Tuesday, November 19, 2024
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अमेरिका वालो! भारत के अल्पसंख्यकों पर ज्ञान मत दो, पहले अपना ‘फोबिया’ ठीक करो

अमेरिका के विदेश विभाग की 2019 की अंतरराष्ट्रीय मज़हबी स्वतन्त्रता रिपोर्ट हाल ही में विदेश सचिव माइक पोम्पिओ द्वारा जारी की गई थी। अपनी रिपोर्ट में ट्रम्प प्रशासन ने ‘मोब-लिंचिंग’ की घटनाओं पर ‘चिंता जताते हुए’ मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। भाजपा का सीधे-सीधे नाम लेकर आरोप लगाया है कि उसके नेता मुस्लिम-विरोधी भाषण देते हैं। अधिकारी ऐसे हमलावरों पर मुकदमा अमूमन नहीं चलाते हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि भारतीय संविधान सभी समुदायों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा का वचन देता है। भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी अमेरिकी रिपोर्ट की भर्त्सना की गई है।

समझ नहीं आ रहा यह हास्यास्पद ज्यादा है या पाखंडी कि जिस देश में कू क्लक्स क्लान (KKK) जैसे अश्वेतों को दोबारा गुलाम बनाने का सपना देखने वाला संगठन और रिचर्ड स्पेंसर जैसे श्वेत श्रेष्ठतावादी (वाइट सुप्रीमेसिस्ट) हज़ारों की संख्या में समर्थन जुटा रहे हों, जहाँ श्रीनिवास कुचिभोटला को एडम प्यूरिनटन “मुस्लिम समझ कर” गोली मार देता है, वह देश दूसरे देशों को अपने नागरिकों से कैसा बर्ताव करना है, यह सिखाए। अमेरिका को दूसरे देशों पर रिपोर्ट जारी करने के पहले अपने गिरेबान में झाँक लेना चाहिए।

58% अमेरिकी मुस्लिमों को आईएस समर्थक के रूप में देखते हैं

अमेरिका के ही एक संस्थान द्वारा किए गए सर्वे में अमेरिका के 58% लोग मुस्लिमों को आतंकी संगठन आईएस के समर्थक के रूप में देखते हैं। अमेरिका में 9/11 के एक आतंकी हमले के बाद मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव की घटनाएँ 250% बढ़ गईं हैं। अमेरिका की ट्रम्प सरकार को दुनिया की सबसे ज्यादा ‘इस्लामोफ़ोबिक’ सरकार के रूप में देखा जाता है। अमेरिका को सोच कर देखना चाहिए कि अगर भारत ने इन सब चीज़ों पर ‘रिपोर्ट’ जारी करनी शुरू कर दी तो उसे मुँह छिपाने कहाँ जाना पड़ेगा।

हिन्दूफ़ोबिया पर तो अमेरिका बात करना शुरू भी नहीं कर पाएगा

इस्लामोफ़ोबिया पर तो अमेरिका इस्लामी आतंक के हमलों की आड़ लेकर बचने का प्रयास कर सकता है, लेकिन हिन्दूफ़ोबिया के बचाव में अमेरिका के पास क्या तर्क है? कभी भारत को अमेरिका का ‘बौद्धिक वर्ग’ “P/C lens: P = pollution, population, and poverty; C = caste, cows, curry” से स्टीरियोटाइप करता है, कभी ‘बियर योग’ से लेकर ‘परम्परा-विहीन योग’ (पोस्ट-लीनियेज योग) के नाम पर बिना श्रेय दिए योग की चोरी करता है।

अमेरिकी मीडिया अपनी ही सांसद तुलसी गबार्ड और हिन्दू-अमेरिकन फाउंडेशन के खिलाफ हिन्दूफ़ोबिक नैरेटिव बुनता हैगीता को ‘बेईमान किताब’ कहने वाली और जानबूझकर हिन्दू शास्त्रों का गलत अनुवाद करने वाली वेंडी डोनिगर अमेरिकी सरकार से टैक्स छूट पाने वाले (यानि अमेरिकी सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित) शिकागो विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर है। नाज़ियों के हाकेनक्रेउज़ (हुक की तरह मुड़ा हुआ क्रॉस, ईसाई प्रतीकचिह्न) को अमेरिका में हिन्दुओं के स्वास्तिक के रूप में प्रचारित किया जाता है। भारत की संसद इस पर ‘कदम उठाने’ लगे तो?

शार्लोट्सविल याद दिलाएँ?

