Friday, November 22, 2024
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बधाई हो रवीश जी! अनंतनाग में ग्रेनेड फेंका गया, आज ख़ुश तो बहुत होंगे आप?

इस हमले के बाद 'ट्रोलवीश कुमार' का एक प्राइम टाइम तो आराम से निकल ही जाएगा- इस घटना के लिए राष्ट्रपति से लेकर भाजपा तक से सवाल करते हुए। वह मीठी आवाज़ में जनता को यह बता ही देंगे कि देखो, केंद्र सरकार के लाख दावों के बावजूद कैसे आतंकी सफल हो गए।

जम्मू-कश्मीर को लेकर मीडिया गिरोह ने एक ऐसा नैरेटिव गढ़ा, जिससे यह प्रतीत हुआ कि राज्य में चल रही सारी समस्याएँ वर्तमान सरकार की ही देन हैं और वहाँ सुरक्षा-व्यवस्था चाक-चौबंद करना बड़ी भूल है। सबसे पहले तो अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने को ‘अलोकतांत्रिक’ सिद्ध करने की कोशिश की गई लेकिन संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पास होने और कई विरोधी दलों का भी साथ मिलने से विपक्षी सांसत में पड़ गए। इसके बाद मीडिया के एक धड़े ने ‘कश्मीरियत’ की बात करनी शुरू की लेकिन जब उन्हें राज्य के वाल्मीकि समुदाय व महिलाधिकारों की याद दिलाई गई तो वे बगले झॉंकने लगे।

उसके बाद मीडिया का यह वर्ग इस उम्मीद में बैठा रहा कि जम्मू-कश्मीर में कुछ बहुत बड़ा हो, जिससे वे केंद्र सरकार के घेर सकें और उसके फ़ैसले को ग़लत ठहरा सकें। आख़िर में कुछ आतंकियों ने उनके इस स्वप्न को साकार करने के बीड़ा उठाया, लेकिन जहाँ-तहाँ मुठभेड़ में सभी मारे गए। हालाँकि, उन्होंने खुन्नस निकालने के लिए मासूम कश्मीरियों को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया लेकिन सुरक्षा बलों ने समय रहते कई बड़े हमले नाकाम किए। जम्मू बस स्टैंड के पास से विस्फोटक जब्त किए गए। अंत में मीडिया के उस वर्ग ने अलगाववादियों और कश्मीरी नेताओं को नज़रबंद किए जाने को लेकर लोकतंत्र का राग अलापना शुरू कर दिया।

रवीश कुमार ने तो अपने शो में राज्यपाल सत्यपाल मलिक के उस बयान का भी मज़ाक बनाया, जिसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर में नौकरियों में बम्पर भर्तियाँ करने की बात कही थी। राज्यपाल ने इंटरनेट बहाली में देरी का कारण बताते हुए कहा था कि इसका इस्तेमाल आतंक और अशांति फैलाने वाले कर सकते हैं। एनडीटीवी के पत्रकार रवीश ने पब्लिक से राज्यपाल को यह बताने को कहा कि इंटरनेट छात्रों की पढ़ाई के काम भी आता है। क्या यह सोचने लायक बात नहीं है कि जब किसी बहुत बड़े खतरे की आशंका रही होगी, तभी इंटरनेट को प्रतिबंधित किया गया होगा? क्या सरकार को नहीं पता होगा कि इंटरनेट के अच्छे उपयोग भी हैं?

रवीश कुमार जम्मू-कश्मीर और पूरे देश को एक जैसे ही देखते हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें वस्तुस्थिति का ज्ञान नहीं, उन्हें ख़ूब पता है कि पूरे देश की और जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियों में काफ़ी अंतर है। रवीश का तर्क था कि अगर आतंकवाद के बहाने जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट को बैन किया जा रहा है तो ऐसा पूरे देश में भी किया जा सकता है। क्या पूरे देश में पत्थरबाजी आम बात थी? क्या पूरे देश में पाकिस्तान पोषित आतंकी रोज़ घुसपैठ के लिए तैयार रहते हैं? क्या पूरे देश में अलगाववादी नेता हैं और वे भारत को गालियाँ देते हैं? क्या पूरे देश में दो निशान-दो संविधान चलता था? क्या पूरे देश में आए दिन आतंकी घटनाएँ होना आम बात थी? जाहिर है, इसका जवाब ना में है।

अब जम्मू-कश्मीर से ऐसी ख़बर आई है, जिससे रवीश के कलेजे को ज़रूर ठंडक मिली होगी। ‘कुछ बड़ा होने’ की उम्मीद में बैठे रवीश को केंद्र सरकार पर कटाक्ष करने का एक और मौक़ा मिल ही गया। वे राहत महसूस कर रहे होंगे। दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग में शनिवार (सितम्बर 5, 2019) को डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर के सामने ग्रेनेड अटैक हुआ। इस हमले में एक ट्रैफिक पुलिस का जवान और एक पत्रकार सहित 14 लोग घायल हो गए। अगस्त 5, 2019 को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद से घाटी में यह दूसरा ग्रेनेड अटैक है।

यह हमला उस क्षेत्र में हुआ, जहाँ डीसी का ऑफिस होने के कारण पहले से ही सुरक्षा-व्यवस्था चुस्त थी। आतंकियों ने गश्त लगा रहे सुरक्षा बलों के जवानों पर ग्रेनेड फेंके। हालाँकि, निशाना चूकने की वजह से ग्रेनेड सड़क पर गिर गया, जिससे एक दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। 13 लोगों को अस्पताल में इलाज के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया, जबकि एक की स्थिति ख़राब होने के कारण उसे अभी भी अस्पताल में ही रखा गया है। हालाँकि, वह ख़तरे से बाहर है। जैसा कि होना था, इस ब्लास्ट के बाद शहर में भय का माहौल बन गया। सुरक्षा बल आतंकियों की तलाश में इलाक़े में घेराबंदी कर सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं।

अभी तक किसी भी आतंकी संगठन ने इस हमले की ज़िम्मेदारी नहीं ली है। आपको याद होगा कि राजधानी श्रीनगर के नवा कदल क्षेत्र में सीआरपीएफ पर 28 सितम्बर को इसी तरह का ग्रेनेड अटैक हुआ था। क्या रवीश कुमार को इस तरह के हमलों के बाद ख़ुशी होती है कि उन्हें सरकार को घेरने का एक और मौक़ा मिल गया? जब हमले नहीं हो रहे थे, तब उन्हें समस्या होती है कि सब कुछ इतना शांत-शांत सा क्यों है, कुछ तो गड़बड़ है। अब जब एकाध हमलों की ख़बरें आ गई हैं, अब उनकी समस्या यह हो सकती है कि सरकार वहाँ सुरक्षा के लिए क्या कर रही है? रवीश ऐसा बोल सकते हैं:

“आतंकियों ने ग्रेनेड हमला किया। आख़िर जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के इतने जवान क्या कर रहे हैं? इस हमले के कारण एकाध छात्र रेलवे और बैंकिंग का फॉर्म भरने से वंचित रह गए होंगे। सरकार राज्य के नागरिकों की सुरक्षा के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठा रही? जब ग्रेनेड फेंका गया, तब प्रधानमंत्री बांग्लादेश की पीएम से मुलाक़ात की तैयारी कर रहे थे। आख़िर ढाका के रामकृष्ण मिशन में विवेकानंद भवन का उद्घाटन करने से जम्मू-कश्मीर के उन छात्रों को क्या मिलेगा, जो रेलवे और बैंकिंग की परीक्षा नहीं दे पा रहे? कहीं पुलिस इस हमले के बाद निर्दोष लोगों को गिरफ़्तार कर के उन पर इल्जाम न डाल दे। आख़िर क्या सबूत होगा कि सुरक्षा बल जिन्हें पकड़ेंगे, वो आतंकी ही होंगे?”

असल में रवीश कुमार इतनी आजादी चाहते हैं कि उनके दोनों ही हाथों में लड्डू हों। वह चाहते हैं कि जब सुरक्षा-व्यवस्था पुख्ता रहने के कारण सब शांत रहे तब वह ये कहें कि कश्मीरियों को बोलने की आज़ादी नहीं दी जा रही है। वह ये भी चाहते हैं कि प्रतिबंधों में ढील के बाद अगर आतंकी किसी वारदात को अंजाम देने में सफल हो जाएँ, तब वह पूछें कि सरकार क्या कर रही है, सुरक्षा बल क्या कर रहे हैं और प्रधानमंत्री तब कहाँ थे? रवीश के कलेजे में ठंडक इसलिए भी आई होगी क्योंकि अब उन्हें ऐसे सवाल पूछने का मौक़ा मिल गया है। रवीश चाहते हैं कि हमले न हों तो सरकार द्वारा ‘डर का माहौल’ बनाए जाने की बात करें और हमले हों तो ये कहें कि सरकार आतंकियों द्वारा बनाए गए ‘डर का माहौल’ को काबू में नहीं कर पा रही।

जब सब शांत होता है, रवीश को लगता है कि ज़रूर सरकार कुछ गड़बड़ कर रही है

इस हमले के बाद ‘ट्रोलवीश कुमार’ का एक प्राइम टाइम तो आराम से निकल ही जाएगा- इस घटना के लिए राष्ट्रपति से लेकर भाजपा तक से सवाल करते हुए। वह मीठी आवाज़ में जनता को यह बता ही देंगे कि देखो, केंद्र सरकार के लाख दावों के बावजूद कैसे आतंकी सफल हो गए (मन में भाव- ओहो, आतंकी सफ़ल हो गए। वाओ। अब तो सबको घेरूँगा)। मीडिया का एक वर्ग भी फिर से यही चलाएगा कि जम्मू-कश्मीर में सरकार असफल हो रही है। अगर हमले बंद हो जाएँगे तो फिर मीडिया मानवाधिकार का मुद्दा लेकर आएगी, जैसा अभी कुछ दिनों पहले हो रहा था।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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