Wednesday, November 20, 2024
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ब्राजील ने पकड़ी भारत की राह, चीन के BRI में शामिल होने से किया मना: जिनपिंग को बड़ा झटका, जानें इससे क्या फायदा

विश्व की सबसे अर्थव्यवस्थाओं में से एक ब्राजील ने चीन को करारा झटका दिया है। ब्राजील ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में ना शामिल होने का फैसला लिया है। ब्राजील के इस फैसले से भारत को और मजबूती मिली है। ब्राजील ने यह फैसला चीन राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा से ठीक पहले लिया है। ब्राजील का कहना है कि वह BRI में ना रह कर भी चीन के साथ सहयोग करेगा और विकास को आगे बढ़ाने के लिए काम करेगा।

क्या है ब्राजील का फैसला?

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा के एक विशेष सलाहकार सेल्सो अमोरिम ने सोमवार (28 अक्टूबर, 2024) को मीडिया से बताया कि ब्राजील आधिकारिक तौर पर BRI में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा है कि ब्राजील इसके बजाय चीन के साथ दूसरे तरीकों से सहयोग करेगा।

ब्राजील ने कहा कि वह चीन के साथ काम करने को तैयार है लेकिन कोई संधि समझौते पर दस्तखत नहीं करेगा। अमोरिम ने कहा कि “चीन इसे बेल्ट एंड रोड का नाम देता है…वह जो भी नाम देना चाहते हैं दे सकते हैं। लेकिन जो बात मायने रखती है वह यह है कि इसमें ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिन्हें ब्राजील ने प्राथमिकता समझता है लेकिन चीन इन्हें ऐसा समझ भी सकता है या नहीं भी।”

ब्राजील के कुछ बड़े राजनेता हाल ही में चीन गए भी थे जहाँ वह BRI को लेकर उत्साहित नहीं हुए और उनके वापस आने के बाद ब्राजील का यह फैसला सामने आया है। ब्राजील चाहता है कि उसे सारे प्रोजेक्ट का फायदा भी मिले लेकिन कोई डील ना करनी पड़े।

इस फैसले से ब्राजील को करारा झटका लगा है। चीन की आशा थी कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नवम्बर में होने वाली ब्राजील यात्रा में BRI पर सहमति बन जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चीन को अब ब्राजील से फायदा लेने के नए रास्ते खोजने होंगे।

क्यों BRI में शामिल नहीं हुआ ब्राजील?

ब्राजील का BRI में शामिल ना होने का फैसला काफी सोच समझ कर लिया गया लगता है। ब्राजील, दक्षिणी अमेरिका का सबसे बड़ा देश और उसके अमेरिका के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। वह चीन के साथ कोई आधिकारिक समझौता करके अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहता।

इसके अलावा ब्राजील खुद को महाशक्ति बनाने का विजन रखता है, ऐसे में चीन के झंडे तले चलना भी उसे रास नहीं आने वाला। वहीं चीन के BRI की भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई अच्छी छवि नहीं रही है। BRI को लेकर चीन पर लगातार कई आरोप लगते रहे हैं।

चीन पर आरोप है कि वह BRI में शामिल देशों को फालतू के प्रोजेक्ट के लिए कर्जे देता है और फिर जब यह देश कर्ज नहीं चुका पाते तो उन प्रोजेक्ट पर अधिकार जमा लेता है। इसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह है, जिसे चीन ने 99 साल की लीज पर लिया है। कर्ज के ब्याज को लेकर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं।

BRI को चीन जहाँ दुनिया जोड़ने का प्रोजेक्ट बताता है, वहीं रक्षा विशेषज्ञ इसमें छुपी सैन्य रणनीतियों पर भी प्रकाश डालते रहे हैं। कई देश यह भी कह चुके हैं कि आर्थिक विकास के बाहने चीन दुनिया भर में अपने सैन्य ठिकाने बना रहा है।

ब्राजील से अमेरिका BRI में शामिल होने को लेकर विचार करने को लेकर कहता रहा है। ब्राजील के अमेरिका साथ संबंध, चीन की विस्तारवादी छवि, कर्ज के जाल का डर और स्थानीय समस्याओं को ब्राजील के फैसले के पीछे के बड़े कारण माना जा सकता है।

भारत को क्या फायदा?

ब्राजील के इस कदम से भारत को भी फायदा होगा। अभी तक BRICS में भारत अकेला ऐसा देश था जिसने BRI के लिए हामी नहीं भरी थी। अब BRICS के दो संस्थापक सदस्य ही इसके खिलाफ होंगे। इससे BRICS में भारत का पक्ष और मजबूत होगा।

भारत, चीन इस प्रोजेक्ट का विरोध मूल रूप से इस लिए करता है क्योंकि इसका एक हिस्सा अक्साई चिन और POK से निकलता है। भारत लगातार कहता है कि चीन ने यहाँ BRI प्रोजेक्ट बना कर भारत की संप्रभुता में दखल दिया है। इसके अलावा भारत और चीन के बीच सीमा विवाद, चीन का विस्तारवादी रवैया और उसके कर्जे के जरिए फंसाने वाली नीति से भी भारत असहमत है।

चीन BRI के जरिए अफ्रीका और एशिया के देशों में प्रभाव बढ़ा रहा है। भारत भी इन देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने को लेकर काम करता रहा है। ऐसे में दोनों के आपसी हित भी टकराते हैं। ब्राजील का BRI के अंतर्गत ना जाना भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ताकत देगा।

क्या है BRI?