कहते हैं, “जाके पैर न फटी बिवाई, ता का जाने पीर पराई!” लेकिन अमेरिका के मामले में उलटी ही गंगा बह रही है। अपने राष्ट्रपति के खुद लिबरल गिरोह के दुष्प्रचार का शिकार होने के बावजूद ट्रम्प प्रशासन दूसरे देशों के खिलाफ उसी मीडिया के आधार पर राय कैसे बना सकता है? सामान्य अपराधों को पत्रकारिता के अमेरिकी समुदाय विशेष ने उसी तरह “भारत में इस्लामोफ़ोबिया/अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा” बना दिया है, जैसे ट्रम्प के “शार्लोट्सविल में दोनों ओर अच्छे लोग थे… दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों में कुछ निंदनीय नाज़ी और वाइट सुप्रीमेसिस्टों के अलावा कुछ अच्छे लोग भी थे” को मीडिया ने “देखो, ट्रम्प नाज़ियों और वाइट सुप्रीमेसिस्टों का समर्थन कर रहा है” के रूप में दिखाया था

(शार्लोट्सविल में दक्षिणपंथी विरोध प्रदर्शन के बीच में घुस कर कुछ नाज़ियों और वाइट सुप्रीमेसिस्टों ने दूसरी ओर विरोध प्रदर्शन कर रहे वामपंथियों के खिलाफ हिंसा की थी, जिसमें 3 लोग मारे गए थे, और 30 से ज्यादा घायल हुए थे। ट्रम्प ने घटना की निंदा करते हुए कहा था कि दक्षिणपंथी जुलूस में केवल निंदनीय नाज़ी और वाइट सुप्रीमेसिस्ट ही नहीं, कुछ अच्छे लोग भी थे, जिनका इस घटना ने कोई लेना-देना नहीं था। मीडिया ने उनकी बात को तोड़-मरोड़ कर उन्हें नाज़ी-समर्थक के रूप में दिखाया था।)

चौधराहट कम करे अमेरिका

अमेरिका के लिए बेहतर होगा कि वह अपनी चौधराहट दुनिया पर दिखाना बंद करे। उसे पहले तो यह साफ़ करना चाहिए कि भारत के आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी करने वाला वह होता कौन है। अपने यहाँ चुनावों में बर्नी सैंडर्स के ख़िलाफ़ षड्यंत्र के खुलासे तक में रूसी हाथ होने के नाम से अमेरिकियों को अजीर्ण हो गया था। ऐसे में दूसरे देशों में इस हस्तक्षेप का क्या मतलब है? दूसरे देशों की सम्प्रभुता में हस्तक्षेप की यह नीति और कुछ नहीं, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद ही है। बेहतर होगा कि अमेरिका हिंदुस्तान के मुस्लिमों की चिंता छोड़ कर अपनी इस खुजली का इलाज करे।

UPA सरकार का एक और घोटाला आया सामने, Pilates डील में CBI ने दर्ज की FIR

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने कॉन्ग्रेस शासनकाल (2008-09) में खरीदे गए 75 एयर फ़ोर्स के बेसिक ट्रेनर विमानों की ख़रीद में अनियमितता और भ्रष्टाचार (339 करोड़ रुपए की रिश्वत) के आरोपों में भगोड़े हथियार व्यापारी संजय भंडारी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया है।

CBI ने दिल्ली स्थित भंडारी के आधिकारिक ठिकानों पर छापेमारी की जिसमें इस मामले से जुड़े कुछ अहम दस्तावेज़ भी CBI के हाथ लगे हैं। जाँच एजेंसियों का कहना है कि रिश्वत के पैसों से लंदन में रॉबर्ट वाड्रा के लिए बेनामी सम्पत्ति ख़रीदी गई थी। इसी के चलते CBI ने संजय भंडारी से जुड़ी सम्पत्तियों पर छापेमारी की और कई दस्तावेज़ ज़ब्त किए।

ख़बर के अनुसार, FIR दर्ज करने के अलावा CBI ने नोएडा और गाज़ियाबाद में कुल नौ स्थानों पर छापा मारा, इसमें संजय भंडारी का घर और ट्रेनर विमान बनाने वाली स्विस कंपनी पिलाटस का दफ़्तर भी शामिल है। इससे पहले भी CBI संजय भंडारी की सम्पत्तियों पर रेड डाल चुकी है।

CBI ने संजय भंडारी समेत भारतीय वायु सेना, रक्षा मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों और स्विटज़रलैंड की कंपनी पिलाटस एयरक्राफ्ट लिमिटेड के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की है। यह FIR पिलाटस एयरक्राफ्ट डील को लेकर दर्ज की गई है, जो कि UPA के कार्यकाल में हुई थी। इस FIR में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और उनके जीजा रॉबर्ट वाड्रा का नाम दर्ज नहीं है। लेकिन रॉबर्ट वाड्रा के संबंध भंडारी से हैं यह साबित हो चुका है।

