस्ट्स भले इसे हिजाब से जोड़ें, लेकिन ये बुर्का के लिए हो रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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