BRI, चीन की एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य चीन को पूरी दुनिया से अलग-अलग माध्यमों से जोड़ना है। यह विश्व की अब तक की सबसे महँगी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना है। इस परियोजना में अब तक 1 ट्रिलियन से अधिक का निवेश हो चुका है।

BRI के अंतर्गत चीन सड़क, रेल और समुद्र के जरिए पूरे विश्व को जोड़ना चाहता है, जिससे उसे खुद का व्यापार करने में आसानी हो। BRI का इतिहास चीन ‘रेशम मार्ग’ में बताता है जो कई सदियों पहले यूरोप और एशिया के बीच व्यापार का प्रमुख रूट था।

चीन इस परियोजना के अंतर्गत श्रीलंका, पाकिस्तान, कजाख्स्तान, समेत विश्व के 100 से अधिक देशों में बंदरगाह, रेल लाइन और एयरपोर्ट आदि का निर्माण कर रहा है। पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह इसी का एक उदाहरण है। इस परियोजना में एशिया,यूरोप समेत दक्षिणी अमेरिका के कई देश शामिल हैं। यह

यह परियोजना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक ड्रीम प्रोजेक्ट है। चीन की यह परियोजना बीते कुछ सालों में संकट में भी फंसी है। सदस्य देशों पर बढ़ते कर्ज और निवेश से पैसा वापस ना आना लगातार चिंताएँ भी बढ़ा रहा है। ऐसे में कई देश इससे हाथ पीछे खींच रहे हैं।

सरकारी जमीन पर खड़ी कर दी मस्जिद, गिराने की उठी माँग तो दाऊद इब्राहिम के नाम से धमकी: जानिए क्या है मामला, क्यों कुशीनगर के हिंदू कर रहे विरोध

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले से सरकारी जमीन पर कब्जा कर मस्जिद और ईदगाह बनाने का मामला सामने आया है। इसे गिराने की माँग करने पर हिंदू शिकायतकर्ता को दाऊद इब्राहिम के नाम से धमकी दी जा रही है। ये मजहबी स्थल जिले के तमकुहीराज के गहड़िया चिंतामणि गाँव में सड़क किनारे बने हैं।

बताया जा रहा है कि ये निर्माण उस समय किए गए जब प्रदेश में सपा की सरकार थी। इस मामले में गाँव के पूर्व प्रधान इस्लाम अंसारी की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं। प्रशासन मामले की जाँच कर रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गाँव गड़हिया चिंतामणि को आसपास के कस्बों से लोक निर्माण विभाग (PWD) की एक सड़क जोड़ती है। इसी गाँव के रविंद्र शाही ने प्रशासन से शिकायत की है कि इस सड़क के किनारे एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर एक मस्जिद और ईदगाह का निर्माण करवाया गया है। शाही सहित कई अन्य ग्रामीणों का आरोप है कि इन मजहबी स्थलों की वजह से लोगों को आने-जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

अवैध निर्माण का आरोप गड़हिया चिंतामणि गाँव के पूर्व प्रधान इस्लाम अंसारी पर लगा है। शाही के मुताबिक समाजवादी पार्टी की सरकार में इस्लाम अंसारी की हनक हुआ करती थी। उसी सरकार में PWD की जमीन घेर कर पहले बाउंड्री करवाई गई और बाद में इस पर इमारत खड़ी कर दी गई। अब इस मस्जिद में नमाज़ भी होती है। सड़क से सटी इस मस्जिद में माइक आदि भी लगवा दिए गए हैं। धीरे-धीरे मस्जिद के आसपास की भी काफी जमीन घेर ली गई और वहाँ ईदगाह का निर्माण करवा दिया गया।

शिकायतकर्ता के अनुसार राजस्व विभाग की टीमें मौके की जाँच कर रिपोर्ट उच्चधिकारियों को भेज चुकी हैं। इस रिपोर्ट में मस्जिद और ईदगाह सरकारी जमीन पर बने होने की बात कही गई है। हालाँकि इस रिपोर्ट पर अभी तक सीनियर अधिकारियों ने कोई निर्णय नहीं लिया है। बकौल रविंद्र शाही जब से उन्होंने इस अवैध निर्माण की शिकायत प्रशासनिक अधिकारियों से की है तभी से उनको परिवार सहित जान से मार डालने की धमकियाँ मिल रहीं हैं। ये धमकियाँ दाऊद इब्राहिम के नाम से दी जा रही हैं। धमकी सोशल मीडिया के जरिए दी गई है। धमकाने वाले व्यक्ति ने फेसबुक पर दाऊद इब्राहिम की प्रोफ़ाइल फोटो लगा रखी है।