CBI की FIR के अनुसार, 2011 से 2015 के बीच एक तरफ पिलाटस वायुसेना को ट्रेनर विमान सप्लाई कर रहा था, तो दूसरी ओर संजय भंडारी के भारत और दुबई स्थित कंपनियों में करोड़ों रुपए जमा करा रहा था। इस बीच 350 करोड़ रुपए जमा कराने के सबूत मिले हैं।

यह भी पता चला है कि इसी दौरान संजय भंडारी ने करोड़ों रुपए नकद देकर कई कंपनियाँ ख़रीदी और अपनी कंपनियों में नकद के बदले दूसरी कंपनियों से फंड ट्रांसफर कराया। CBI के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पूरी डील में 350 करोड़ रुपए से अधिक दलाली की जाने की आशंका है। जाँच के बाद ही पता चल पाएगा कि असल में कुल कितने की दलाली दी गई थी।

जानकारी के मुताबिक़, संजय भंडारी के लंदन स्थित रिश्तेदार सुमित चड्ढा, मनोज अरोड़ा और रॉबर्ट वाड्रा के बीच ई-मेल पर हुई बातचीत से पता चलता है कि वाड्रा की उस सम्पत्ति में दिलचस्पी थी और वो उस प्रॉपर्टी में चल रहे रेनोवेशन वर्क के बारे में सब कुछ जानना चाहता था। प्रवर्तन निदेशालय कोर्ट को इस सम्पत्ति के बारे में बता चुका है, जिसके लाभार्थी रॉबर्ट वाड्रा हैं। इसमें लंदन के दो घर शामिल हैं जिनकी क़ीमत 5 मिलियन पाउंड और 4 मिलियन पाउंड है। इसके अलावा 6 फ़्लैट भी शामिल हैं।

आख़िर पिलाटस डील क्या है

पिलाटस डील वायु सेना के लिए बेसिक ट्रेनर एयरक्राफ्ट ख़रीदने के लिए थी, जिसके तहत 75 पिलाटस पीसी-7 बेसिक ट्रेनर एयरक्राफ्ट ख़रीदे जाने की तैयारी थी। यह डील 2,896 करोड़ रुपए में हुई थी। वर्ष 2008 में भंडारी ने ऑफसेट सॉलूशन्स नामक कंपनी बनाई। वर्ष 2010 में ऑफसेट ने पिलाटस के साथ एक डील साइन की। जाँच एजेंसियों को मिले दस्तावोज़ के अनुसार, 7,50,000 स्विस फ्रैंक पिलाटस ने कंसलटेंसी के लिए भंडारी को दिए। इसी दौरान संजय भंडारी ने लंदन में रियल एस्टेट प्रॉपर्टी ख़रीद रहे थे।

मोदी की सुनामी में हम जिन्दा बच गए, यही बड़ी बात है: सलमान खुर्शीद

कॉन्ग्रेस ने पहली बार ये माना है कि लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की लहर ही नहीं सुनामी चल रही थी। फर्रुखाबाद से लोकसभा चुनाव हारने के बाद पहली बार कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद शनिवार (जून 22, 109) को वहाँ पहुँचे। इस दौरान उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा की और माना कि पीएम मोदी की लोकप्रियता का चुनाव में कोई मुकाबला नहीं कर सका। उन्होंने कहा कि मोदी की सुनामी सब कुछ बहा ले गई लेकिन हम जिंदा रहे ये अच्छी बात है।

सलमान खुर्शीद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “आज तो हम यही जानते हैं कि चुनाव हुआ और चुनाव में पीएम की लोकप्रियता इतनी थी कि उसके सामने कोई खड़ा नहीं हो पाया, लेकिन एक अच्छी बात है कि सुनामी आया, उसने सब कुछ बहा दिया, लेकिन कम से कम हम जिंदा रहे और आपसे बात तो कर सकते हैं।” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यदि वो पीएम मोदी की लोकप्रियता को नकारते हैं, तो इसका मतलब है कि वो चुनावों को भी नकार रहे हैं।

हालाँकि, सलमान खुर्शीद ने मोदी लहर को तो माना पर साथ ही सबरीमाला और तीन तलाक मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना भी साधा। उन्होंने सबरीमाला मुद्दे पर कहा कि केंद्र सरकार सबरीमाला के फैसले को पलटने के लिए तैयार है, जबकि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोका नहीं जाना चाहिए। महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत है। मोदी सरकार को अदालत का फैसला मानना चाहिए।

वहीं, उन्होंने संसद में मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक बिल लाए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट पहले ही समाप्त कर चुका है। दुनिया में तीन तलाक कहीं नहीं है। हिंदुस्तान में भी तीन तलाक कहीं नहीं है। देश में तीन तलाक को गलत समझा गया है, जो देश में है ही नहीं, उस पर तीन साल की सजा दी जा रही है। गौरतलब है कि, 2019 के लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को 2014 के मुकाबले केवल 8 सीटों का फायदा हुआ है। 2014 में जहाँ पार्टी को 44 सीटें मिली थीं, वहीं इस बार पार्टी के खाते में 52 सीटें ही आई हैं।

