उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवपी विवादित ढाँचे में एक शिवलिंग का मिलना एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अदालत की निगरानी में किए गए सर्वेक्षण का जहाँ हिन्दू जश्न मना रहे हैं, वहीं इस्लामवादी जानबूझकर इसे नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि केंद्रीय खुफिया एजेंसियाँ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और उसके कार्यकारी सदस्य सैयद कासिम रसूल इलियास की गतिविधियों पर कड़ी नजर रख रही हैं, जिन्होंने संस्था की तरफ से ज्ञानवापी विवादित ढाँचा मामले के विवरण की समीक्षा के लिए एक कानूनी समिति का गठन किया था।
AIMPLB बोर्ड ने 18 मई को मामले में ज्ञानवापी मस्जिद, इंतेजामिया मस्जिद कमिटी और उसके वकीलों के रखरखाव निकाय को कानूनी सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया। इसके साथ ही पूजा स्थलों पर विवाद पैदा करने वाले लोगों के इरादे से जनता को अवगत कराने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने का भी निर्णय लिया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसियाँ जमीन की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और बोर्ड एवं उसके सदस्यों की गतिविधियों पर नजर रख रही हैं। अधिकारियों ने कहा कि ज्ञानवापी मामले में सैयद कासिम रसूल इलियास की बढ़ती दिलचस्पी चिंता का विषय है। इलियास बाबरी विवादित ढाँचा एक्शन कमिटी से भी जुड़े थे और अपनी ओर से बयान जारी कर रहे थे।
इस बीच इस्लामिक आतंकवादी संगठन SIMI और वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया (WPI) से संबंधों को लेकर जाँच एजेंसियों ने इलियास से पूछताछ की। बता दें कि इलियास जेएनयू कार्यकर्ता और दिल्ली हिंदू विरोधी सीएए दंगों के आरोपित उमर खालिद के पिता हैं।
ज्ञानवापी मामले में एआईएमपीएलबी के कार्यकारी सदस्य इलियास पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर अपना तर्क देते रहे हैं। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने 21 मई को कहा कि जब से पूजा स्थल अधिनियम 1991 में अस्तित्व में आया है, तब से किसी भी पूजा स्थल को लेकर विवाद की कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा, “यह सर्वसम्मति से तय किया गया था और यहाँ तक कि भाजपा के समर्थन से संसद में पारित किया गया था कि बाबरी मस्जिद के बाद ऐसे मामलों को नहीं छुआ जाएगा। यह बेहद निराशाजनक है कि निचली अदालत ने सर्वेक्षण की अनुमति दी।”
उन्होंने अदालत के आदेशों का अपमान किया और उस पर एक विशेष पक्ष का साथ देने का आरोप लगाया। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर बढ़ती कीमतों, बेरोजगारी और महामारी के कारण सामने आए स्वास्थ्य मुद्दों जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “यह खेदजनक है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस पर खामोश हैं। इसके अलावा खुद को धर्मनिरपेक्ष दल बताने वाले राजनीतिक दल भी चुप्पी साधे हुए हैं।”
सैयद कासिम रसूल इलियास और बेटे उमर खालिद
गौरतलब है कि सैयद कासिम रसूल इलियास प्रतिबंधित इस्लामिक आतंकवादी संगठन सिमी के पूर्व सदस्य हैं। उन्होंने इसे 1985 में उमर खालिद के जन्म से काफी पहले छोड़ दिया था। वर्ष 2019 में, उन्होंने मुर्शिदाबाद जिले की मुस्लिम बहुल सीट जंगीपुर निर्वाचन क्षेत्र से वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया (WPI) के टिकट पर पश्चिम बंगाल से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। सिमी के पूर्व सदस्य अब जमात-ए-इस्लामी हिंद और एआईएमपीएलबी की केंद्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य हैं।
दूसरी ओर इलियास का बेटा खालिद 2019 में दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों का प्रमुख चेहरा बन गया था। उसने दिल्ली पुलिस के सामने स्वीकार किया कि वह मुस्लिम समूहों को संगठित करने, उन्हें भड़काने और बड़े पैमाने पर हिंसा की तैयारी करने में शामिल था।
उसने नए कानून को ‘मुस्लिमों के खिलाफ’ बताते हुए कानून के खिलाफ मस्लिमों को लामबंद किया था और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की भारत यात्रा के बीच ‘चक्का जाम’ में महिलाओं और बच्चों को शामिल करने की भी योजना बनाई थी। उसने कथित तौर पर AAP के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और एक अन्य आरोपित खालिद सैफी से PFI में अपने संपर्कों के माध्यम से दंगों के दौरान रसद समर्थन का आश्वासन देने के लिए मुलाकात की थी।
रिपोर्टट्स के मुताबिक एजेंसियाँ उन माओवादियों के बीच सांठगांठ पर नजर रख रही हैं और चेतावनी दे रही हैं, जिनके प्रमुख संगठन खालिद के साथ गठबंधन है और कट्टरपंथी इस्लामवादियों का कथित रूप से प्रतिनिधित्व जमात-ए-इस्लामी हिंद, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया और प्रतिबंधित संगठन सिमी द्वारा किया जाता है।