हिंदू संगठन ने की हनुमान चालीसा पाठ की घोषणा

मस्जिद और ईदगाह को अवैध बताते हुए हिन्दू संगठनों ने भी मोर्चा खोल दिया है। कुशीनगर के हिन्दू संगठन ‘सनातन सेना’ ने इस अवैध निर्माण को तत्काल गिराने की माँग को लेकर उपजिलाधिकारी को ज्ञापन दिया है। संगठन के मुखिया अर्जुन किशोर ने कहा है कि अगर जल्द ही प्रशासन अवैध निर्माण को नहीं गिराता है तो उसी जगह पर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा। सनातन सेना ने इस अवैध निर्माण को लेकर इस्लाम अंसारी पर भी एक्शन की माँग उठाई है।

काली पूजा पर मंदिर में दी जाएगी 10000 पशुओं की बलि, रोक लगाने से कलकत्ता हाई कोर्ट का इनकार: कहा- पूरे पूर्वी भारत को शाकाहारी नहीं बना सकते

कलकत्ता हाई कोर्ट की अवकाश पीठ ने काली पूजा” के अवसर पर कोलकाता के बोल्ला काली मंदिर में पशुओं की बलि पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि पूर्वी भारत में धार्मिक प्रथाएँ उत्तर भारत से अलग हैं। इसलिए उन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा। यह कई समुदायों के लिए ‘आवश्यक धार्मिक प्रथा’ हो सकती हैं।

न्यायमूर्ति विश्वजीत बसु और अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ अखिल भारतीय कृषि गो सेवक संघ की दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें याचिकाकर्ताओं ने शुक्रवार (1 नवंबर 2024) को होने वाली पशुओं की बलि को रोकने के लिए तत्काल राहत की माँग की थी। हालाँकि, पीठ ने इस पर पूरी सुनवाई के बिना अंतरिम आदेश देना सही नहीं। है।

हालाँकि, हाई कोर्ट की पीठ ने कहा कि माना कि पशु बलि एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, साथ ही यह भी कहा कि उत्तर भारत और पूर्वी भारत में आवश्यक प्रथा क्या है, इसमें बहुत अंतर है। पीठ ने टिप्पणी की, “यह विवाद का विषय है कि पौराणिक पात्र वास्तव में शाकाहारी थे या मांसाहारी।”

संगठन ने अदालत से भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को राज्य के विभिन्न मंदिरों में ‘सबसे वीभत्स और बर्बर तरीके से की जाने वाली अवैध पशु बलि’ को रोकने के लिए तत्काल निर्देश देने की माँग की। जब उनके वकील से पूछा गया कि क्या वे सभी मंदिरों में प्रतिबंध चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि फिलहाल वे दक्षिण दिनाजपुर के एक विशेष मंदिर में प्रतिबंध चाहते हैं।

पीठ ने कहा, “एक बात तो स्पष्ट है, यदि अंततः भारत के पूर्वी भाग को शाकाहारी बनाने का लक्ष्य है तो यह नहीं हो सकता है… महाधिवक्ता हर दिन मछली के के बिना नहीं रह सकते!” इसके बाद राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता ने कहा कि वह पूरी तरह से मांसाहारी हैं।

इस पर जस्टिस बसु ने कहा, “आपको धारा 28 (पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960) की वैधता को चुनौती देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि बलि की प्रथा काली पूजा या किसी अन्य पूजा की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है, जैसा कि भारत के पूर्वी भाग के नागरिक इसका पालन करते हैं। खान-पान की आदतें अलग-अलग होती हैं।”

दरअसल, जस्टिस बसु जिस धारा का उल्लेख कर रहे थे उसमें कहा गया है, “इस अधिनियम में निहित कोई भी बात किसी भी समुदाय के धर्म द्वारा अपेक्षित तरीके से किसी भी पशु को मारना अपराध नहीं बनाएगी।” इसके बाद हाई कोर्ट की पीठ ने राहत देने से इनकार करते हुए आगे की सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध कर दिया।

पिछले साल मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ से भी इस संगठन ने ‘बोल्ला काली पूजा’ के अवसर पर 10,000 बकरियों और भैंसों के वध पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। पीठ ने पशु बलि को रोकने के लिए अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था। हालाँकि, पीठ पश्चिम बंगाल में पशु बलि की वैधता के बड़े सवाल पर विचार करने के लिए सहमत हुई।

बोल्ला गाँव बालुरघाट शहर से 20 किलोमीटर दूर बालुरघाट-मालदा राजमार्ग पर स्थित है। इस गाँव में एक ऐतिहासिक मंदिर है, जहाँ श्रद्धालु माँ काली की पूजा करते हैं। मुख्य काली पूजा रास पूर्णिमा के बाद शुक्रवार को होती है। दक्षिण दिनाजपुर जिले के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा के दौरान मंदिर में इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस दौरन तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।

नूर आलम के पास इलाज कराने गई महिला, बेहोशी का इंजेक्शन लगा किया रेप: पीड़िता ने की सुसाइड की कोशिश, बंगाल का बलात्कारी डॉक्टर गिरफ्तार

पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले में नूर आलम नाम के एक निजी डॉक्टर ने अपनी महिला मरीज को बेहोशी का इंजेक्शन लगाकर उसके साथ रेप किया और अश्लील फोटो खींच ली। इसके बाद इसे वायरल करने की धमकी देकर उससे कई बार दुष्कर्म किया। उसने 4 लाख रुपए की फिरौती भी माँगी। पुलिस ने मंगलवार (29 अक्टूबर 2024) को नूर आलम को गिरफ्तार कर लिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, घटना उत्तरी 24 परगना जिले के हसनाबाद इलाके की है। यहाँ अकेले रहने वाली एक महिला कुछ समय से बीमार थी। उसका पति विदेश में कमाने के लिए गया है। कुछ समय पहले पीड़िता इलाज के लिए डॉक्टर नूर आलम के पास गई थी। डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद पीड़िता को तुरंत राहत के लिए इंजेक्शन लगवाने की नसीहत दी।

हालाँकि, महिला इंजेक्शन नहीं लगवाना चाहती थी लेकिन डॉक्टर ने जल्द ठीक हो जाने का झाँसा देकर उसे तैयार कर लिया। नूर आलम ने पीड़िता को एक बेड पर लिटाया और इंजेक्शन लगा दिया। इंजेक्शन लगने के बाद पीड़िता बेहोश हो गई। बेहोशी की हालात में नूर आलम ने उसके साथ रेप किया। रेप के दौरान उसने महिला का वीडियो बना डाली।

महिला को जब होश आया तो उसके कपड़े अस्त-व्यस्त मिले। उसे अपने साथ दुष्कर्म होने की आशंका हुई। तब नूर आलम सरदार ने उसे वीडियो दिखाते हुए ब्लैकमेल करने लगा और कहा कि अगर उसने किसी को बताया तो वह वीडियो वायरल कर देगा। इसके बाद वीडियो का डर दिखाकर उसने महिला से कई बार रेप किया।

इस दौरान नूर आलम ने पीड़िता से 4 लाख रुपयों की भी माँग की। पैसे नहीं देने पर उसका अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दी। रेप, ब्लैकमेलिंग और नूर आलम की धमकियों से पीड़िता काफी परेशान हो गई। डिप्रेशन में उसने आत्महत्या की भी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। इसकी जानकारी पड़ोसियों ने पीड़िता के पति को कॉल करके दी।

महिला का पति फौरन विदेश से लौटा तो उसे नूर आलम की करतूत के बारे में पता चला। इसके बाद उसने मामले की लिखित तहरीर पुलिस को दी। पुलिस ने नूर आलम के खिलाफ केस दर्ज कर लिया और मंगलवार (29 अक्टूबर 2024) को उसे गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में आगे की जॉंच और अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई की जा रही है।

नाम में हिंदू, पर हमदर्द इस्लामी कट्टरपंथियों का: भारत विरोधी HfHR को सुहा नहीं रही लंदन की दीवाली, मुस्लिम मेयर से कहा- हिंदू संगठनों से तोड़ो रिश्ते

हिंदू और भारत विरोधी अमेरिकी संगठन हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (HfHR) ने इंग्लैंड की राजधानी लंदन में दिवाली मनाने में खलल डालने की कोशिश की है। HfHR के डायरेक्टरराजीव सिन्हा ने लंदन के मेयर सादिक खान को एक पत्र लिखकर विश्व हिंदू परिषद (VHP), BAPS और चिन्मय मिशन जैसी हिंदू संस्थाओं के साथ ‘सभी संबंध खत्म’ करने को कहा है।

भारत विरोधी ताकतों के साथ हाथ मिलाने के लिए कुख्यात हिंदू विरोधी संगठन HfHR, इस बात से नाराज था कि इन हिंदू संस्थाओं ने 27 अक्टूबर को लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में दिवाली कार्य्रकम के आयोजन में भाग लिया था।

HfHR द्वारा लिखे इस पत्र को एक्स(पहले ट्विटर) पर सुहाग शुक्ला ने साझा किया। इस पत्र हिन्दूस फॉर ह्यूमन राइट्स (HfHR) ने इस बात पर ‘निराशा’ जताई कि VHP और बाकी संस्थाओं ने लंदन के मेयर सादिक खान के कार्यक्रम को आयोजित करने में मदद की थी।

हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (HfHR) ने लंदन के मेयर से इन हिंदू संगठनों से संबंध तोड़ने और भविष्य में दिवाली समारोह आयोजित करने के लिए नए संगठन तलाशने को कहा है। HfHR ने दावा किया कि यह हिंदू संगठन ”भारत और यूके में हिंदुत्व आंदोलन के लिए एक मुखौटे का काम करते हैं।”

HfHR का हिन्दू विरोधी इतिहास

हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (HfHR) के नाम से लग सकता है कि यह हिंदू समुदाय के हित के लिए काम करने वाला कोई हिंदू संगठन है। असल में यह भेड़ की खाल में भेड़िया है। यह संगठन अमेरिका और ब्रिटेन में हिंदू विरोधी गतिविधियों को बढ़ाने में सबसे आगे रहा है।

इसने लगातार खुद को मानवाधिकारों के कथित रक्षक के रूप में पेश किया है, जबकि असल में यह अपना लिबरल एजेंडा चलाता है। इस संगठन को टाइड्स फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से पैसा मिलता है। टाइड्स अमेरिका में हमास के समर्थन वाली रैलियों को भी पैसा देती है। HfHR अक्सर हिन्दुओं के विरोध में ही दिखता है।