चमकी बुखार से मरने वालों के शवों के नहीं हैं SKMCH अस्पताल में मिले कंकाल

शनिवार (जून 22, 2019) को बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के पीछे मानव कंकाल मिले थे। अस्पताल के पिछले हिस्से में जंगल में एक बोरे में करीब 100 नर कंकाल के अवशेष मिले। इन्सेफलाइटिस के चलते हुई मौतों से अस्पताल प्रशासन पहले ही सवालों के घेरे में है, वहीं दूसरी ओर बोरे में कंकाल मिलने की खबर ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। बिहार स्वास्थ्य विभाग ने हॉस्पिटल के पीछे मानव कंकाल मिलने के मामले की जाँच का आदेश जारी किया और मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी (डीएम) आलोक रंजन घोष ने अस्पताल प्रशासन से इस मामले में रिपोर्ट माँगी।

ताजा खबर के अनुसार, ये बात सामने आई है कि यहाँ पर लावारिस शवों को जलाया जाता है और ये नर कंकाल उन्हीं लावारिस शवों के हैं जिनपर दावा करने कोई नहीं आया। डीएम आलोक रंजन का कहना है कि इन शवों को अस्पताल प्रशासन की तरफ से सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद जलाया गया और साथ ही उन्होंने इस दावे को भी खारिज किया कि इनमें चमकी बुखार से मरने वालों के शव भी शामिल हो सकते हैं।

उन्होंने बताया कि नियम के मुताबिक, अज्ञात शवों को 72 घंटे तक रखने के बाद नजदीक के पुलिस स्टेशन से तुरंत संपर्क करना होता है और इस संबंध में एक रिपोर्ट फाइल करनी होती है। रिपोर्ट फाइल होने के बाद 72 घंटे बाद तक शव को पोस्टमॉर्टम रूम में ही रखना होता है। इस दौरान अगर परिवार का कोई सदस्य शव की पहचान के लिए नहीं आता है तो पोस्टमॉर्टम विभाग की ड्यूटी है कि इसका दाह संस्कार किया जाए या फिर दफनाया जाए। ऐसे शवों के अंतिम संस्कार के लिए जिला प्रशासन अस्पताल को 2000 रुपए भी देता है।

इसके साथ ही आलोक रंजन ने ये भी कहा कि इस अस्पताल के पीछे अज्ञात शवों को फेंकने की प्रक्रिया काफी समय से चल रही है। उन्होंने बताया कि अस्पाल के बिल्कुल पास में शवदाह गृह होने से गलतफहमी हो जाती है। इसलिए अब प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से शवदाह गृह को दादर घाट शिफ्ट करने का फैसला किया है। डीएम ने ये भी बताया कि यहाँ पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों और मुस्लिमों के शवों को दफनाया जाता है, जबकि हिंदुओं के शवों को जलाया जाता है और उनका कहना है कि, चूँकि इस मामले में शव हिंदुओं के थे इसलिए उन्हें जलाया गया था।

वहीं, श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर को ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित कर दिया गया है। निलंबित सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर का नाम डॉ भीमसेन कुमार है। बता दें कि, स्वास्थ्य विभाग ने 19 जून को एसकेएमसीएच में पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) के बाल रोग विशेषज्ञ को तैनाती की गई थी। मुजफ्फरपुर में एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से अब तक 129 बच्चों की मौत हो चुकी है। जिसमें से 109 बच्चों ने एसकेएमसीएच में, जबकि 20 बच्चों ने केजरीवाल हॉस्पीटल में दम तोड़ा।

ममता सरकार मनाएगी संघ नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि… सम्मान या मजबूरी?

लोगों के गुस्से और राज्य में भाजपा की ओर बढ़ते झुकाव ने ममता बनर्जी को दबाव में ला दिया है। इसी के अंतर्गत श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि (23 जून) को ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल राज्य सरकार द्वारा मनाए जाने की घोषणा हुई है। अभी तक हिन्दू राष्ट्रवादी होने के चलते वह ‘सेक्युलर’ पार्टियों द्वारा हाशिए पर खिसका दिए गए थे।

लगता है ममता बनर्जी को समझ में आ गया है कि तृणमूल को मुस्लिम तुष्टिकरण भारी पड़ेगा। 2019 के चुनावों ने दिखा दिया कि भाजपा के बंगाल में उत्थान में बहुत बड़ा ध्रुवीकरण था। अगर तृणमूल के पक्ष में मुस्लिम लामबंद हुए तो हिन्दुओं ने भी भाजपा को वोट दिए।

