Monday, May 6, 2024
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कर्नाटक के जिस कॉलेज से उठी थी बुर्के की आग, वहाँ हिजाब वाली छात्राओं को परीक्षा देने की इजाजत नहीं

11 दिनों की सुनवाई के बाद बीते शुक्रवार को कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था। उससे पहले अदालत ने फैसला आने तक संस्थानों में ड्रेस कोड का पालन करने और मजहबी पोशाक पहनने पर जोर नहीं देने को कहा था।

कर्नाटक के उडुपी स्थित प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज ने हिजाब वाली तीन मुस्लिम छात्राओं को सोमवार (28 फरवरी 2022) को प्रैक्टिल परीक्षा में बैठने की इजाजत नहीं दी। हाई कोर्ट के अंतरिम निर्देशों को मानने से इनकार करते हुए ये छात्राएँ हिजाब पहनकर लिखित परीक्षा में बैठने की माँग पर अड़ी हुईं थी। उडुपी के इसी कॉलेज से बुर्के का विवाद (Karnataka Hijab Row) शुरू हुआ था।

रिपोर्टों के अनुसार तीनों छात्राओं ने कॉलेज प्रिंसिपल रुद्र गौड़ से परीक्षा स्थगित करने को भी कहा था। उन्होंने आरोप लगाया है कि गौड़ा ने उन्हें पुलिस में शिकायत करने की धमकी दी। छात्रा और हिजाब मामले की याचिकाकर्ताओं में से एक अल्मास एएच ने कहा, “हमने आज (28 फरवरी) प्रिंसिपल से एक बार फिर परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का अनुरोध किया।” उसने दावा किया कि दो महीने से उनकी कक्षा नहीं चल रही थी। बावजूद उन्होंने यूट्यूब वीडियो देख तैयारी की थी और उन्हें उम्मीद थी परीक्षा में बैठने की इजाजत मिलेगी। लेकिन छात्रा के अनुसार प्रिंसिपल ने इससे इनकार करते हुए कहा कि यदि वह वहाँ पाँच मिनट और रुकीं तो वे पुलिस से शिकायत करेंगे। उसने 28 फरवरी को किए एक ट्वीट में कहा कि उम्मीदों के विपरीत उसे प्रयोगशाला से बाहर जाने को मजबूर किया। हिजाब के खिलाफ नफरत की वजह से कॉलेज ने उसके सपनों को बिखेर दिया है।

उल्लेखनीय है कि अल्मास और दो अन्य मुस्लिम छात्रा हिजाब में परीक्षा देने पर अड़ी थीं और कॉलेज प्रशासन ने उनकी इस मॉंग को मानने से इनकार कर दिया। दे टेलीग्राफ इंडिया को कॉलेज प्रिंसिपल गौड़ा ने कहा कि जब उन्होंने छात्राओं से अदालत के निर्देश का पालन करने को कहा तो उन्होंने उनकी बात सुनने तक से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “मैंने उनसे काफी देर बात की। बिना हिजाब के परीक्षा देने के लिए उन्हें समझाने का प्रयास किया। मैंने उन्हें निर्देशों का पालन करने और सुबह 9:30 बजे के बाद भी परीक्षा देने को कहा। लेकिन उन्होंने मेरी कोई भी बात मानने से इनकार कर दिया।”

गौरतलब है कि 11 दिनों की सुनवाई के बाद बीते शुक्रवार को कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था। उससे पहले अदालत ने फैसला आने तक संस्थानों में ड्रेस कोड का पालन करने और मजहबी पोशाक पहनने पर जोर नहीं देने को कहा था।

नोट: भले ही इस विरोध-प्रदर्शन को ‘हिजाब’ के नाम पर किया जा रहा हो, लेकिन मुस्लिम छात्राओं को बुर्का में शैक्षणिक संस्थानों में घुसते हुए और प्रदर्शन करते हुए देखा जा सकता है। इससे साफ़ है कि ये सिर्फ गले और सिर को ढँकने वाले हिजाब नहीं, बल्कि पूरे शरीर में पहने जाने वाले बुर्का को लेकर है। हिजाब सिर ढँकने के लिए होता है, जबकि बुर्का सर से लेकर पाँव तक। कई इस्लामी मुल्कों में शरिया के हिसाब से बुर्का अनिवार्य है। कर्नाटक में चल रहे प्रदर्शन को मीडिया/एक्टिविस्ट्स भले इसे हिजाब से जोड़ें, लेकिन ये बुर्का के लिए हो रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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