टाइड्स फाउंडेशन खुद कई ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है जो वामपंथी और भारत विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाती हैं। विकिपीडिया को लेकर बनाए गए ऑपइंडिया के डोजियर में बताया गया है कि टाइड्स कई भारत विरोधी और हिंदू विरोधी संगठनों को पैसा देता रहा है। यह भारत और हिन्दुओं को बदनाम करते हैं और कट्टरपंथियों को बढ़ावा देते हैं।

HfHR अक्सर अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए हिंदू प्रतीकों का उपयोग करता है। हिंदू विश्वासों को लगातार HfhR नीचा दिखाता रहा है। यह हिन्दू ग्रन्थों की गलत व्याख्या करके प्रश्न उठाने और हिन्दुओं कि छवि खराब में जुटा एक संगठन है।

HfHR का गठन वर्ष 2019 में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) और ऑर्गनाइजेशन फॉर माइनॉरिटीज ऑफ इंडिया (OFMI) द्वारा किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि इन तीनों संगठनों ने अलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिलिटी (AJA) नामक एक और संगठन बनाया था।

द हिंदू में छपे एक लेख के अनुसार, 22 सितंबर, 2019 को पीएम मोदी की ह्यूस्टन यात्रा के खिलाफ़ प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों में AJA सबसे आगे थी। ‘HfHR’ की सह-संस्थापक सुनीता विश्वनाथ ने भी 2019 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर भारतीय मुसलमानों में दहशत पैदा करने की कोशिश की थी।

शिवलिंग को नुकसान नहीं पहुँचा सके आतंकी, हमले में वह मंदिर क्षतिग्रस्त जो भारत-पाक युद्ध के समय बना: 27 घंटे की मुठभेड़ के बाद हुए ढेर, हथियारों का जखीरा मिला

जम्मू-कश्मीर के अखनूर सेक्टर में 28 अक्टूबर 2024 को भारतीय सेना की एंबुलेंस पर आतंकियों ने हमला किया था। जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने 3 आतंकियों को मार गिराया था। करीब 27 घंटे तक मुठभेड़ चली थी। इस दौरान वह मंदिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया जिसमें छिपकर आतंकी गोलीबारी कर रहे थे। लेकिन वे मंदिर के शिवलिंग को कोई नुकसान नहीं पहुँचा सके। ढेर किए गए आतंकियों के पास से मिले हथियारों और सामानों से पता चलता है कि वे लंबी जंग की तैयारी करके आए थे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुठभेड़ पाकिस्तान की सीमा से लगे केरी बट्टल इलाके में हुई। इस इलाके में शिव आसन मंदिर है जो साल 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने बनाया था। इस मंदिर को सैनिकों का प्रेरणा स्रोत भी माना जाता है। यहाँ जवानों द्वारा अक्सर पूजा-पाठ और भंडारे का आयोजन किया जाता है। 28 अक्टूबर एम्बुलेंस पर फायरिंग के बाद आतंकी इसी मंदिर में घुस गए थे। सुरक्षा बलों ने मंदिर को चारों तरफ से घेर कर ऑपरेशन चलाया था।

गोलीबारी में मंदिर के ढाँचे को काफी नुकसान पहुँचा है। लेकिन इतनी गोलीबारी के बावजूद मंदिर का शिवलिंग जस का तस है। इसके ऊपर लगी जल की गगरी भी ज्यों की त्यों है। अब मंदिर कमेटी और सेना मिल कर इस मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार करवाएगी। मंदिर में होने वाले सभी कार्यक्रम भी पहले की तरह जारी रहेंगे। ग्रामीणों ने इसे मंदिर की महिमा और भगवान शिव की कृपा ही बताया है कि इतनी लंबी मुठभेड़ के बावजूद सभी जवान सुरक्षित रहे।

आतंकियों के पास था हथियारों का जखीरा

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार आतंकी लंबी जंग की तैयारी कर के आए थे। उनके पास M4 कार्बाइन, और AK-47 राइफल जैसे घातक और अत्याधुनिक हथियार थे। खाने-पीने के सामान भी बरामद हुए हैं। इनमें कैंडी, किशमिश, काजू, खजूर, चने के पैकेट और शहद की बोतलें शामिल हैं। अन्य हथियारों में 1 पिस्टल, M4 की 3 मैगजीन, AK 47 की 4 मैगजीन, 9mm पिस्टल के 20 राउंड, 7.62mm के 77 राउंड, 5.6mm के 129 राउंड, 1 हैंड ग्रेनेड, 1 साइलेंसर और 3 चाकू शामिल हैं।

आतंकियों के पास से बरामद हुए अन्य सामानों में 1 डिजिटल घड़ी, लाल रंग की 1 नोटबुक, 1 बाइनोकुलर, 1 पावर बैंक, 1 सोलर पैनल, कपड़े, जूते, मोज़े और कंबल शामिल हैं। सैन्य अधिकारियों का मानना है कि आतंकी इलाके से अच्छे से वाकिफ थे। इस अभियान में स्पेशल फोर्सेस के अलावा NSG कमांडो भी उतारे गए थे।