तृणमूल ने पहले तो भाजपा को ‘बाहरी’ दिखाने का प्रयास किया। वह काम नहीं आया। इसके अलावा ममता ने डॉक्टरों की हड़ताल को भी ‘बाहरी’ साज़िश बताया और उन्हें धमकाया जिससे वह आरोप और कमज़ोर हो गया। अब जब कुछ काम नहीं कर रहा, तो ममता बनर्जी ने बंगाल के उन सांस्कृतिक प्रतीकों की ओर मुड़ना शुरू किया। यही जिन्हें भाजपा समर्थक दक्षिणपंथियों का सम्मान प्राप्त है। लेकिन इससे कोई फायदा होगा, इसमें शक है। भाजपा के उछाल के पहले तक ‘सेक्युलर’ कैम्प अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए मुखर्जी जैसे व्यक्तित्वों को भूला बैठा था।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि को ममता बनर्जी द्वारा मनाया जाना भगवा धड़े की बहुत बड़ी जीत है। बहुत लम्बे समय तक वह राजनीति में ‘अस्पृश्य’ थे और भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ के पितृपुरुषों में थे। ममता का यह कदम भाजपा द्वारा राजनीतिक आयामों को पलट दिया जाना दिखाता है। 2014 में मोदी के चुनाव के बाद से राजनीतिक विर्मश दक्षिण दिशा में घूम रहा है।

2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से इसे और गति मिली है। लोकसभा प्रत्याशी के तौर पर साध्वी प्रज्ञा का चुनाव और उनका गोडसे पर टिप्पणी के बावजूद चुनावी मैदान से हटने से इंकार भी इसी दिशा में था। और अब यह साफ़ है कि देश का विमर्श किस ओर अग्रसर है।

J&K गवर्नर बोले: गोलियाँ चलाने वालों को गुलदस्ता नहीं देंगे, गोलियों का जवाब गोलियों से ही दिया जाएगा

जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने आतंकवाद और अलगाववादी को लेकर शनिवार (जून 22, 2019) को बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, “यदि सामने से फायरिंग की जा रही होगी तो उन्हें (आतंकियों) गुलदस्ता नहीं दिया जा सकता है। हम चाहते हैं कि कट्टरपंथ के रास्ते पर गए युवा मुख्यधारा में वापस आएँ।

राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने आगे कहा, “शुक्रवार को नमाज के बाद की जाने वाली पत्थरबाजी तकरीबन रुक चुकी है। हम युवाओं की मुख्यधारा में वापसी चाहते हैं। इसके लिए योजनाओं पर विचार किया जा रहा है। हालाँकि, एक बात यह भी सच है कि यदि सामने से फायरिंग की जा रही है तो आप उन्हें गुलदस्ता नहीं थमा सकते हैं। जनरल साहब गोलियों का जवाब गोलियों से ही देंगे। हमें नेक इरादों के साथ काम करना चाहिए।”

युवाओं को संबोधित करते हुए सत्यपाल मलिक ने कहा कि जन्नत के नाम पर युवाओं को बरगलाया जाता है कि हथियार उठाने पर वे जन्नत जाएँगे। उन्होंने कहा कि वास्तव में यहाँ के युवाओं के पास दो जन्नत हैं। एक तो खुद कश्मीर है और दूसरा वो जो वे एक अच्छा मुस्लिम बनकर बाद में हासिल करेंगे।

सत्यपाल मलिक ने कहा, “मुझे इस बात की खुशी है कि मीरवाइज उमर फारूक ने ड्रग्स के खिलाफ आवाज उठाई है, यह एक बड़ा खतरा है। यह यहाँ पर युवाओं के बीच फैल रहा है। जम्मू में स्थिति बुरी है, पंजाब में इसकी वजह से काफी नुकसान हो रहा है।”

ख़बर के अनुसार, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अलगाववादी नेता मीरवाइज़ उमर फ़ारूक को शनिवार (22 जून) को श्रीनगर स्थित उनके ही घर में नज़रबंद कर दिया गया। मीरवाइज़ के नेतृत्व वाले हुर्रियत के एक प्रवक्ता ने बताया कि शहर के बाहरी इलाक़े में मीरवाइज़ उमर फ़ारूक के आवास पर एक पुलिस दल पहुँचा और उन्हें सूचित किया कि अब वह अपने घर से बाहर नहीं जा सकते। प्रवक्ता ने बताया कि पुलिस द्वारा मीरवाइज़ को नज़रबंद करने का कोई कारण नहीं बताया गया।

‘गालीबाज ट्रोल’ स्वाति चतुर्वेदी ने फिर फैलाई फेक न्यूज़ कहा संसद में सो रहे थे अमित शाह

