अधिकारी हो या नेता, वे किसी से सवाल करने से नहीं डरते। वे कैमरा और माइक लेकर ग्राउंड जीरो पर उतरने से नहीं हिचकते। वे कभी सड़क और पुल निर्माण की क्वालिटी पर सवाल उठाते। कभी थाने में घुस पुलिसिया तौर-तरीकों पर। वे कभी छात्रों की आवाज बन जाते, कभी आम आदमी की। भले उनके तौर-तरीकों को लेकर लोगों की राय अलग-अलग हो, लेकिन उन्हें देखने-सुनने वाले भी हजारों-लाखों हैं। यही कारण है कि हाल के समय में बिहार की वे समस्याएँ भी नग्न होकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा पा गईं, जिससे मुख्यधारा की मीडिया मुँह मोड़ती रहती है।
लेकिन आज जब बिहार के कई शहरों में रामनवमी शोभा यात्राओं को निशाना बनाया गया है, उनकी आवाज कहीं न तो सुनाई पड़ रही है और न दिखाई। आखिर ये बेधड़क आवाजें बिहारशरीफ और सासाराम की ग्राउंड जीरो से क्यों नहीं सुनाई पड़ रहीं? हम बात कर रहे हैं उन यूट्यूबर्स की जो हाल के समय में बिहार से जुड़े हर मुद्दे पर ग्राउंड जीरो की आवाज बनकर उभरे थे। इसमें मनीष कश्यप, रवि भट्ट, निभा सिंह, अभिषेक तिवारी, अभिषेक मिश्रा, सूरज, रवि रंजन जैसे नाम शामिल हैं।
लेकिन इनमें से कोई भी बिहार में हालिया हिंसा की रिपोर्ट करता नहीं दिख रहा। ‘सच तक न्यूज’ नाम से यूट्यूब चैनल चलाने वाले मनीष कश्यप तमिलनाडु पुलिस की कस्टडी में हैं। रवि भट्ट के चैनल का नाम भले ‘टाइम ऑफ अयोध्या’ हो, लेकिन वे भी खबरें बिहार पर ही केंद्रित करते रहे हैं। भट्ट की इस समय बिहार की आर्थिक अपराध शाखा (EOU) तलाश कर रही है। इन दोनों की हालत देख जो बचे यूट्यूबर हैं, उन्होंने बिहारशरीफ और सासाराम से दूरी बना रखी है।
बिहार के ऐसे ही एक यूट्यूबर ने नाम न छापने की शर्त पर ऑपइंडिया को बताया, “हम सब जानते हैं कि मनीष कश्यप के खिलाफ मामलों में दम नहीं हैं। देर-सबेर उनको अदालत से राहत मिलनी ही है। लेकिन उनके साथ जो सुलूक किया गया, उसका मकसद ही हम जैसों लोगों को डराना था। मेनस्ट्रीम मीडिया को नियंत्रित करना सरकार के लिए आसान था। लेकिन हमलोग उन खबरों को भी सामने ला देते थे जो सरकार नहीं सामने आने देना चाहती थी। जिसको मेनस्ट्रीम मीडिया जगह नहीं देती थी। लोकल यूट्यूब चैनल चलाने वाले लोगों को दबाने के लिए ही मनीष कश्यप पर कार्रवाई की गई।”
वे कहते हैं, “हम सब डरे हुए हैं। इस माहौल में यदि बिहारशरीफ और सासाराम से चीजों को दिखाने लगे तो कोई नहीं जानता कब पुलिस किस मामले में फँसा दे। हम तो फिर भी पूरे राज्य में रिपोर्टिंग करते रहे हैं। लेकिन ‘बिहार दर्शन न्यूज’ जैसे चैनल जो सासाराम की लोकल खबरों को कवर करते रहे हैं और जिनके सब्सक्राइबर भी बहुत ज्यादा नहीं हैं, वे भी मनीष कश्यप की हालत देख झमेले में नहीं पड़ना चाहते। उन्होंने भी रामनवमी पर हुई हिंसा और बाद में जो कुछ हुआ उस पर कोई रिपोर्ट नहीं की है।”
इस दावे की पड़ताल के लिए हमने ‘बिहार दर्शन न्यूज’ के यूट्यूब चैनल को भी खंगाला। जो आखिरी वीडियो इस चैनल पर अपलोड किया गया था वह डेहरी नगर परिषद मतदान से जुड़ी थी। उससे पहले मोटरसाइकिल पर भव्य शोभा यात्रा निकालने की खबर थी। लेकिन रामनवमी शोभायात्रा पर हुए हमले से जुड़ी कोई खबर हमें इस चैनल पर नहीं मिली।
इसी तरह मनीष कश्यप के ‘सच तक न्यूज’ चैनल जिसके 66 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं पर आखिरी वीडियो दो सप्ताह पहले अपलोड हुआ था। यह वीडियो भी सरेंडर से पहले उनकी ओर से जारी किया गया है। उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों के साथ कथित हिंसा से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग करने के बाद मनीष कश्यप पर शिकंजा कसा गया था। ध्यान रहे कि मेनस्ट्रीम मीडिया में भी कथित हिंसा को लेकर रिपोर्टें प्रकाशित हुईं थी। यह भी जानने योग्य बात है कि तमिलनाडु विवाद से ठीक पहले मनीष कश्यप ने सेना के एक जवान की पिटाई को लेकर बिहार पुलिस को घेरा था।