दिल्ली के स्कूलों में रोहिंग्या मुस्लिमों के बच्चों को एडमिशन दिलाने हाई कोर्ट पहुँच गया ‘सोशल ज्यूरिस्ट’, याचिका खारिज: कहा- यह अंतरराष्ट्रीय मुद्दा, हम नागरिकता नहीं दे सकते

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार (29 अक्टूबर 2024) को म्यांमार से भारत आए रोहिंग्या मुस्लिमों के बच्चों को स्कूल में दाखिला देने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की माँग पर विचार करने से इनकार कर दिया। दायर की गई जनहित याचिका (PIL) में दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के स्थानीय स्कूलों में प्रवेश देने का निर्देश देने की माँग की गई थी।

दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क किया जा सकता है। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा, “इसमें पहला कदम हाई कोर्ट नहीं हो सकता। पहले सरकार से संपर्क करें… जो आप सीधे नहीं कर सकते, उसे आप अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं कर सकते। कोर्ट को इसमें माध्यम नहीं बनना चाहिए।”

हाई कोर्ट ने कहा कि ये बच्चे भारतीय नहीं हैं। इसलिए इसमें अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ शामिल हैं। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में नीतिगत निर्णय की आवश्यकता है, जिस पर निर्णय लेने के लिए भारत सरकार सबसे उपयुक्त है। उन्होंने कहा, “‘बच्चे’ का मतलब यह नहीं है कि पूरी दुनिया यहाँ आ जाएगी। ये अंतरराष्ट्रीय मुद्दे हैं। सुरक्षा और राष्ट्रीयता पर इनका असर पड़ता है।”

अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से जुड़ा है, जिसका सुरक्षा और नागरिकता पर असर है। कोर्ट ने कहा कि रोहिंग्या विदेशी हैं, जिन्हें आधिकारिक या कानूनी रूप से भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है। इसके बाद कोर्ट ने उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क करने के लिए कहा।

न्यायालय ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा गया है। यह निर्णय असम समझौते के अंतर्गत आने वाले अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने से संबंधित है। हाई कोर्ट ने कहा कि इस निर्णय के कारण राज्य में काफी उथल-पुथल मचा और आंदोलन हुआ।

कोर्ट ने कहा, “दुनिया के किसी भी देश में न्यायालय यह निर्णय नहीं करेगा कि किसे नागरिकता दी जाए।” इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने इस जनहित याचिका का निपटारा करते हुए इस पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस जनहित याचिका को सोशल ज्यूरिस्ट नाम के एक सिविल राइट ग्रुप ने दायर किया था।

सोशल ज्यूरिस्ट ने अपनी जनहित याचिका में कहा था कि स्कूल रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने से इनकार कर हैं, क्योंकि उनके पास आधार कार्ड और बैंक खाता नहीं है। उनके पास केवल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड है। इस एनजीओ ने इसे मूल अधिकारों का हनन बताया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि जिन रोहिंग्या छात्रों को सरकारी स्कूलों में दाखिला मिला था, उन्हें भी कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि दिल्ली सरकार ने उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म और लेखन सामग्री जैसी वैधानिक सुविधाएँ देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उनके परिवार के पास बैंक खाता नहीं है।

दरअसल, अशोक अग्रवाल नाम के एक एडवोकेट ने दिल्ली के एक इलाके में शरणार्थी कॉलोनी का दौरा किया था। इस मुद्दे को उन्होंने दिल्ली सरकार को लिखित रूप में भी बताया। हालाँकि, जब सरकार की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने हाईकोर्ट में इस मामले में एक जनहित याचिका दायर किया।

सबूत नहीं फिर भी वाशिंगटन पोस्ट से की भारत की चुगली, दबाव बनाने को घसीटा अमित शाह का नाम: कनाडा की NSA और ट्रूडो के उप विदेश मंत्री ने कैमरे पर कबूली कारस्तानी

कनाडा की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और उप विदेश मंत्री ने निज्जर मामले में खुफिया जानकारी लीक करने की बात कबूली है। इन दोनों ने यह जानकारी अमेरिकी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट को लीक की थी। इन्होने भारत के गृह मंत्री अमित शाह का नाम खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जोड़ा था।

मंगलवार (29 अक्टूबर, 2024) को कनाडा में विदेशी दखल की जाँच करने वाली कमिटी के सामने दोनों ने यह बात कबूल की है। इस कमिटी के सामने कनाडा की NSA नताली द्रूइन ने कबूला कि उन्होंने कई मीडिया संस्थानों को भारत सरकार के निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप वाली खुफिया जानकारी साझा की।

नथाली ने कहा कि मीडिया संस्थान को यह गोपनीय जानकारी लीक करना, असल में एक रणनीतिक निर्णय था। उन्होंने कहा कि इससे वह कनाडा का पक्ष अमेरिकी अखबार के माध्यम से सामने रखना चाहती थीं। उन्होंने कहा कि उनकी यह तथाकथित रणनीति ट्रूडो की जानकारी में थी। उन्होंने यह जानकारी लीक करने की तारीख 14 अक्टूबर बताई है।

