भारत की स्वघोषित “सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक-राजनीतिक पत्रिका” कारवाँ के सम्पादक विनोद के. होज़े को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। यह तब हुआ जब उनके एंटी-इंडिया प्रोपेगेंडा की प्रसार भारती के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार ए. सूर्यप्रकाश ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कलई खोल दी। और-तो-और, जिस सभा में वह (होज़े) यह सब बोल रहे थे, उसके सभाध्यक्ष ने भी तत्काल ही लोकतांत्रिक दुनिया में हिंदुस्तान के ओहदे को निर्विवाद बताया।
लंदन में झूठ बोलते पकड़े गए होज़े
लंदन में ब्रिटेन और कनाडा द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित मीडिया की आज़ादी पर वैश्विक कॉन्फ्रेंस (ग्लोबल कॉन्फ्रेंस फॉर मीडिया फ्रीडम) के दौरान ‘मीडिया एंड रिलिजन’ सत्र में कारवाँ के कार्यकारी सम्पादक विनोद के. होज़े ने भारत-विरोधी प्रेज़ेंटेशन दिया। बृहस्पतिवार (11 जुलाई, 2019) को हुए इस कार्यक्रम में उन्होंने दावा किया कि हिंदुस्तान के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं। इस दौरान उन्होंने यह भी दावा किया कि “सैकड़ों ईसाईयों की हत्या हो रही है।” और “1984 का सिख हत्याकांड भी आरएसएस का रचा हुआ था।” अपने दावों के सबूत के तौर पर उन्होंने कथित अल्पसंख्यकों पर हमले के मीडिया द्वारा कवरेज के वीडियो भी दिखाए।
सूर्यप्रकाश का पलटवार
होज़े के प्रेज़ेंटेशन के बाद जब दर्शकदीर्घा के प्रति-प्रश्नों का समय आया तो सूर्यप्रकाश ने श्रोताओं को होज़े के दावों में गलतियों के प्रति आगाह करते हुए उनके कथनों को गलत बताया। उन्होंने याद दिलाया कि हिंदुस्तान न केवल (आबादी के लिहाज से) सबसे बड़ा, बल्कि सबसे जीवंत लोकतंत्र भी है। एक समाज के तौर पर हिंदुस्तानी समाज सबसे अधिक विभिन्नताओं वाला भी है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर दर्शक होज़े पर भरोसा कर (हिंदुस्तान की नकारात्मक छवि ले) वापस जाएँगे, तो यह वैश्विक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए आघात होगा।
‘एक्टिविस्टों को जनादेश से दिक्कत’
सूर्यप्रकाश ने यह भी कहा कि दुनिया के कुछ एक्टिविस्टों को हालिया लोकसभा के जनादेश से समस्या है। इसीलिए वे अपनी थ्योरियाँ चलाने के लिए ऐसे मंचों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण दिया कि वहाँ हुए कुछ नस्लीय दंगों जैसी गिनी-चुनी घटनाओं से पूरा देश नस्लभेदी या लोकतंत्र-विरोधी नहीं हो जाता।
ब्रिटिश सांसद ने संभाली बात
सूर्यप्रकाश ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आयोजकों का ऐसे खुले तौर पर हिंदुस्तान-विरोधी प्रेज़ेंटेशन को मंच देना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि दुनिया के सबसे जीवंत लोकतंत्र पर हमला कर के लोकतंत्र के हितों की कोई हिमायत नहीं होती। सूर्यप्रकाश की नाराज़गी दूर करने के लिए उस सत्र के सभाध्यक्ष और ब्रिटिश सांसद लॉर्ड अहमद ने तुरंत उनकी टिप्पणी का संज्ञान लिया और लोकतान्त्रिक विश्व में भारत की साख की तारीफ की। लॉर्ड अहमद विंबलडन के सांसद होने के अतिरिक्त कॉमनवेल्थ और संयुक्त राष्ट्र मामलों के ब्रिटिश विदेश राज्य मंत्री भी हैं।