पत्रकार के वेश में अभद्र गालीबाज ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी ने फिर भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री आमिर शाह के बारे में फेक न्यूज़ फैलाई है। स्वाति के एक ट्वीट में दावा किया गया है कि गृह मंत्री संसद सत्र के बीच में सो रहे थे।

लेकिन लगता है स्वाति चतुर्वेदी और उनके जैसे अभद्र ट्रोल लोक सभा की कार्यवाही की प्रासंगिक रिकॉर्डिंग नहीं देखते, इसी लिए ऐसे निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं। अगर पूरा वीडियो देखा जाए तो अमित शाह कानून, दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद के वक्तव्य को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। जिस पल का स्क्रीनशॉट स्वाति ने ट्विटर पर डाला, उस पल वह रवि शंकर प्रसाद के भाषण के दौरान अपनी मेज पर रखे कुछ कागज़ देख रहे थे। आँखें नीची होने के इस क्षण को जान बूझकर स्क्रीनशॉट के लिए चुना गया। पूरी कार्यवाही का वीडियो नीचे आप खुद देख सकते हैं:

इस वीडियो में देख कर यह साफ पता चल जाता है कि अमित शाह उक्त समय पर पूरी तरह सक्रिय और सजग थे। और-तो-और, यह वीडियो इस संसद सत्र का है भी नहीं। यह संसद के इस साल जनवरी में हुए सत्र का वीडियो है। स्पष्टतः स्वाति को ट्विटर पर जाने के पहले अपने दावों को खुद जाँच लेने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं हुई है। उनके इस ट्वीट को ट्विटर पर जब कई सारे यूज़र्स ने निशाने पर लिया तो उन्हें अपना ट्वीट हटाने पर मजबूर होना पड़ा।

फेक न्यूज़ फ़ैलाने और सोशल मीडिया पर भ्रम फ़ैलाने का स्वाति चतुर्वेदी का पुराना इतिहास है। उन्होंने हाल ही में ऑपइंडिया को मानहानि का नोटिस भेजते हुए हम पर यह आरोप लगाए कि हमारे उनके द्वारा की जा रही निम्न गुणवत्ता की पत्रकारिता पर लिखे गए लेखों के चलते उन्हें पाठकों की संख्या में कमी झेलनी पड़ी है। अतीत में स्वाति ने ठुकराए हुए प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार लड़की को बीएचयू की हिंसा के रूप में दिखाया था। उन्होंने एक राष्ट्रीय स्तर के नेता के बयानों के साथ भी राष्ट्रीय टीवी पर छेड़छाड़ की थी। इसके अलावा वह पहले भी अमित शाह के भाषण पर फेक न्यूज़ फ़ैलाने का प्रयास कर चुकीं हैं। उन्होंने एक संदिग्ध वेबसाइट द्वारा फैलाई गई फेक न्यूज़ को भी विश्वसनीयता प्रदान की है। उन्होंने इससे पहले इस पर भी फेक न्यूज़ फैलाई थी कि कन्हैया कुमार पर भाजपा पदाधिकारी ने हमला किया है।

TCS करेगी पटना में निवेश, बिहार में किसी बहुराष्ट्रीय IT कंपनी द्वारा यह पहला बड़ा निवेश होगा

केंद्रीय कानून व न्याय, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेन्सी सर्विसेज (TCS) जल्दी ही पटना में अपना एक बड़ा केंद्र शुरू करने जा रही है। इसकी जानकारी रविशंकर प्रसाद ने खुद अपने ट्विटर एकाउंट द्वारा दी है।

रोजगार के लिए बिहार से बढ़ते पलायन को रोकने लिए केंद्र सरकार ने बड़ी पहल की है। TCS के पटना में निवेश करने से वहाँ रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने शनिवार (जून 22, 2019) को केंद्रीय कानून व न्याय, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद से दिल्ली में मुलाकात की। इस दौरान रविशंकर प्रसाद और चंद्रशेखरन ने भारत के डिजिटल सेक्टर से जुड़े विषयों के साथ ही डिजिटल भविष्य के निर्माण के लिए नई पहलों पर भी चर्चा की।

बिहार में किसी बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी द्वारा यह पहला बड़ा निवेश होगा

बिहार में किसी बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी द्वारा यह पहला बड़ा निवेश होगा। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि TCS जैसी बड़ी कंपनी का बिहार में निवेश एक अच्छी शुरुआत है। इससे प्रेरित हो कर अन्य आईटी कंपनियाँ भी राज्य में निवेश करने के लिए आगे आएँगी। इससे राज्य में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। संभावना है कि जल्द ही टीसीएस के केंद्र का उद्घाटन होगा।

एयरपोर्ट पर गार्ड ने माँगा ID प्रूफ तो ‘माई चॉइस’ पादुकोण ने फेंका सेलिब्रिटी कार्ड!