नथाली ने इस दौरान लगातार दावा किया कि उन्होंने जो जानकारी मीडिया को लीक कर दी, वह खुफिया नहीं थी। उनके साथ ही कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने भी जानकारी लीक करने कि बात कबूल की है।

डेविड मॉरिसन ने कबूल किया कि उन्होंने ही द वाशिंगटन पोस्ट से निज्जर समेत बाकी खालिस्तानियों की हत्याओं में गृह मंत्री अमित शाह का नाम जोड़ने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि जब एक पत्रकार ने उनसे फोन करके अमित शाह का नाम लिया तो उन्होंने इस पर हामी भर दी।

द वाशिंगटन पोस्ट ने इससे पहले कनाडा के हवाले से कहा था कि भारत में बैठे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कनाडा में खालिस्तानियों की हत्या का आदेश दिया। इसके बाद वाशिंगटन पोस्ट ने अमित शाह का नाम लिया था। गृह मंत्री अमित शाह का नाम कहाँ से आया अब इसकी पुष्टि भी हो गई है।

मॉरिसन और नथाली की बातों से स्पष्ट हुआ है कि उन्होंने ही अमित शाह का नाम इसमें घसीटा ताकि भारत पर दबाव बनाया जा सके। यह सारी जानकारी भारत और कनाडा के बीच सिंगापुर में मीटिंग के पहले लीक की गई। इन दोनों के बयानों पर अभी भारतीय विदेश मंत्रालय ने अभी कोई प्रतिक्रिया जारी नहीं की है।

कनाडा के सांसदों ने यह जानकारी लीक करने को लेकर मॉरिसन और नथाली को जम कर लताड़ा है। कमिटी ने कहा है कि आखिर इन दोनों ने कनाडाई जनता को यह जानकारी देने के बजाय एक अमेरिकी अखबार से साझा की।

गौरतलब है कि इससे पहले इसी कमिटी के सामने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत के शामिल होने के संबंध में कोई भी सबूत ना होने की बात कही थी। इसके बाद भारत ने उन्हें लताड़ा था।

‘मोबाइल नंबर माँग रहा हूँ, तुझे समझ में नहीं आ रहा’: अमजद ने साथियों सहित हिंदू लड़कियों को दुकान में खींचा, गर्दन पर चाकू रख धमकाया; बचाने गए दलित की भी पिटाई

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्कूल की नाबालिग हिन्दू छात्राओं से छेड़खानी करने का मामला सामने आया है। इन लड़कियों को बबलू कुरैशी की दुकान में घसीट कर ले जाया गया। विरोध करने पर उनकी पिटाई की गई और गर्दन पर चाकू रख दिया गया। बच्चियों को बचाने गए एक दलित युवक पर भी हमला किया गया। यह घटना शनिवार (26 अक्टूबर 2024) की है।

इस घटना की जानकारी मिलते ही हिंदू समाज के लोग विरोध में उतर आए और थाने के पास इकट्ठा होकर विरोध में प्रदर्शन किया। इस मामले में पुलिस ने सोमवार (28 अक्टूबर) को अमजद नाम के एक मुस्लिम युवक को गिरफ्तार किया है। अन्य आरोपित फरार हैं, जिनकी तलाश की जा रही है। इनकी तलाश में पुलिस जगह-जगह दबिश दे रही है।

यह घटना सहारनपुर के थाना क्षेत्र नकुड़ की है। यहाँ 26 अक्टूबर को एक नाबालिग पीड़िता के पिता ने पुलिस को तहरीर देकर बताया कि शनिवार शाम लगभग 5:35 बजे उसकी 16 वर्षीया बेटी अपनी 4 नाबालिग सहेलियों के साथ कोचिंग से ट्यूशन पढ़कर लौट रही थी। रास्ते में बबलू कुरैशी की सेटरिंग की दुकान है, जहाँ 5 लोग बैठे थे। इनमें बबलू कुरैशी का बेटा और अमजद भी था।

पीड़िता के पिता ने आगे बताया कि इन लोगों ने पाँच में से 2 लड़कियों को हाथ और बाल पकड़ कर दुकान के अंदर खींच लिया। इस दौरान आरोपितों ने दोनों लड़कियों पिटाई भी की और कहा, “तुझे इतने दिन से बोल रहा हूँ कि अपना मोबाइल नंबर दे, तेरी समझ में नहीं आ रही है।” इस दौरान पाँचों में से एक ने शिकायतकर्ता की बेटी की गर्दन पर चाकू रख दिया।

आरोपितों ने नाबालिग छात्राओं को गंदे-गंदे इशारे किए और कहा, “आज तुम्हें कोई नहीं बचा पाएगा।” इससे डरकर दोनों छात्राएँ शोर मचाने लगीं। इन छात्राओं की गुहार सुनकर बाहर खड़ी उनकी तीन सहेलियों ने राहगीरों से मदद करने की अपील की। तभी उधर से राजकुमार वाल्मीकि नाम का एक युवक गुजर रहा था। उसने लड़कियों की गुहार सुनकर उन्हें बचाने के लिए कान के अंदर घुस गया।

