- घर में कोई मर गया है, आपको अंतिम संस्कार के लिए राज्य सरकार से मिलने वाली 2000 रुपए की वित्तीय सहायता चाहिए, मिल जाएगी – बस 200 रुपए निकालिए।
- उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन चाहिए, लग जाएगी – बस 500 से 600 रुपए निकालिए।
- प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाना है, 1.20-1.35 लाख रुपए की सहायता राशि चाहिए, मिल जाएगी – बस 10000 से 25000 तक निकालिए।
- स्वच्छ भारत मिशन के तहत घर में शौचालय बनवाना है, उसके लिए 12000 रुपए की सहायता राशि चाहिए, मिल जाएगी – बस 900 से 2000 तक रुपए निकालिए।
- MGNREGS मतलब ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत काम करना है, हर दिन कमाना है, हो जाएगा – बस हर दिन 20 से 40 रुपए देना होगा।
ये बस कुछ उदाहरण हैं। पश्चिम बंगाल के लोग (खासकर गाँवों के) अब तक इन ‘दरों’ को सरकारी दर समझते थे। आदत हो गई थी। इंडियन एक्सप्रेस के रविक भट्टाचार्य और शांतनु चौधरी की ग्राउंड रिपोर्ट में इस ‘आदत’ या ‘सरकारी दर’ का खुलासा इस कदर हुआ है कि न सिर्फ ग्रामीण बल्कि तृणमूल के कुछ नेताओं ने भी इन विभिन्न योजनाओं के लिए अलग-अलग ‘दर’ की बात स्वीकारी है।
इंडियन एक्सप्रेस ने पश्चिम बंगाल में ‘कट मनी’ कल्चर के खुलासे के लिए कुल 12 गाँवों के लोगों से बातचीत की। ये 12 गाँव हुगली, वर्धमान और बीरभूम में हैं। इन गाँव के लोगों और तृणमूल के स्थानीय नेतों ने यह माना कि राज्य या केंद्र सरकार की किसी भी योजना का लाभ उठाने के लिए उन्हें ‘निर्धारित दर’ चुकाना ही होता है। यह ‘दर’ 200 रुपए से लेकर 25000 रुपए तक फिक्स है।
पश्चिम बंगाल में साल 2011 में जब तृणमूल सत्ता में आई उसके बाद ‘कट मनी’ का प्रचलन आम हो गया। यह इस तरीके से माँगा जाना शुरू हुआ कि ग्रामीणों को पता ही नहीं चला कि यह घूस है बल्कि इसे वे हाल के दिनों तक ‘सरकारी दर’ ही समझते रहे। उन्हें अपने ठगे जाने की बात तब समझ आई जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले महीने अपने नेताओं से ‘कट मनी’ लौटाने को कहा। और वो भी क्यों! इसलिए नहीं कि उन्हें जनता से प्यार है, बल्कि इसलिए क्योंकि उनकी पार्टी की छवि को धूमिल हो चुकी है और राज्य में भाजपा से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है।
जब राज्य की मुख्यमंत्री खुद अपने नेताओं से गैर-कानूनी तरीके से लिए गए पैसों को लौटाने की बात कहती हैं तो जिनके हक के पैसे लिए गए, जो ठगे गए, उनका गुस्सा होना लाजिमी है। यह गुस्सा वैसे तो पूरे बंगाल में है लेकिन वर्धमान, बीरभूम, हुगली, मालदा, मुर्शिदाबाद, कूचबिहार और उत्तर दिनाजपुर जिलों में यह ज्यादा है। क्योंकि ये जिले आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और शायद यहाँ इस तरीके की पार्टी के स्तर वाली ठगी बड़े स्तर पर हुई होगी।
जहाँ तृणमूल के कुछ नेता नाम न छापने की शर्त पर यह स्वीकार कर रहे हैं कि ‘कट मनी’ राज्य भर में एक सच्चाई बन चुकी है, वहीं कुछ इसे भाजपा की साजिश बता रहे हैं। वर्धमान के वरिष्ठ टीएमसी नेता स्वपन देबनाथ की मानें तो भाजपा ही उनके ‘ईमानदार’ नेताओं के घरों के बाहर विरोध प्रदर्शन करवा रही है।
स्वपन देबनाथ की राय से उलट जमीनी सच्चाई हालाँकि कुछ और ही कहानी बयाँ कर रही है। नाम न छापने की शर्त पर हुगली के एक स्थानीय अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हर एक योजना के लिए एक तय दर है। इस सिस्टम में स्थानीय नेताओं से लेकर पंचायत सदस्यों तक का नेटवर्क है। यह सिस्टम छिटपुट शुरू तो हुई थी लेफ्ट वालों की सरकार में लेकिन अब यह पूरी तरह से एक हो गई है।”