Sunday, December 22, 2024
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‘ऊँट कौन है, जो पहाड़ के नीचे आ गया’: उमर खालिद को हाईकोर्ट ने बताई ‘लक्ष्मण रेखा’, कहा- PM के लिए ‘जुमला’ का इस्तेमाल ठीक नहीं

इससे पहले पीठ ने 22 अप्रैल, 2022 को उमर खालिद की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके भाषण को आपत्तिजनक और भड़काऊ बताया था। खालिद का भाषण सुनने के बाद पीठ ने कहा था कि ये आपत्तिजनक और अप्रिय हैं। जिन भावों का इस्तेमाल किया जा रहा है, ये लोगों को उकसाते हैं।

दिल्ली दंगों का मास्टरमाइंड और UAPA के तहत जेल में बंद उमर खालिद (Umar khalid) की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने बुधवार (27 अप्रैल 2022) को कठोर शब्दों में कहा कि देश के प्रधानमंत्री (Prime Minister) के लिए ‘जुमला’ जैसे शब्द का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किन तरह के शब्दों के प्रयोग किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना करते समय ‘लक्ष्मण रेखा’ का ख्याल रखना आवश्यक है।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ को उमर के वकील ने अमरावती में दी गई स्पीच सुनाई। इस पर कोर्ट ने कहा कि भाषण में प्रधानमंत्री के लिए ‘चंगा’ और ‘जुमला’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया, क्या यह उचित है? इस पर दलील देते हुए खालिद के वकील त्रिदीप पेस ने कहा कि सरकार का विरोध करना अपराध नहीं है। उन्होंने कहा कि CAA के विरोध में सरकार की आलोचना के लिए इस्तेमाल किए गए इन शब्दों के लिए UAPA लगाना ठीक नहीं है।

उमर खालिद के स्पीच को सुनने के बाद जस्टिस भटनागर ने ने वकील से पूछा कि ये ऊँट किसे कह रहे हैं, जो पहाड़ के नीचे आ गया? कोर्ट ने अमरावती में खालिद ने खुद को क्रांतिकारी और इंकलाबी कहा। कोर्ट ने कहा कि फ्री स्पीच के अधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इसकी आड़ में भड़काने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

इससे पहले पीठ ने शुक्रवार (22 अप्रैल, 2022) को उमर खालिद की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके भाषण को आपत्तिजनक और भड़काऊ बताया था। खालिद का भाषण सुनने के बाद पीठ ने कहा था कि ये आपत्तिजनक और अप्रिय हैं। जिन भावों का इस्तेमाल किया जा रहा है, ये लोगों को उकसाते हैं।

अदालत ने कहा, “क्या ये कहना कि जब आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे, गलत नहीं है? अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर ऐसे भड़काऊ बयान नहीं दिए जा सकते। लोकतंत्र में इसकी इजाजत नहीं है।” पीठ ने पूछा, “क्या आपको नहीं लगता कि इस्तेमाल किए गए ये भाव लोगों भड़काने वाला है? यह पहली बार नहीं है जब आपने अपने भाषण में ऐसा कहा है। आपने यह कम से कम पाँच बार कहा। यह लगभग ऐसा है जैसे कि भारत की आजादी की लड़ाई केवल एक समुदाय ने लड़ी थी।” पीठ ने सवाल उठाया कि क्या गाँधी जी या शहीद भगत सिंह जी ने कभी इस भाषा का इस्तेमाल किया था?

पीठ ने जब पूछा था कि खालिद पर क्या आरोप हैं। इसके जवाब में त्रिदीप पेस ने दलील दी कि खालिद पर साजिश का आरोप लगाया गया है, लेकिन वह उस वक्त शहर में मौजूद नहीं था। हालाँकि, पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया अदालत कह सकती है कि खालिद द्वारा दिया गया भाषण स्वीकार्य नहीं है। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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