राजकुमार ने आरोपितों से दोनों बच्चियों को छोड़ने के लिए कहा। इस पर आरोपितों ने राजकुमार को जातिसूचक शब्द बोले और कहा, “$ले भं#, यहाँ से भाग जा नहीं तो तुझे भी जान से मार देंगे।” इनमें से 2 आरोपितों ने राजकुमार को लोहे की रॉड और डंडे से पीटना शुरू कर दिया। हंगामा सुनकर गाँव के कुछ लोग आ गए और उन्होंने दुकान में जाकर देखा तो आरोपित लड़कियों और राजकुमार को पीट रहे थे।

भीड़ को आता देखकर पाँचों आरोपित वहाँ से फरार हो गए। भागते हुए आरोपित अपनी एक हीरो होंडा पैशन बाइक भी घटनास्थल पर छोड़ गए। इस दौरान हमलावरों को बचाने के लिए कुछ मुस्लिम महिलाओं ने अपनी छतों से जमा हो रहे हिंदुओं पर पथराव कर दिया। घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस तुरंत मौके पर पहुँची और किसी तरह हालात को सँभाला।

पीड़ित पिता ने आरोपितों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। ऑपइंडिया के पास शिकायत की कॉपी मौजूद है। इन छात्राओं की उम्र 15 से 16 साल के बीच बताई जा रही है। इस घटना के विरोध में आसपास के तमाम हिंदू समुदाय के लोग थाने पर जमा हो गए। उन्होंने आरोपितों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की। इसके बाद पुलिस ने केस दर्ज कर आरोपितों की तलाश शुरू कर दी।

पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं के साथ-साथ SC/ST एक्ट और पॉक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया है। लगातार दबिश दे रही पुलिस टीम को आखिरकार मंगलवार (28 अक्टूबर) को सफलता मिली और अमजद को गिरफ्तार कर लिया। मामले में तमाम सबूतों के माध्यम से अन्य आरोपितों को चिन्हित कर उन्हें पकड़ने की कोशिश की जा रही है।

न होगी गिरफ्तारी, न मिलेगी कोई सजा: बांग्लादेश में जिन इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदुओं पर किए तमाम अत्याचार, उन्हें युनूस सरकार ने दिया ‘कानूनी कवच’

बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के खिलाफ प्रदर्शन के बाद की स्थिति अब और भी खतरनाक होती जा रही है। शेख हसीना के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद हिंदुओं, बौद्धों, अहमदियों को बांग्लादेश में धार्मिक और मजहबी पहचान के लिए इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा निशाना बनाया गया, लेकिन अब मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने उन कथित छात्रों (इस्लामिक कट्टरपंथियों) को कानूनी संरक्षण देने का फैसला किया है, जिन्होंने पूरे बांग्लादेश में उथल-पुथल मचाई थी।

रिपोर्ट्स के अनुसार, मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली नई सरकार ने 15 जुलाई से 8 अगस्त के बीच हुए प्रदर्शनों में शामिल ‘प्रदर्शनकारियों’ को किसी भी सजा से मुक्त रखने का आदेश जारी किया है। यूनुस सरकार के इस कदम से विवाद भी पैदा हो रहा है, क्योंकि कई लोग इसे उस समय की हिंसा के लिए जिम्मेदारी से बचने का तरीका मानते हैं। इस नियम की व्याख्या को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इससे यह आशंका है कि यह गंभीर अपराधों में शामिल लोगों को भी सुरक्षा दे सकता है, क्योंकि इस दौरान बहुत सारे मजलूमों को भी निशाना बनाया गया।

बता दें कि ‘छात्र-नेतृत्व वाले’ आंदोलन में सैकड़ों लोग मारे गए, लेकिन जो लोग इस हिंसा से प्रभावित हुए हैं, उन्हें डर है कि नए अधिकारियों द्वारा किया गया ‘न्याय का वादा’ अब उन्हें न्याय नहीं देगा।

बांग्लादेश के गृह मंत्रालय के आधिकारिक बयान में कहा गया, “एक नए गैर-भेदभावपूर्ण बांग्लादेश की यात्रा शुरू हो गई है। जो छात्र और नागरिक इस उथल-पुथल में शामिल थे, उन्हें 15 जुलाई से 8 अगस्त के बीच उनके कार्यों के लिए दंड, गिरफ्तारी या परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।” महत्वपूर्ण यह है कि बांग्लादेश में हिंदू, मुस्लिम अहमदिया सूफी समुदाय, बौद्ध और ईसाई जैसे अल्पसंख्यक समुदायों पर भयानक हमले हुए हैं।

बता दें कि 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया, जब उनके खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे। उनके जाने के बाद, बांग्लादेशी सेना ने सत्ता संभाली और मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनी। इस बीच, बांग्लादेश के हिंदू इस्लामिस्टों द्वारा देशभर में निशाना बनाए जाने लगे। ऑपइंडिया ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ घृणा की अनगिनत रिपोर्टें प्रकाशित की हैं, जिन्हें यहाँ पढ़ सकते हैं।

मूल रिपोर्ट विस्तार से अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें