विश्व की सबसे अर्थव्यवस्थाओं में से एक ब्राजील ने चीन को करारा झटका दिया है। ब्राजील ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में ना शामिल होने का फैसला लिया है। ब्राजील के इस फैसले से भारत को और मजबूती मिली है। ब्राजील ने यह फैसला चीन राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा से ठीक पहले लिया है। ब्राजील का कहना है कि वह BRI में ना रह कर भी चीन के साथ सहयोग करेगा और विकास को आगे बढ़ाने के लिए काम करेगा।
क्या है ब्राजील का फैसला?
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा के एक विशेष सलाहकार सेल्सो अमोरिम ने सोमवार (28 अक्टूबर, 2024) को मीडिया से बताया कि ब्राजील आधिकारिक तौर पर BRI में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा है कि ब्राजील इसके बजाय चीन के साथ दूसरे तरीकों से सहयोग करेगा।
ब्राजील ने कहा कि वह चीन के साथ काम करने को तैयार है लेकिन कोई संधि समझौते पर दस्तखत नहीं करेगा। अमोरिम ने कहा कि “चीन इसे बेल्ट एंड रोड का नाम देता है…वह जो भी नाम देना चाहते हैं दे सकते हैं। लेकिन जो बात मायने रखती है वह यह है कि इसमें ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिन्हें ब्राजील ने प्राथमिकता समझता है लेकिन चीन इन्हें ऐसा समझ भी सकता है या नहीं भी।”
ब्राजील के कुछ बड़े राजनेता हाल ही में चीन गए भी थे जहाँ वह BRI को लेकर उत्साहित नहीं हुए और उनके वापस आने के बाद ब्राजील का यह फैसला सामने आया है। ब्राजील चाहता है कि उसे सारे प्रोजेक्ट का फायदा भी मिले लेकिन कोई डील ना करनी पड़े।
इस फैसले से ब्राजील को करारा झटका लगा है। चीन की आशा थी कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नवम्बर में होने वाली ब्राजील यात्रा में BRI पर सहमति बन जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चीन को अब ब्राजील से फायदा लेने के नए रास्ते खोजने होंगे।
क्यों BRI में शामिल नहीं हुआ ब्राजील?
ब्राजील का BRI में शामिल ना होने का फैसला काफी सोच समझ कर लिया गया लगता है। ब्राजील, दक्षिणी अमेरिका का सबसे बड़ा देश और उसके अमेरिका के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। वह चीन के साथ कोई आधिकारिक समझौता करके अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहता।
इसके अलावा ब्राजील खुद को महाशक्ति बनाने का विजन रखता है, ऐसे में चीन के झंडे तले चलना भी उसे रास नहीं आने वाला। वहीं चीन के BRI की भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई अच्छी छवि नहीं रही है। BRI को लेकर चीन पर लगातार कई आरोप लगते रहे हैं।
चीन पर आरोप है कि वह BRI में शामिल देशों को फालतू के प्रोजेक्ट के लिए कर्जे देता है और फिर जब यह देश कर्ज नहीं चुका पाते तो उन प्रोजेक्ट पर अधिकार जमा लेता है। इसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह है, जिसे चीन ने 99 साल की लीज पर लिया है। कर्ज के ब्याज को लेकर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं।
BRI को चीन जहाँ दुनिया जोड़ने का प्रोजेक्ट बताता है, वहीं रक्षा विशेषज्ञ इसमें छुपी सैन्य रणनीतियों पर भी प्रकाश डालते रहे हैं। कई देश यह भी कह चुके हैं कि आर्थिक विकास के बाहने चीन दुनिया भर में अपने सैन्य ठिकाने बना रहा है।
ब्राजील से अमेरिका BRI में शामिल होने को लेकर विचार करने को लेकर कहता रहा है। ब्राजील के अमेरिका साथ संबंध, चीन की विस्तारवादी छवि, कर्ज के जाल का डर और स्थानीय समस्याओं को ब्राजील के फैसले के पीछे के बड़े कारण माना जा सकता है।
भारत को क्या फायदा?
ब्राजील के इस कदम से भारत को भी फायदा होगा। अभी तक BRICS में भारत अकेला ऐसा देश था जिसने BRI के लिए हामी नहीं भरी थी। अब BRICS के दो संस्थापक सदस्य ही इसके खिलाफ होंगे। इससे BRICS में भारत का पक्ष और मजबूत होगा।
भारत, चीन इस प्रोजेक्ट का विरोध मूल रूप से इस लिए करता है क्योंकि इसका एक हिस्सा अक्साई चिन और POK से निकलता है। भारत लगातार कहता है कि चीन ने यहाँ BRI प्रोजेक्ट बना कर भारत की संप्रभुता में दखल दिया है। इसके अलावा भारत और चीन के बीच सीमा विवाद, चीन का विस्तारवादी रवैया और उसके कर्जे के जरिए फंसाने वाली नीति से भी भारत असहमत है।
चीन BRI के जरिए अफ्रीका और एशिया के देशों में प्रभाव बढ़ा रहा है। भारत भी इन देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने को लेकर काम करता रहा है। ऐसे में दोनों के आपसी हित भी टकराते हैं। ब्राजील का BRI के अंतर्गत ना जाना भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ताकत देगा।
क्या है BRI?
BRI, चीन की एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य चीन को पूरी दुनिया से अलग-अलग माध्यमों से जोड़ना है। यह विश्व की अब तक की सबसे महँगी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना है। इस परियोजना में अब तक 1 ट्रिलियन से अधिक का निवेश हो चुका है।
BRI के अंतर्गत चीन सड़क, रेल और समुद्र के जरिए पूरे विश्व को जोड़ना चाहता है, जिससे उसे खुद का व्यापार करने में आसानी हो। BRI का इतिहास चीन ‘रेशम मार्ग’ में बताता है जो कई सदियों पहले यूरोप और एशिया के बीच व्यापार का प्रमुख रूट था।
चीन इस परियोजना के अंतर्गत श्रीलंका, पाकिस्तान, कजाख्स्तान, समेत विश्व के 100 से अधिक देशों में बंदरगाह, रेल लाइन और एयरपोर्ट आदि का निर्माण कर रहा है। पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह इसी का एक उदाहरण है। इस परियोजना में एशिया,यूरोप समेत दक्षिणी अमेरिका के कई देश शामिल हैं। यह
यह परियोजना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक ड्रीम प्रोजेक्ट है। चीन की यह परियोजना बीते कुछ सालों में संकट में भी फंसी है। सदस्य देशों पर बढ़ते कर्ज और निवेश से पैसा वापस ना आना लगातार चिंताएँ भी बढ़ा रहा है। ऐसे में कई देश इससे हाथ पीछे खींच रहे हैं।