देश में नियम, कानून, औपचारिकताएँ निभाने की जब बात आती है तो ऐसा लगता है जैसे ये सभी सिर्फ आम आदमी और निचले वर्ग के लोगों के लिए बनाई गई प्रथाएँ हैं। क्योंकि अक्सर हम देखते हैं कि जब भी किसी सरकारी संस्था, सार्वजानिक जगह पर नियमों के पालन की बात आती है तो ऐसे लोग, जिन्हें खुद के ‘विशेष’ होने का एहसास होता है उन्हें नियमों का पालन करना संस्था पर एहसान करना लगता है।

हालाँकि, कुछ लोगों का यहाँ पर या भी कहना है कि दीपिका पादुकोण ने अपना पहचान पत्र दिखाकर ‘सहयोग’ किया है लेकिन, उनके ‘चाहिए?’ वाले प्रश्न से तो कम से कम ऐसा महसूस नहीं होता है। जो उन्होंने दिखाया वो ID प्रूफ कम और ‘सेलिब्रिटी कार्ड’ ज्यादा नजर आता है।

हाल ही में सोशल मीडिया पर ‘माई चॉइस’ वाली एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण का एक वीडियो सामने आया था जिसे लेकर वो खबरों में थीं। दरअसल दीपिका हाल ही में अपने पिता प्रकाश पादुकोण के साथ बेंगलुरु रवाना हुईं और उनका ये वीडियो इसी दौरान रिकॉर्ड किया गया। इस वीडियो में देखा जा सकता है कि दीपिका अपने पिता के साथ एयरपोर्ट के अंदर जा रही हैं। लेकिन जब दीपिका एयरपोर्ट के अंदर एंट्री कर रही थीं, तभी एक सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें रोक लिया और उन्हें आवाज लगाते हुए पूछा- ‘आईडी-आईडी‘। इतना सुनकर दीपिका मुड़कर देखती हैं और पूछती हैं- ‘चाहिए?‘ इसके बाद दीपिका वापस आती हैं और अपना आईडी कार्ड उसे दिखाती हैं।

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Thy shall always obey rules 👍 #deepikapadukone

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भिन्न है लोगों की प्रतिक्रियाएँ

दीपिका का ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। लोग उनके विनम्र रिएक्शन को काफी पसंद कर रहे हैं। फैंस का कहना है कि आईडी के बारे में सुनते ही दीपिका तुरंत रुक गईं और अपना आईडी कार्ड दिखा दिया। उनमें एटिट्यूड नहीं है। एक अन्य यूजर ने कहा कि जिस तरह वो अपनी आईडी दिखाने के लिए तैयार थीं वह मुझे पसंद आया।

लेकिन, ऐसा नहीं है कि उन्हें केवल पॉजिटिव रिस्पॉन्स ही मिला। कुछ लोग इसपर दीपिका को गलत बताते हुए उन पर कमेंट भी कर रहे हैं जो कि बेहद स्वाभाविक है। खासकर तब जब आप अपनी फिल्मों की रिलीज़ से पहले अक्सर सामाजिक रूप से अचानक से सक्रीय होकर अपनी जागरूकता के नमूने दिखाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हों।

कुछ लोगों का कहना है कि एयरपोर्ट पर जाने से पहले आईडी प्रूफ दिखाना जरूरी होता है तो दीपिका बिना आईडी दिखाए आगे कैसे गईं? वहीं कुछ का कहना है कि वो सेलेब हैं इसलिए उन्होंने आईडी दिखाना जरूरी नहीं समझा। कुछ का कहना है- “शुरुआत में भी गार्ड उनसे आईडी माँग रहा है लेकिन वो आगे बढ़ गईं। जब गार्ड ने उन से फिर से आईडी प्रूफ माँगा तो दीपिका पूछ रही हैं ‘चाहिए?’, बिलकुल चाहिए। वो वीवीआईपी हो सकती हैं। अपने फैंस के लिए भगवान या क्वीन हो सकती हैं लेकिन नियम सबके लिए बराबर होते हैं। बाकी दूसरे सेलेब्स की तरह उन्हें भी अपने आप आईडी दिखानी चाहिए थी।”

‘माई लाइफ माई चॉइस’ जैसी प्रगतिशील विचारधारा रखने वाली दीपिका पादुकोण को ऐसे नियम कानून मानने में आखिर समस्या भी क्यों होनी चाहिए जो बने ही हम सबकी सुविधा के लिए हों? लेकिन फिर भी अक्सर देखा जाता है कि अपनी पहचान बताना या प्रूफ देना उन्हें अपने अहंकार और सम्मान पर चोट नजर आती है। चाहे वाकया शाहरुख खान का हो या फिर दीपिका पादुकोण का हो, आम आदमी को कभी सिक्योरिटी गार्ड से पलटकर “चाहिए” या फिर “दूँ क्या?” जैसे सवाल पूछते नहीं देखा जाता है।

