उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार राज्य के मदरसों का सर्वे करवा रही है। यह सर्वे बीते मंगलवार यानि 13 सितंबर से शुरू हो चुका है। मदरसों के इस सर्वे के लिए 5 अक्टूबर तक की समय सीमा निर्धारित की गई है। मदरसों के सर्वे को लेकर ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद’ के अध्यक्ष डॉ इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा है कि सर्वे के शुरू होते ही राज्य से 2500 मदरसे गायब हो गए हैं।
अमर उजाला से हुई बातचीत में, डॉ इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा है, “कोई भी व्यक्ति जो गरीब मुसलमानों के बच्चों को आधुनिक बेहतर शिक्षा देने का पक्षधर होगा, वह मदरसों के सर्वे को गलत नहीं ठहरा सकता। हमें समझना चाहिए कि मदरसों के सर्वे का विरोध अब तक कौन और क्यों कर रहा था? जो असदुद्दीन ओवैसी मदरसों के सर्वे को दूसरा एनआरसी कह रहे थे, उन्हीं के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी का बेटा अमेरिका में एमबीबीएस कर रहा है और बेटी लंदन में लॉ पढ़ रही है।”
उन्होंने लोगों से अपील की कि लोग ओवैसी की बातों में न आएँ। उन्होंने बताया, “वे लोग अपने बच्चों को बड़े अंग्रेजी मिशनरी स्कूलों में पढ़ाकर उनके लिए तरक्की का रास्ता खोलना चाहते हैं। जबकि गरीब के बच्चों को धार्मिक शिक्षा तक सीमित रखना चाहते हैं, क्यों? इसके पीछे केवल राजनीति जिम्मेदार है, लेकिन मैं कहना चाहता हूँ कि मुसलमानों के गरीब बच्चे भी अब आधुनिक शिक्षा हासिल कर सकेंगे। उनके विकास का रास्ता खुल गया है।”
मदरसों के सर्वे का विरोध करने वाले लोगों पर आगे बोलते हुए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डॉ जावेद ने यह भी कहा कि जो लोग मदरसों के सर्वे का विरोध कर रहे थे वे इसे मुसलमानों के आंतरिक मामलों में सरकार का दखल बता रहे थे। लेकिन जब आप केंद्र सरकार से हर साल 3000 करोड़ रुपए की सहायता लेंगे। अनेकों मदरसों में 50 हजार से लेकर लाख रुपए से ज्यादा वेतन लेंगे और उन्हीं मदरसों में सरकार से मिलने वाली बिजली-पानी, सड़क की सुविधा का उपयोग करेंगे, तो यह आपका व्यक्तिगत मामला कैसे रह गया। सरकार को ऐसे संस्थानों के लिए नियम बनाने और इसके हितधारकों की चिंता करने का अधिकार है। इससे कोई बच नहीं सकता।
इसके अलावा, डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि यह सच है कि भारी संख्या में मदरसे केवल कागजों पर चल रहे थे। इनके नाम पर आने वाला चंदे-जकात का पैसा गलत लोगों की जेबों में जा रहा था। जब सर्वे की शुरुआत हुई थी, तब यूपी में 19 हजार से ज्यादा मदरसे होने की बात कही जा रही थी। लेकिन अब इनकी संख्या केवल 16,513 रह गई है। यानी ढाई हजार से ज्यादा मदरसे गायब हो गए हैं। इससे गलत हाथों में जाने वाला पैसा बचेगा और यह पैसा गरीब मुसलमानों के बच्चों की शिक्षा पर खर्च होगा।