2.23 लाख सब्सक्राइबर वाले चैनल ‘द अभिषेक तिवारी शो’ पर भी हालिया हिंसा को लेकर हमें कोई रिपोर्ट नहीं दिखी। रिपोर्टर निभा के नाम से मशहूर निभा सिंह के चैनल ‘आरएन न्यूज’, जिसके 10 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं पर भी हमें इससे जुड़ी कोई रिपोर्ट खबर लिखे जाने तक नहीं दिखी। हालिया हिंसा की रिपोर्टिंग से ऐसी ही दूरी हमें हमें समर्थ राठौर, प्रिंसिपल ऑफ न्यूज, सच बिहार, काबिल न्यूज जैसे अन्य चैनलों पर भी देखने को मिला।
इनके ग्राउंड जीरो से गायब होने से भी ज्यादा दुखद, उनके भीतर का वह डर है, जिसके कारण इनमें से कई ने ऑपइंडिया के संपर्क करने पर भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। इनके गायब होने की वजह से बिहारशरीफ और सासाराम जैसी जगहों की वास्तविक स्थिति को लेकर भी पूरी तरह से तस्वीर स्पष्ट नहीं हो पा रही।
मसलन बिहार पुलिस ने दावा किया कि बिहारशरीफ और सासाराम में स्थिति सामान्य और नियंत्रण में है। लेकिन उसके कुछ घंटों बाद ही मेनस्ट्रीम मीडिया में सासाराम के मोची टोला में बम फेंके जाने की खबर सोमवार (3 अप्रैल 2023) की सुबह आई। इन रिपोर्टों में स्थानीय लोगों के हवाले से दावा किया गया था कि मोटरसाइकिल सवार चार लोग आए और बम फेंक कर चले गए। पुलिस ने कुछ घंटों बाद कहा कि घर की दीवार पर पटाखे मारे गए थे। लेकिन पुलिस के इस दावे पर उस मोहल्ले के लोगों का क्या कहना है, यह बात अब तक मीडिया में नहीं आई है।
इसी तरह हिंसा प्रभावित क्षेत्र से पलायन करते लोगों की वीडियो सामने आए जिसे पुलिस ने अफवाह बता दिया। कई मीडिया हाउस ने बाद में इससे जुड़ा अपना ट्वीट ही डिलीट कर लिया। 1 अप्रैल 2023 को भी सासाराम में मस्जिद के पास ब्लास्ट की खबर आई थी। पुलिस ने इसे एक मकान के अहाते में बम तैयार करते हुए हुआ विस्फोट बताया। लेकिन यह जानकारी नहीं दी कि वह मकान किसका था, जिसके अहाते में बम बनाया जा रहा था। वे दो लोग कौन हैं जिनको इस मामले में गिरफ्तार किया गया है।
हिंसा से जुड़े ऐसे बहुतेरे दावे सोशल मीडिया में वायरल हैं, जिनका जवाब बिहार पुलिस टैग किए जाने के बावजूद नहीं दे रही। आधी-अधूरी जानकारी वाले ट्वीटों को लेकर सोशल मीडिया में बिहार पुलिस ट्रोल भी की जा रही है। बावजूद तस्वीर स्पष्ट करने के प्रयास नहीं हो रहे। दरअसल ऐसी तमाम जानकारी जो पुलिस सार्वजनिक नहीं कर रही है, ग्राउंड जीरो पर यूट्यूबर्स की मौजूदगी से बिहार में अतीत में बाहर आ जाती थी। ये यूट्यूबर्स यदि आज सासाराम में होते तो वे आपको बता चुके होते कि जिस मकान के अहाते में बम बन रहा था, वह किसका है। यह मकान मस्जिद से कितनी दूरी पर है। यह मकान जिस मोहल्ले में है, कभी वहीं पुलिस पर भी हमला हुआ था। वगैरह, वगैरह…
जिस राज्य में सत्ता संरक्षित बाहुबलियों के बारे में खबर प्रकाशित करने पर पत्रकार की हत्या कर दी जाती हो। जिस राज्य का पूर्व मुख्यमंत्री और चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव सवाल पूछने पर पत्रकार को सार्वजनिक तौर पर कहें- दे देंगे दो मुक्का नाच के गिर जाओगे, उस राज्य में इन बेधड़क आवाजों के उभार ने व्यवस्था के हर नट-बोल्ट को आम लोगों के सामने नंगा कर दिया था। शायद यही कारण है कि सोशल मीडिया में पूछा जा रहा है कि जिस नीयत से मनीष कश्यप पर कार्रवाई की गई, क्या बिहार सरकार उसमें सफल हो गई है?