ओवैसी के लिए तीन तलाक़ और सबरीमाला की ‘परंपराएँ’ समान हैं… लेकिन ऐसा सच में है नहीं

तीन तलाक बिल लोक सभा में बृहस्पतिवार को रखा गया। राजग सरकार इस मुस्लिम कुप्रथा को मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए आपराधिक बनाने का सतत प्रयास कर रही है। लेकिन विपक्ष मुस्लिम महिलाओं की रक्षा के इस कदम की लगातार आलोचना कर रहा है।

इस बार भी विपक्ष के नेताओं ने बिल की आलोचना की। शशि थरूर ने कहा कि बिल खुद संविधान का उल्लंघन है और यह भी जोड़ा कि पत्नी का परित्याग यदि आपराधिक कृत्य है तो यह एक ऐसे व्यापक कानून के रूप में सभी भारतीयों पर लागू होना चाहिए जो पत्नी और बच्चों का परित्याग करने को आपराधिक बनाए। जैसी उम्मीद थी, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बिल का मुखर विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह बिल संविधान का उललंघन करता है। “यह बिल संविधान के अनुच्छेदों का उललंघन करता है। संविधान ने व्यवस्था दी है कि यदि हम विभेदकारी कानून बनाते हैं तो उन्हें दो शर्तों को पूरा करना होगा- स्पष्ट विभेदक (इंटेलीजिबल डिफ्रेंशिया) और तर्कसंगत संबंध (रैशनल नेक्सस)। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि शादी का अंत नहीं होगा। हमारे पास घरेलू हिंसा अधिनियम, मुस्लिम महिला सुरक्षा अधिनियम 1986 हैं। अतः आपका बिल स्पष्ट विभेदक की शर्त पूरी नहीं करता है।”

उसके बाद वह तीन तलाक और सबरीमाला की परम्पराओं में भ्रामक समानता बताने लगे, जहाँ रजस्वला आयु की महिलाओं का प्रवेश निषिद्ध है। उन्होंने कहा, “इसके ज़रिए मैं पूछना चाहूँगा सरकार से कि उन सबको मुस्लिम महिलाओं से बड़ा प्रेम है। क्यों नहीं उनके यही उद्गार केरल की हिन्दू महिलाओं के लिए हैं? आप सबरीमाला के खिलाफ क्यों हैं?”

सबरीमाला की परम्पराओं और तीन तलाक के बीच समानता बताने का यह प्रयास सेब और संतरों की तुलना के जैसा है। सबसे पहले, महिलाओं के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अगर वह किसी एक मंदिर विशेष में नहीं जा रहीं हैं। लेकिन अगर किसी औरत को उसका शौहर तीन तलाक दे दे तो यह उसकी पूरी ज़िंदगी को तहस-नहस कर देता है।

दूसरी बात, सबरीमाला की परम्पराएँ व्यापक नहीं हैं। यह भगवान अय्यप्पा के मंदिरों की भी व्यापक प्रथा नहीं है। अतः अगर किसी महिला को उनकी पूजा करनी है, वह उनके अन्य मंदिरों में जा सकती है, या तब तक प्रतीक्षा कर सकती है जब तक कि वह सबरीमाला के लिए उचित आयु की न हो जाए। तीन तलाक के मामले में ऐसा नहीं है। यह मुस्लिम प्रथा हर मुस्लिम महिला पर लागू होती है, और इससे उसके बचने का कोई उपाय नहीं है; यह तलवार की तरह उनकी गर्दन पर जीवन के हर क्षण टँगी रहती है।

तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात, सबरीमाला की पम्पराओं में महिलाओं के दमन की क्षमता नहीं है, जबकि तीन तलाक की प्रथा में है। तीन तलाक के परिणामस्वरूप कई महिलाएँ निकाह हलाला जैसी निंदनीय परम्परा की शिकार होतीं हैं, जिसके अंतर्गत यौन उत्पीड़न के लिए मुस्लिम महिलाओं का मवेशियों की तरह मुस्लिम पुरुषों में आदान-प्रदान होता है।

इसलिए इन दोनों प्रथाओं के बीच समानता स्थापित करने के कोई भी प्रयास अत्यंत घृणित है और मुस्लिम महिलाओं द्वारा तीन तलाक के परिणामस्वरूप झेले जा रहे दमन के चरम की गंभीरता को कमतर करता है। लोक सभा में तीन तलाक पर हो रही बहस में यह भी दिख रहा है कि कैसे ‘सेक्युलर’ पार्टियाँ हमेशा मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी धड़े का सशक्तिकरण करतीं हैं और मुस्लिम महिलाओं की चिंताओं को नज़रअंदाज़ कर देतीं हैं।