Monday, November 25, 2024
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अजीत भारती

पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

जब अदरक-लहसुन तहज़ीब का भार हिन्दुओं की रीढ़ तोड़ता है, तब मध्यस्थता होती है

पहले तो ऐसे मसलों पर बात ही नहीं होनी चाहिए, और अगर हो भी रही है तो खुदाई में निकले मंदिर और बक्सों में बंद सबूतों को बाहर लाकर, उस पर निर्णय हो, न कि दलाली से, जिसके लिए आपने मीडिएशन और मध्यस्थता जैसे सुनने में अच्छे लगने वाले शब्द बना दिए हैं।

लिप्सटिक नारीवाद: सिंदूर पोंछ दो, चूड़ियाँ तोड़ दो, साड़ियाँ खोल लो, ब्रा उतार दो

क्या पूरे नारीवाद का विमर्श अब इतने पर आकर गिर गया है कि कोई सिंदूर क्यों लगाती है, बिंदी क्यों चिपकाती है, ब्रा क्यों पहनती है?

रागा का रा-फेल राग: नशे-सी चढ़ गई ओए…

कभी-कभी तो दया आती है इस व्यक्ति पर, लेकिन फिर वो ख़ूनी, लुटेरा पंजा दिखता है भारतीय तिरंगे के तीन रंगों के साथ और...

टीवी ने रवीश को जो काम था सौंपा, इस शख़्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी (भाग २)

ये लोकतंत्र है, इसमें हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति का मूल्य बराबर है। आपकी अभिव्यक्ति किसी सामान्य नागरिक की अभिव्यक्ति से ऊपर कैसे हो जाएगी? आपको लगता है कि जो ज्ञानधारा आप बहाते हैं, वही निर्मल है, और आम जनता सीवेज़ का पानी फेंक रही है।

जवानों के ख़ून की दलाली महागठबंधन के नेता कर रहे हैं, और इसका फल उनको शीघ्र मिलेगा

जबकि, ऐसे मौक़ों पर चुप होकर देश और सेना के साथ खड़े होने का बात कहते हुए अपने वोटर बेस को बचाने की जुगत भिड़ानी थी, महागठबंधन एक तरह से भाजपा की तैयार पिच पर खेल रही है, और अपना जनाधार सेना पर सवाल खड़े करते हुए खो रही है।

एयर स्ट्राइक का सबूत माँगता लिबटार्ड गिरोह, महाशिवरात्रि पर दूध चढ़ाने का विरोध करना भूला

हमें यह जानकारी पतंजलि का विज्ञापन पाने वाले 'प्राइम टाइम' के प्रोड्यूसर से मिली जिन्हें हमने दस रुपया प्रति चैट स्क्रीनशॉट की दर से देने का वायदा किया।

नफ़रतों के तीर खा कर, दोस्तों के शहर में, हमने आपातकाल पुकारा (भाग 1)

सरकार डरा रही है, तो आप मत डरिए। आप अपनी स्टोरी कीजिए और आगे बढ़िए। सबूत होंगे तो देश का सुप्रीम कोर्ट चार बजे सुबह में भी खुलता है, आतंकियों के लिए। आप तो फिर भी पत्रकार हैं!

…और प्रधानमंत्री रैलियाँ कर रहा है!

आपने ऑफिस जाना बंद कर दिया? आपने लोगों से बात करना छोड़ दिया? आप तो देशभक्त व्यक्ति हैं जो कि प्रधानमंत्री से ज़्यादा ध्यान देते हैं ऐसी बातों पर, फिर आप क्या कर रहे हैं संवेदना प्रकट करने के लिए? फेसबुक पोस्ट लिखकर, व्हाट्सएप्प में ये पूछ रहे हैं कि मोदी रैलियाँ क्यों कर रहा है?